नई दिल्ली: राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के बाद महाराष्ट्र की यह मेरी पहली यात्रा है। वीरों, क्रांतिकारियों, समाज सुधारकों, संतों और कलाकारों की कर्मभूमि महाराष्ट्र वास्तव में एक महान राज्य है। यह हमारे राष्ट्र के हृदय में स्थित ‘महाराष्ट्र’ है।
इस राज्य की महागाथा इतनी विविध और विशाल है कि यदि केवल महापुरुषों के नाम गिनाएं तो अंत नहीं होगा। शिवाजी महाराज, छत्रपति साहू जी, समर्थ गुरु रामदास, तात्या टोपे, संत एकनाथ, संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले, पंडिता रमाबाई सरस्वती से लेकर गोपाल कृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, डॉ. भीमराव अंबेडकर, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, आचार्य विनोबा भावे, यशवंतराव चह्वाण और बाबा आमटे तक नेतृत्व का एक प्रवाह है, जिसकी कई धाराएं हैं।
सामाजिक बदलाव और स्वतंत्रता संग्राम के क्षेत्रों में महाराष्ट्र आगे रहा है। स्त्रियों की शिक्षा तथा दलित समाज के उत्थान के लिए महाराष्ट्र ने ही राह दिखाई है। महावीर और बुद्ध के आदर्शों को समाज के आम आदमी से जोड़ने का जैसा प्रयास महाराष्ट्र में हुआ है वह देश ही नहीं दुनिया के लिए एक आदर्श है।
आज मुझे दीक्षा भूमि में जाकर बाबा साहेब डाक्टर अंबेडकर के क्रांतिकारी बदलाव को स्मरण करने तथा उस पुण्य भूमि को नमन करने का सौभाग्य मिला। तत्पश्चात शांतिनाथ जैन मंदिर जाकर विश्व प्रसिद्ध आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज से भेंट करने का दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ। उसके पश्चात् कामठी ड्रैगन पैलेस टेम्पल के परिसर में निर्मित विपस्सना केंद्र के भवन का उद्घाटन करते हुए बुद्ध वंदना सुनने का भी सुयोग मिला। इस तरह, मुझे थोड़े समय में ही नागपुर में स्थित हमारे देश की विरासतों और परम्पराओं से जुड़ने का मौका मिला।
सामाजिक और धार्मिक बदलाव के साथ-साथ महाराष्ट्र आजादी की लड़ाई का भी मुख्य केंद्र रहा है। 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ तक इस लड़ाई के कई महत्वपूर्ण अध्याय महाराष्ट्र में ही लिखे गए। महात्मा गांधी ने भी गोखले को अपना गुरु माना और इसी नागपुर डिविजन में वर्धा को अपना कार्यस्थल बनाया। नागपुर आकर विवेकानंद केंद्र के संस्थापक एकनाथ रानाडे जी का पुण्य स्मरण अपने आप होने लगता है।
साथ-साथ महाराष्ट्र ने साहित्य, संगीत और कला के क्षेत्रों में एक से बढ़कर एक रत्न प्रदान किए हैं। भातखण्डे, पलुस्कर, मोगुबाई कोर्डिकर, भीमसेन जोशी, किशोरी अमोनकर से लेकर सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर तक संगीत की एक शानदार परंपरा है।
प्राचीन काल में ही अजंता और एलोरा की गुफाओं में कला की जो ऊंचाइयां हासिल की गईं, वे महाराष्ट्र की धरती में रची-बसी प्रतिभा के बारे में बताती हैं। महाराष्ट्र के लोक संगीत और लोककलाओं ने भी पूरे देश को बहुत कुछ दिया है। यहां लोक नाट्य में ‘तमाशा’ से होते हुए पारसी थिएटर के रास्ते से हिन्दी फिल्मों का विकास हुआ। और हिन्दी फिल्म उद्योग की साख आज पूरी दुनिया में है, जिसका केंद्र, मुंबई, महाराष्ट्र में ही है।
महाराष्ट्र की खासियत है कि यह देश के उद्योग और व्यापार का केंद्र रहा है, साथ ही संस्कृति और कला का भी। मुंबई को भारत की आर्थिक राजधानी कहा जाता है। साथ ही मुंबई में ही नाटक, चित्रकला, सिनेमा और साहित्य के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र भी हैं। शिक्षा और संस्कृति की अपनी विरासत को व्यापार और टेक्नॉलॉजी से जोड़कर महाराष्ट्र पूरे देश को 21वीं शताब्दी में नई शक्ति दे सकता है और महाराष्ट्र ऐसा कर भी रहा है।
आज पूरी दुनिया भारत की ओर देख रही है। हम भारतवासी अपने तरीके से टेक्नॉलॉजी का विकास करते हुए 21वीं सदी पर अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ और अधिक गहराई से जुड़ती जा रही है। लेकिन विकास और परिवर्तन की इस दौड़ में हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी मजबूत रखना है। इस संदर्भ में महाराष्ट्र पूरे देश के लिए उदाहरण बन सकता है।
नागपुर में आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विकास हुआ है। नागपुर गडकरी जी और फणनवीस जी जैसे प्रखर राजनेताओं की कर्मभूमि है। इन्होंने नागपुर के विकास को नई गति और दिशा प्रदान की है। नागपुर को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना है। ‘जीरो-माइल’ वाले नागपुर में देश के विकास का केंद्र बनने की क्षमता है। यह क्षमता कई ठोस कारणों पर आधारित है। साक्षरता के आधार पर शिक्षा और टेक्नॉलॉजी का विकास तेजी से होता है। युनिसेफ के एक सर्वेक्षण के अनुसार 92 प्रतिशत से भी अधिक साक्षरता के साथ नागपुर महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे तथा औरंगाबाद शहरों से आगे निकल गया है और राज्य का सबसे साक्षर जिला बन गया है। मैं नागपुरवासियों को इसके लिए बधाई देता हूं।
अंत में, मैं मराठी भाषा के अत्यंत लोकप्रिय कवि सुरेश भट जी के बारे में एक प्रेरक बात साझा करना चाहूंगा जो मराठी भाषी तो जानते होंगे लेकिन अधिकांश भारतवासी शायद न जानते हों। उनकी जीवनी के विषय में मैंने जब जाना तो यह पाया कि बचपन में ही उनका दाहिना पैर पोलियो से ग्रस्त हो गया था। और वे जीवन भर दिव्यांग रहे। इसके बावजूद उन्होंने ऐसी लोकप्रियता पायी कि आज उनके नाम पर एक सभागृह का लोकार्पण किया जा रहा है। सीमाओं को पार करते हुए जीवन में कुछ कर गुजरने की यह मिसाल प्रेरणा देती है।
इसी प्रेरणा के साथ मैं आज के समारोह के आयोजकों को बधाई देता हूं। साथ ही मैं नागपुर समेत पूरे महाराष्ट्र के समग्र विकास की मंगलकामना व्यक्त करता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि नागपुर के लोग महाराष्ट्र के और पूरे राष्ट्र के विकास में अपनी शानदार भूमिका अदा करते रहेंगे और 21वीं सदी के भारत के निर्माण में भरपूर योगदान देंगे।