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भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी का इंटरनेशनल अम्‍बेडकर कॉनक्‍लेव के उद्घाटन में सम्बोधन नई दिल्ली

देश-विदेश

नई दिल्लीः संविधान दिवस तथा डॉक्टर अंबेडकर की 125वीं जयंती की स्मृति में International Ambedkar Conclave का आयोजन एक अत्यंत प्रशंसनीय पहल है। शिक्षा, समावेशी विकास, समता और सशक्तिकरण द्वारा अनुसूचित जातियों और जन-जातियों की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से प्रेरित होकर इस सम्मेलन का आयोजन करने के लिए मैं Forum of SC and ST Legislators and Parliamentarians की सराहना करता हूं।

  1. बाबासाहेब ने कहा था, “न्याय, बंधुता, समता और स्वतन्त्रता से युक्त समाज ही मेरा आदर्श समाज है”। इसी आदर्श का समावेश उन्होने हमारे संविधान में किया। जैसा कि हम जानते हैं, हमारे संविधान का मूल उद्देश्य एक ऐसे लोकतन्त्र का निर्माण करना है जिसमे सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्राप्त हो; प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त हो; समस्त नागरिकों में बंधुता बढ़े। मैं समझता हूं कि इस फोरम द्वारा किए जा रहे प्रयास, उस आदर्श समाज की ओर उठाए जा रहे सच्चे कदम हैं। ऐसे प्रयास करते रहना ही डॉक्टर अंबेडकर के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि व्यक्त करना है।
  2. डॉक्टर अंबेडकर ने असमानता की अमानवीय स्थितियों का सामना करते हुए असाधारण शिक्षा के बलबूते पर तरक्की और प्रतिष्ठा हासिल की थी। सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष के साथ सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करते हुए उन्होने भारतीय समाज को सही अर्थों में आधुनिक समाज बनाने की दिशा में अद्वितीय योगदान दिया। उनकी पुण्य स्मृति में यह कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें नमन करता है।
  3. हमारे संविधान का निर्माण एक ऐसी विलक्षण प्रतिभा के हाथों हुआ है जिससे विश्व के दिग्गज बुद्धिजीवी भी अभिभूत हो जाया करते थे। जिस समय डॉक्टर अंबेडकर अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे उसे, कई लोग उस विश्वविद्यालय का स्वर्ण युग कहते हैं। विश्व के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर एडविन सेलिगमन उनके रिसर्च गाइड थे। उन्होने विश्वविद्यालय के सोविनियर में लिखा था, “कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में यदि कोई छात्र पढ़ने आया है तो बी.आर. अंबेडकर, और यदि अंतिम छात्र पढ़कर गया है तो बी.आर. अंबेडकर!” ऐसे प्रतिभाशाली डॉक्टर अंबेडकर द्वारा लिखित संविधान ने नि:संदेह हमारे लोकतन्त्र को एक मजबूत ढांचा दिया है, जो कि लचीला भी है ताकि समय के साथ होने वाले परिवर्तनों के अनुरूप   इसमे   संशोधन किया जा सके। दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र के हर वर्ग के लोगों की आशाओं को पूरा करने के रास्ते डॉक्टर अंबेडकर के बनाए हमारे संविधान में उपलब्ध हैं।
  4. संविधान के प्रारूप को प्रस्तुत करते हुए डॉक्टर अंबेडकर ने संवैधानिक नैतिकता के महत्व को रेखांकित किया था। उन्होने कहा था कि संवैधानिक नैतिकता को विकसित करने के लिए प्रयास करना पड़ता है। यह कहकर उन्होने स्पष्ट संकेत दिया था कि भारतवासियों को संवैधानिक नैतिकता का विकास करते रहना चाहिए।
  5. डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में संविधान को समझने, उसकी रक्षा करने और उसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ने के रास्ते स्पष्ट किए हैं। उन्होने संविधान के दायरे में रहकर काम करने तथा ‘कानून के शासन’ की अनिवार्यता के विषय में समझाया है।
  6. उन्होने कहा था कि किसी भी संविधान की सफलता का आधार केवल उसमे निहित प्रावधान ही नहीं हैं; संविधान की सफलता जनता पर तथा उन राजनैतिक दलों पर भी निर्भर करती है जिनका उपयोग जनता अपनी आकांक्षाओं और राजनैतिक प्राथमिकताओं को अंजाम देने के लिए साधन के रूप में करती है। हमारे पास विरोध व्यक्त करने के संवैधानिक तरीके उपलब्ध हैं अतः संविधान विरोधी ‘Grammer of Anarchy’ से बचना जरूरी  है।
  7. स्वतन्त्रता, समता, और बंधुता को वे एक दूसरे पर निर्भर मानते थे। इन तीनों में किसी एक के अभाव में बाकी दोनों अर्थहीन हो जाते हैं। उन्होने कहा था कि मात्र राजनैतिक लोकतन्त्र से संतुष्ट होना अनुचित होगा। सामाजिक लोकतन्त्र की स्थापना भी करनी होगी।
  8. उन्होने यह भी कहा था कि लोग ‘जनता द्वारा सरकार’ से अधीर हो चुके हैं और ‘जनता की सरकार के प्रति भी उदासीन हो गए हैं। वे ऐसी सरकार चाहते हैं, जो जनता के लिए हो। उन्होने कहा था कि हम यह संकल्प लें कि ‘जनता के लिए सरकार’ चलाने के रास्ते में जो अड़चन पैदा हो उसे पहचानने में हम तनिक भी कोताही या आलस नहीं करेंगे और उसका खात्मा करने के अपने अभियान में जरा भी कमजोरी नहीं आने देंगे।
  9. डॉक्टर अंबेडकर ने शिक्षा के बुनियादी महत्व पर बहुत ज़ोर दिया था। संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा का प्रसार होना अनिवार्य है। वे कहते थे कि राजनीति के समान ही शिक्षण संस्थान भी महत्वपूर्ण है। किसी भी समाज की उन्नति उस समाज के बुद्धिमान, तेजस्वी और उत्साही युवाओं के हाथ में होती है। शिक्षा पर उन्होने बहुत ध्यान दिया और अनेक संस्थानों की स्थापना की। जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए वे शिक्षा को पहली सीढ़ी मानते थे।
  10. संविधान में दिए हुए राज्य के नीति निदेशक तत्व सामाजिक न्याय के लिए स्पष्ट दिशा प्रदान करते हैं। अनुसूचित जातियों, जन-जातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों के लिए काम करना राज्य का कर्तव्य है। इसी प्रकार भोजन और जीवन स्तर में सुधार करना भी राज्य का कर्तव्य है। ऐसे अन्य निदेशक तत्व भी संविधान में वर्णित हैं, जिनका सीधा प्रभाव अनुसूचित जातियों और जन-जातियों के लोगों पर पड़ता है।
  11. अनुसूचित जातियों और जन-जातियों के अधिकांश लोग अपने संवैधानिक अधिकारों के विषय में नहीं जानते हैं। इसी प्रकार केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा स्वास्थ्य, कानूनी सहायता, शिक्षा, कौशल जैसे क्षेत्रों में चलाए जा रहे जन-कल्याण के अभियानों और योजनाओं के बारे में भी काफ़ी लौग जागरूक नहीं हैं। यही स्थिति कन्या, महिला, किसान  और गरीबॊ के हित में चलाए जा रहे अभियानों और कार्यक्रमों के विषय में भी है। यह अत्यंत जरुरी है कि समाज के इन वर्गो  में, उनके जीवन को अच्छा  बनाने के लिये  सरकार  द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न् कार्यक्रमों की पूरी जानकरी मिले।
  12. आज हम जो भी हैं, जहाँ तक आगे बढ़ें हैं, इस मुकाम तक पहुँचने में हमारे ऊपर बाबा साहब का कर्ज है। हमें इस कर्ज को चुकाना है। यहाँ पहुँचते-पहुँचते, हम अपने अनगिनत भाई-बहनों को पीछे छोड़ आये हैं। हमें आत्म चिंतन करना है कि अपनी क्षमता एवं संसाधनों का उपयोग कर, हम अपने ऐसे भाई-बहनों के लिए क्या कर सकते हैं। मैं यह आप सबके विवेक पर छोड़ता हूँ।
  13. इस संदर्भ में Forum of SC and ST Legislators and Parliamentarians जैसी संस्थाएं समाज के हित में बहुत बड़ा योगदान दे रही हैं। मुझे बताया गया है कि यह फोरम सांसदों और विधायकों को समुचित रूप से जानकारी देते हुए उनके प्रभाव का उपयोग करने में तत्पर है। इस तत्परता के द्वारा संविधान में दिए हुए प्रावधानों और सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों का लाभ अनुसूचित जाति और जन-जातियों के अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाया जा सकेगा। मैं समाज कल्याण में संलग्न इस फोरम को सभी प्रयासों में सफलता की शुभकामनाएं देता हूं।

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