नई दिल्ली: मकर संक्रांति का पर्व पूरा देश मना रहा है. मकर संक्रांति ऐसा त्यौहार है जिसका निर्धारण सूर्य की गति से होता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है. यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति की शुरूआत होती है. इसलिए इस पावन पर्व को उत्तरायणी भी कहते हैं. 14 जनवरी को देशभर में मकर संक्रांति, असम में बिहू, तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात में उत्तरायण, आंध्र प्रदेश में भोगी मनाया जा रहा है.
हिंदू धर्म के इस प्रमुख पर्व पर नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है. देश की प्रमुख नदियों में रविवार सुबह से ही श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई. इलाहाबाद के संगम तट पर लाखों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं माघ मेले का स्नान किया. हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर के ब्रज घाट (हापुड़), इलाहाबाद के संगम तट, वाराणसी में गंगा नदी के तट पर मकर संक्रांति के पावन स्नान के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही.
Magh Mela 2018: Devotees take dip in Triveni Sangam in Allahabad amidst dense fog pic.twitter.com/as2xlRgQCA
— ANI UP (@ANINewsUP) January 14, 2018
पीएम मोदी ने रविवार को देश के विभिन्न राज्यों में मनाए जा रहे अलग-अलग त्योहारों पर देशवासियों को शुभकामनाएं दीं. पीएम मोदी ने ट्विटर पर अपने संदेश में लिखा कि आप सभी को मकर संक्रांति, उत्तरायण, पोंगल की की हार्दिक शुभकामनाएं. मोदी ने गुजरात के लोगों को अपने संदेश में लिखा, उत्तरायण की शुभकामनाएं. प्रधानमंत्री ने बिहू पर असम की जनता को शुभकामनाएं दी.
मकर संक्रांति के पावन अवसर पर सभी देशवासियों को ढेरों बधाई। pic.twitter.com/8SLwZat59s
— Narendra Modi (@narendramodi) January 14, 2018
Pongal greetings to everyone! pic.twitter.com/701iLPUhaZ
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Best wishes on Magh Bihu. pic.twitter.com/feN0XxfksG
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Have a happy and blessed Uttarayan. pic.twitter.com/g7coBoai6E
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मोदी ने ट्विटर पर अपने संदेश हिन्दी और अंग्रेजी के अतिरिक्त असमी, गुजराती, तमिल, तेलुगू भाषा में भी दिए. इस त्योहार को अलग- अलग नामों से जानते हैं. तमिलनाडु में इसे पोंगल नाम से मनात हैं. जबकि जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं. मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी एवं तिल के लड्डू के साथ भगवान सूर्यदेव को भोग लगाते हैं. इस दिन प्रयाग, इलाहाबाद, हरिद्वार, नर्मदा, क्षिप्रा और गंगासागर में स्नान का बड़ा महत्व है.
संक्रांति के दिन होता है सूर्य का उत्तरायण
यह पर्व जनवरी माह के तेरहवें, चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ( जब सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है ) पड़ता है. मकर संक्रांति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है. इसलिए इसको उत्तरायणी भी कहते हैं.
सौ गुना बढ़कर मिलता है दान
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि यानि नकारात्मकता का प्रतीक और उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है. धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है.
इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल दान मोक्ष की प्राप्त करवाता है. मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यंत शुभकारक माना गया है. इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है. सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है. यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छह-छह माह के अंतराल पर होती है.
रातें छोटी व दिन होंगे बड़े
भारत देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है. मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत से दूर होता है. इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है, लेकिन मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है. अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है.
शनि देव से मिलने जाते हैं भगवान भास्कर
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं. चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है.
संक्रांति पर भीष्म पितामह ने त्यागी थी देह
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. इसलिए संक्रांति मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस दिन तिल-गुड़ के सेवन का साथ नए जनेऊ भी धारण करना चाहिए.