नई दिल्ली: केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि सरकार की विभिन्न नीतियों जैसे जैविक खेती, स्वरोजगार योजना, भारतीय कौशल विकास योजना, इत्यादि में महिलाओं को प्राथमिकता दी जा रही है और यदि महिलाओं को अच्छा अवसर तथा सुविधा मिले तो वे देश की कृषि को द्वितीय हरित क्रांति की तरफ ले जाने के साथ देश के विकास का परिदृष्य भी बदल सकती हैं। कृषि मंत्री ने यह बात आज नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय महिला किसान दिवस के अवसर पर कही। इस मौके पर श्रीमती कृष्णा राज, कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री, भारत सरकार श्रीमती अर्चना चिट्नीस, महिला एवं बाल कल्याण मंत्री, मध्य प्रदेश सरकार, डा. त्रिलोचन महापात्रा, डी. जी., आई.सी.ए.आर. भी मौजूद थे।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने बताया कि पिछले वर्ष कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रति वर्ष 15 अक्टूबर को राष्ट्रीय महिला किसान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। निर्णय का आधार था-संयुक्त राष्ट्र संगठन द्वारा 15 अक्टूबर को अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाना। यही वजह है कि देश के समस्त कृषि विश्वविद्यालयो, संस्थानों एवं के.वी.के. में आज राष्ट्रीय महिला किसान दिवस मनाया जा रहा है ।
आज की वर्तमान चुनौती जैसे कि जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण को रोकने तथा प्रबंधन करने में महिलाओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। देखा जाए तो महिलाएं कृषि में बहुआयामी भूमिकाएं निभाती हैं। जहाँ बुवाई से लेकर रोपण, निकाई, सिंचाई, उर्वरक डालना, पौध संरक्षण, कटाई, निराई, भंडारण आदि सभी प्रक्रियाओं से वो जुडी हुई हैं। इसके अलावा वे कृषि से सम्बंधित अन्य धंधो जैसे, मवेशी प्रबंधन, चारे का संग्रह, दुग्ध और कृषि से जुडी सहायक गतिविधियों जैसे मधुमक्खी पालन, मशरुम उत्पादन, सूकर पालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन इत्यादि में भी पूरी तरह सक्रिय रहती हैं।
कृषि क्षेत्र के भीतर, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और क्षेत्रीय कारकों के आधार पर काम करने वाले वैतनिक मजदूरों अपनी स्वयं की जमीन पर श्रम कर रहीं जोतकार और कटाई पश्चात अभियानों में श्रम पर्यवेक्षण और सहभागिता के जरिए कृषि उत्पादन के विभिन्न पहलुओं के प्रबंधन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका हैं। विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार भारतीय कृषि में महिलाओं का योगदान करीब 32 प्रतिशत है, जबकि कुछ राज्यों (जैसे की पहाड़ी तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र तथा केरल राज्य) में महिलाओं का योगदान कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पुरुषों से भी ज्यादा है। भारत के 48 प्रतिशत कृषि से संबंधित रोजगार में औरतें हैं जबकि करीब 7.5 करोड महिलाएं दुग्ध उत्पादन तथा पशुधन व्यवसाय से संबंधित गतिविधियों में सार्थक भूमिका निभाती हैं।
कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में महिलाओं को और अधिक सशक्त बनाने के लिए तथा उनकी जमीन, ऋण और अन्य सुविधाओं तक पहुँच को बढ़ाने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने किसानों के लिए बनी राष्ट्रीय कृषि नीति में उन्हें घरेलू और कृषि भूमि दोनों पर संयुक्त पट्टे देने जैसे नीतिगत प्रावधान किए हैं। इसके साथ कृषि नीति में उन्हें किसान क्रेडिट कार्ड जारी करनाए फसल, पशुधन पद्धतियों कृषि प्रसंस्करण आदि के माध्यम से जीविका के अवसरों का सृजन करवाये जाने जैसे प्रावधानों का भी ज़िक्र है। इसलिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का लक्ष्य आज कृषि उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के साथ.साथ किसानों के कल्याण के लिए उपाय करना है। साथ ही अपने समग्र जनादेशए लक्ष्यों और उद्देश्यों के भीतर यह भी सुनिश्चित करना है कि महिलाएं कृषि उत्पादन और उत्पादकता में प्रभावी ढंग से योगदान दें और उन्हें बेहतर जीवनयापन के अवसर मिले। इसलिए महिलाओं को सशक्त बनाने और उनकी क्षमताओं का निर्माण करने और इनपुट प्रौद्योगिकी और अन्य कृषि संसाधनों तक उनकी पहुंच को बढ़ाने के लिए उचित संरचनात्मकए कार्यात्मक और संस्थागत उपायों को बढ़ावा दिया जा रहा है और इसके लिए कई प्रकार की पहल की जा चुकी हैं ।
कृषि में महिलाओं की अहम भागीदारी को ध्यान में रखते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 1996 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिशद के अंतर्गत केंद्रीय कृषिरत महिला संस्थान की स्थापना भुवनेष्वर में की । यह संस्थान कृषि में महिलाओं से जुड़े विभिन्न आयामों पर कार्य करता है । इसके अलावा भारतीय कृशि अनुसंधान परिषद के 100 से अधिक संस्थानों ने कई तकनीकियों का सृजन किया ताकि महिलाओं की कठिनाईयों को कम कर उनका सशक्तिकरण हो। देश में 680 कृषि विज्ञान केन्द्र हैं । हर कृषि विज्ञान केन्द्र में एक महिला वस्तु विषेशज्ञ (गृह विज्ञान) है। वर्ष 2016-17 में महिलाओं से संबंधित 21 तकनीकियां का मूल्यांकन किया गया और 2.56 लाख महिलाओं को कृषि संबंधित क्षेत्रों जैसे सिलाई, उत्पाद बनाना, वेल्यू एडिशन, ग्रामीण हस्तकला, पशुपालन, मधुमक्खी पालन, पोल्ट्री, मछली पालन, आदि का प्रशिक्षण दिया गया।
इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रमुख योजनाओं/कार्यक्रमों और विकास संबंधी गतिविधियों के अंतर्गत महिलाओं के लिए कम से कम 30% धनराशि का आबंटन सुनिश्चित किया है। साथ ही विभिन्न लाभार्थी-उन्मुखी कार्यक्रमों/योजनाओं और मिशनों के घटकों का लाभ महिलाओं तक पहुचाने के लिए महिला समर्थित गतिविधियां शुरु करना; तथा महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के गठन पर ध्यान केंद्रित करना ताकि क्षमता निर्माण जैसी गतिविधियों के माध्यम से उन्हें माइक्रो क्रेडिट से जोडा जा सके और सूचनाओं तक उनकी पहुंच बढ़ सके एवं साथ ही विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने निकायों में उनका प्रतिनिधित्व हो। इसके अलावा कृषि मंत्रालय द्वारा कई प्रो वीमेन या महिला समर्थित कदम भी लिए गए है जो काफी महत्वपूर्ण हैं।
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