नई दिल्ली: महिला और विकास मंत्रालय तथा यूनिसेफ ने मिलकर अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर आज नई दिल्ली में बालिकाओं के सशक्तिकरण में खेलों की भूमिका विषय पर एक पैनल परिचर्चा आयोजित की। इस परिचर्चा में यूनिसेफ के सद्भावना दूत सचिन तेंदूलकर, भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज, भारतीय महिलाओं की राष्ट्रीय बॉस्केट बॉल टीम की पूर्व कप्तान रसप्रीत सिधु, विशेष ओलंपिक एथलीट रागिनी शर्मा, कराटे चैम्पियन माना मंडलेकर और अंतर्राष्ट्रीय पैरा तैराक तथा ग्वालियर, मध्यप्रदेश से बीबीबीपी चैम्पियन रजनी झा ने भाग लिया।
महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका संजय गांधी ने परिचर्चा की शुरूआत की। इस अवसर पर यूनिसेफ भारत की प्रतिनिधि डॉ यास्मिन अली हक और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में सचिव श्री राकेश श्रीवास्तव भी उपस्थित थे।
सत्र की शुरूआत करते हुए महिला और बाल विकास मंत्री ने कहा कि सरकार लड़कियो और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काफी कार्य कर रही है। मंत्री महोदया ने बताया कि महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं कार्यक्रम लड़कियों का मान बढ़ाने और उनके अधिकारों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध है। मंत्री महोदया ने बताया कि 161 जिलों में शुरू किये गये इस कार्यक्रम के परिणाम अत्यधिक उत्साहवर्द्धक हैं। उन्होंने कहा कि 2015-2016 और 2016-2017 की अवधि में 104 जिलों में जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी) में सुधार देखा गया, 119 जिलों में एएनसी पंजीकरण की तुलना में पहली तिमाही में पंजीकरण में प्रगति दर्ज हुई और 146 जिलों में अस्पतालों में प्रसव कराने की स्थिति में सुधार हुआ।
श्रीमती मेनका संजय गांधी ने कहा कि खेल इस कार्यक्रम का एक ऐसा पहलू है जो महिलाओं और लड़कियों के जीवन में परिवर्तन लाने तथा उनके सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। आज हम लड़कियों के कौशल के प्रदर्शन और उनकी आकांक्षाओं को हासिल करने के लिए मंच के तौर पर खेलों की बेहतर भूमिका का पहचान रहे हैं। मंत्री महोदया ने कहा कि इसी कारण महिला और बाल विकास मंत्रालय तथा खेल एवं युवा मामले मंत्रालय ने खेलों में महिलाओं की अधिक सहभागिता का बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करने का निर्णय लिया है। श्रीमती मेनका संजय गांधी ने बताया कि लड़कियों और महिलाओं की खेलों में भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए एक अभियान शुरू किया जाएगा और इससे भी महत्वपूर्ण लड़कियों के लिए खेल का बुनियादी ढांचा विकसित करने का प्रस्ताव है, जिसके लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय आर्थिक सहयोग देने को तैयार है।
भारत में यूनीसेफ की प्रतिनिधि डॉ. यास्मिन अली हक ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस सभी लड़कियों की जरूरतों और अवसरों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए बहु क्षेत्रीय साझेदारी जारी रखने की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता है। तीन प्राथमिकताओँ जिससे लड़कियों की स्थिति में बदलाव आ सकता है वे हैं लड़कियों की शिक्षा, बाल विवाह पर रोक और उनकी सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करना।
यूनिसेफ के सद्भावना दूत सचिन तेंदुलकर ने कहा कि मेरे जीवन की उपलब्धियां मेरे माता-पिता और परिजनों से प्रेरित है, जिन्होंने मेरी प्रतिभा को बढ़ावा देने के साथ ही बचपन से ही मेरा सहयोग किया। पालकों और समुदायों को अपनी बेटियों को अनमोल समझना चाहिए। उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि बोझ समझ कर जल्दी से बेटियों का विवाह करने की बजाय एक व्यक्ति के तौर पर बेटियों को स्वावलंबी बनाकर समाज में योगदान देने लायक बनाना चाहिए। इसके लिए बेटियों पर निवेश करने की आवश्यकता है जैसा कि भारत सरकार कर रही है। हमें माता-पिताओं के सिर से वित्तीय बोझ कम करना चाहिए ताकि लड़कियां अपनी शिक्षा पूरी कर सकें और समाज में अपनी क्षमताओं के अनुरूप कदम उठाये तथा अपनी आकांक्षाओं को पूरा करें।
हमें माता-पिताओं की चिंताओं का समाधान कर उन्हें संभावित बदलाव लाने में शामिल करना चाहिए। बाल विवाह और अन्य सामाजिक दबावों से बच्चे की प्रगति बाधित होती है। मैं बाल विवाह निषेध और हमारी लड़कियों के लिए बेहतर दुनिया बनाने का पक्षधर हूं।
ओलंपिक पैरा एथलीट रागिनी शर्मा ने कहा कि लैंगिकता से परे एक खिलाडी सामाजिक, शारीरिक और सामुदायिक बाधाओं को पार कर सकता है। मैं सरकार के बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं कार्यक्रम के सराहना करती हूं जिससे देशभर में लोगों के विचारों में बदलाव आया कि हम सब मिलकर कैसे बालिका का जीवन सुनिश्चित कर सकते हैं और उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में फलने फुलने का समान अवसर दे सकते हैं।
मिताली राज ने कहा कि एक खिलाड़ी के तौर पर मुझे विश्वास है कि लैंगिकता मायने नहीं रखती है। प्रत्येक बच्चे को खेलों में भाग लेना चाहिए क्योंकि इससे टीम भावना को बढ़ावा मिलता है, मानसिक ताकत बढ़ती है, बच्चे स्वस्थ रहते हैं और इससे वे जीवन की चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम बनते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय पैरा तैराक रश्मि झा ने भारत सरकार के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि “लड़कियों और लड़कों, महिलाओं और पुरुषों के लिए समानता हमारे अपने घरों और जीवन से ही शुरू करके हासिल की जाती है। घर, स्कूल और कॉलेज में एक सक्षम और सहयोगी वातावरण लड़कियों के लिए विभिन्न बाधाओं को दूर करने और अधिक से अधिक लड़कियों को खेलों के लिए प्रोत्साहित करके लैंगिक समानता की दिशा में काफी मदद कर सकता है।”
महिला और बाल विकास सचिव श्री राकेश श्रीवास्तव ने समापन संबोधन दिया और कहा कि उनका मंत्रालय लैंगिक समानता को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने लडकियों और महिलाओं के पक्ष में राष्ट्रीय और मुख्यधारा के क्षेत्र में महिलाओं की सफलता की सकारात्मक कहानियों को उजागर करने में मीडिया के सहयोग की सराहना की।
9 अक्टूबर से 14 अक्टूबर, 2017 तक आयोजित होने वाले “बेटी बचाओ बेटी पढाओ सप्ताह- नए भारत की बेटियों” के आयोजन के एक हिस्से के रूप में अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर इस पैनल चर्चा का आयोजन भारत सरकार की बेटी बचाओ, बेटी पढाओ कार्यक्रम की पृष्ठभूमि में बालिकाओं के महत्व का सृजन करने के लिए किया गया था। इस कार्यक्रम में बालिकाओं के अस्तित्व, संरक्षण, शिक्षा और विकास पर महत्वपूर्ण ध्यान दिया गया है। पैनल के सदस्यों ने लंबी अवधि के समाधानों पर चर्चा की जिन्हें बालिकाओं के महत्व को बढ़ाने उनके लचीलेपन को मजबूत करने और परिवर्तनकारी तथा जीवंत पर्यंत अवसरों और आकांक्षाओं को उपलब्ध कराने के लिए एक प्रेरक के रूप में लडकियों के लिए खेल का उपयोग करने हेतु तैयार किया जा सकता है। शिक्षा और जीवन कौशल के साथ लड़कियों के महत्व और सशक्तिकरण को बढ़ाने के लिए खेल की उत्प्रेरित भूमिका पर भी चर्चा हुई।
भारत सरकार के बीबीबीपी जैसे बहुआयामी कार्यक्रमों ने देश में लाखों लडकियों और उनके परिवारों को अवसर उपलब्ध कराकर और बालिकाओं के भविष्य का निर्माण करके सशक्त बनाया है। जैसे जैसे महिलाओं के खेल अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं लडकियां इनसे समर्थ बनती हैं। यहां तक कि अधिकांश वंचित तबकों की लडकियों को जो विशेष रूप से बाल विवाह की जोखिम से ग्रस्त हैं या पहले से ही विवाहित हैं वे भी खेलों में भाग लेकर अपने सपनों को पूरा कर रही हैं। बीबीबीपी कार्यक्रम किशोरावस्था की लड़कियों की परिवर्तन लाने और चैंपियन बनने क्षमता को स्वीकार करता है, पुराने ढर्रे को तोडने, अपने अधिकारों और गरिमा का दावा करने और दूसरों को ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करने की संभावनाओं को स्वीकार करता है।