17.2 C
Lucknow
Online Latest News Hindi News , Bollywood News

मुख्यमंत्री ने उत्तर प्रदेश सरकार का ‘श्वेत पत्र-2017’ जारी किया

मुख्यमंत्री ने उत्तर प्रदेश सरकार का ‘श्वेत पत्र-2017’ जारी किया
उत्तर प्रदेश

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने लोक भवन में आयोजित प्रेस वार्ता में उत्तर प्रदेश सरकार का ‘श्वेत पत्र-2017’ जारी करते हुए कहा कि पिछले 15 वर्षों के दौरान सत्ता में रही सरकारों के कार्यकाल में प्रदेश के सभी क्षेत्रों में कुव्यवस्था व्याप्त थी। जन साधारण तथा जनमत के प्रति असाधारण संवेदनहीनता का परिचय देते हुए असामाजिक तत्वों, भ्रष्टाचारियों को प्रश्रय दिया गया। एक के बाद एक घोटाले हुए। उन्हें श्वेत पत्र के माध्यम से जनता के समक्ष रखा जा रहा है।

मुख्यमंत्री जी कहा कि विगत 15 वर्षाें में प्रदेश के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पी0एस0यू0) की स्थिति काफी खराब हुई है। प्रदेश के कार्यरत पी0एस0यू0 की वर्ष 2011-12 में 6489.58 करोड़ रुपए की हानियां वर्ष 2015-16 में बढ़कर 17789.91 करोड़ रुपए हो गईं। राज्य के पी0एस0यू0 की संचित हानियां 2011-12 में 29380.10 करोड़ रुपए से अधिक थीं, जो 2015-16 में बढ़कर 91401.19 करोड़ रुपए हो गईं। वर्ष 2011-12 में पी0एस0यू0 के ऋण जहां 35952.78 करोड़ रुपए थे, वे 2015-16 में बढ़कर 75950.27 करोड़ रुपए हो गए। इससे साफ है कि सार्वजनिक उपक्रमों के संचालन में वित्तीय अनुशासनहीनता और भरपूर घोटाले किए गए। पूर्ववर्ती सरकारों की त्रुटिपूर्ण नीतियों, वित्तीय नियमों की अनदेखी और अनुपयोगी व्यय के कारण प्रदेश की वित्तीय स्थिति में असन्तुलन उत्पन्न हुआ।

योगी जी ने कहा कि एक तरफ राज्य सरकार ने स्वयं के कर राजस्व में वृद्धि के प्रयास नहीं किए वहीं दूसरी ओर राजस्व व्यय में अत्यधिक वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप सरकार के पूंजीगत परिव्यय में गिरावट आयी। जब वर्तमान सरकार ने कार्यभार सम्भाला तो उस समय राजकोष खाली हो चुका था और राज्य सरकार की ऋणग्रस्तता अत्यधिक बढ़ चुकी थी। 31 मार्च, 2007 को सरकार की ऋणग्रस्तता 1,34,915 करोड़ रुपए थी, तो 31 मार्च, 2017 को बढ़कर 3,74,775 करोड़ रुपए हो गई। इस प्रकार 10 वर्षाें की अवधि में प्रदेश की ऋणग्रस्तता ढाई गुना हो गई। वित्तीय वर्ष 2009-10 में पूंजीगत परिव्यय 25,091 करोड़ रुपए था जो वर्ष 2010-11, 2011-12 व 2012-13 में घटकर क्रमशः 20,272 करोड़ रुपए, 21,574 करोड़ रुपए तथा 23,834 करोड़ रुपए हो गया। स्पष्ट है कि राजकोषीय घाटा या तो 3 प्रतिशत से अधिक रहा है अथवा विकासात्मक व्यय मंे कमी कर इसे 3 प्रतिशत तक रखा गया। उन्होंने कहा कि इन तथ्यों से जाहिर होता है कि तत्कालीन राज्य सरकारें वित्तीय अनुशासन कायम करने में नाकाम रहीं।

ज्ञातव्य है कि श्वेत पत्र में कानून-व्यवस्था, किसानों की बदहाली, चीनी मिलों का विक्रय, लोक निर्माण विभाग के कार्य प्रणाली, सरकारी नौकरियों को देने में भेदभाव व पक्षपात पर प्रकाश डाला गया है। इसके साथ ही तत्कालीन राज्य सरकारों के समय में खाद्य एवं रसद, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, खनिज एवं खनिकर्म, पर्यटन व संस्कृति, आवास एवं शहरी नियोजन, प्रधानमंत्री आवास योजना, महिला कल्याण एवं बाल विकास, नागरिक उड्डयन, आबकारी, औद्योेगिक विकास, अल्पसंख्यक कल्याण, स्मारकों का निर्माण व परिवहन आदि विभागों की कार्य प्रणाली का उल्लेख किया गया है।

श्वेत पत्र में कहा गया है कि 19 मार्च, 2017 को सत्ता सम्भालने के साथ ही वर्तमान सरकार को विरासत में अराजकता, गुण्डागर्दी, अपराध एवं भ्रष्टाचार मय विषाक्त वातावरण मिला। ध्वस्त कानून-व्यवस्था के कारण निवेशक और व्यापारी भी प्रदेश में अपना कारोबार संचालित नहीं कर पा रहे थे। सार्वजनिक एवं निजी भूमि पर जबरन कब्जा करने वाले अपराधियों एवं भू-माफियाओं का प्रदेश में बोलबाला था। थानों में एफ0आई0आर0 दर्ज करने में घोर भेदभाव किया जाता था। प्रायः अपराधियों के विरुद्ध एफ0आई0आर0 दर्ज नहीं की जाती थी। कांस्टेबल एवं उपनिरीक्षकों के डेढ लाख से अधिक पद रिक्त होने के बावजूद भरने के लिए सार्थक प्रयास नहीं किया गया। जून, 2016 में जनपद मथुरा के जवाहर बाग की घटना प्रदेश में ध्वस्त कानून-व्यवस्था की स्थिति का प्रमाण है। पूर्ववर्ती सरकारों में प्रदेश के कारागार वस्तुतः आरामगाह के रूप में परिवर्तित हो गए थे। कारागारों में निरुद्ध बंदियों को मोबाइल फोन सहित सारी सुविधाएं सुलभ थीं। पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में मथुरा, मुजफ्फरनगर, बरेली सहित लगभग सभी प्रमुख जनपदों में साम्प्रदायिक दंगे हुए। इस प्रकार पिछली सरकार के कार्यकाल में सप्ताह में औसतन दो दंगे हुए।

पूर्व सरकारों की उपेक्षापूर्ण नीतियों के कारण किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य न मिलने एवं चीनी मिलों द्वारा समय से पूरा भुगतान न करने के कारण किसानों की माली हालत खराब थी। विगत पांच वर्षों में गन्ना किसानों को गन्ना मूल्य भुगतान समय से नहीं किया गया। वर्ष 2014-15 का करीब 45 करोड़, वर्ष 2015-16 का करीब 235 करोड़ रुपए तथा वर्ष 2016-17 का लगभग 2300 करोड़ रुपए से अधिक गन्ना मूल्य नई सरकार के गठन पर बकाया था। उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम लि0 की मिलों के निजीकरण/विक्रय करने का निर्णय जून, 2007 में लिया गया। इस पूरी प्रक्रिया में नियमों को ताक पर रखते हुए प्रक्रिया के पूरे चरण में घोर अनियमितताएं बरती गई। निगम के अधीन 11 बंद चीनी मिलों में से 10 इकाइयों के पुनर्संचालन का कोई प्रयास नहीं किया गया।

भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के निष्पादन लेखा परीक्षा प्रतिवेदन में उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम तथा उत्तर प्रदेश चीनी एवं गन्ना विकास निगम की चीनी मिलों के विक्रय में अनियमिततायें इंगित की र्गइं। मिलों के विक्रय हेतु अपनाई गई बिडिंग प्रक्रिया में प्रतिस्पर्धा की पूर्ण कमी थी और बिडर्स में साठगाँठ के कारण चीनी निगम की तीन मिलों के सम्बन्ध में एक्सपेक्टेड मूल्य 291.55 करोड़़ रुपए के विरुद्ध केवल 166.85 करोड़़ रुपए की प्राप्ति हुई। चीनी एवं गन्ना विकास निगम की 11 मिलों के प्रकरण में कुल एक्सपेक्टेड मूल्य 173.63 करोड़ रुपए के विरुद्ध 91.65 करोड़ रुपए की प्राप्ति हुई।

पर्याप्त वित्तीय संसाधनों के न होते हुये भी प्रदेश में बहुत सी सड़कों की स्वीेकृति प्रदान कर दी गई लेकिन उन्हें पूरा किए जाने की कोई कार्ययोजना नहीं बनाई गई। पिछली सरकारें सड़कों के निर्माण के प्रति गम्भीर नहीं थीं, बल्कि ठेकेदारों को लाभ पहुँचाने की दृष्टि से बिना धनराशि उपलब्ध हुए अनुबंध कर लिये गये। त्वरित आर्थिक विकास योजनातंर्गत 230 कार्य अपूर्ण रह गए जिनको पूर्ण कराने हेतु लगभग 1385 करोड़़ रुपए की देनदारी है।

कुछ आपराधिक छवि के ठेकेदारों द्वारा एक तरह से एकल वर्चस्व बना लिया गया था जिनको प्रदेश के बहुत से कार्यों के ठेके दे दिए गए। उपशा के कार्यों की समीक्षा में पाया गया कि दिल्ली-यमुनोत्री मार्ग का निर्माण जो पी0पी0पी0 योजना के अन्तर्गत पूर्व में स्वीकृत किया गया था, उसमें व्यापक स्तर पर अनियमितताओं की शिकायतें हैं। पूर्व सरकार द्वारा इस परियोजना पर ध्यान न दिए जाने और उपचारी प्रयास न किये जाने के कारण इस परियोजना पर विवाद उत्पन्न हो गया। लोक निर्माण विभाग में पंजीकृत ठेकेदारों की बडी संख्या के बावजूद वर्ष 2011-2016 की अवधि में 3300.79 करोड़ रुपए लागत के 5988 अनुबन्ध (75 प्रतिशत) मात्र 1 या 2 निविदाओं के आधार पर किये गये।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना प्रदेश में क्रियान्वित ही नहीं की गई। पिछली सरकारों में सहकारी समितियों का तंत्र ध्वस्त कर दिया गया, जिसके कारण किसानों को समितियों के माध्यम से बीज और खाद मुहैया नहीं हो सके। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य देने की कोई प्रभावी व्यवस्था न होने के कारण किसानों पर बैंकों के फसली ऋण की बकाया ऋण राशि बढ़ती गयी। गेहूं की औसतन प्रतिवर्ष 05-06 लाख मीट्रिक टन खरीद की गई। यह खरीद भी आढ़तियों के माध्यम से करायी गयी, जिससे किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल सका। आलू की खरीद के लिए मूल्य समर्थन की कोई व्यवस्था न होने के कारण आलू उत्पादक किसानों को मजबूर होकर या तो आलू की खेती छोड़नी पड़ी या अपने उत्पाद को सड़कों पर फेंकने के लिए मजबूर होना पड़ा।

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग सहित भर्ती करने वाली अन्य संस्थाओं में अराजकता का माहौल था। प्रतियोगी परीक्षाओं में भेद-भाव बरता गया। न्यायपूर्ण परिणाम न मिलने से नौजवान हताश व कुंठाग्रस्त थे। विद्युत आपूर्ति जैसी मूलभूत आवश्यकता में भेदभाव किया गया। सुचारू विद्युत आपूर्ति को केवल दर्जन भर जिलों तक सीमित कर दिया गया। सड़कों के रख-रखाव और उनकी मरम्मत की ओर कोई ध्यान न देने से हजारों किमी0 सड़कंे गड्ढ़ायुक्त हो गईं। ग्रामीण सड़कों की मरम्मत पिछले 10 वर्षाें से अधिक समय से प्रायः नहीं हुईं। भौतिक सत्यापन के बाद करीब 01 लाख 21 हजार किलोमीटर से अधिक सड़कें गड्ढायुक्त पायी गईं, जिनमें 85 हजार किलोमीटर से अधिक लोक निर्माण विभाग की सड़कें हैं। विकास परियोजनाओं को वर्षों तक लम्बित रखने के कारण उनकी लागत में बढ़ोत्तरी हुई। सिंचाई विभाग की अनेक परियोजनाएं इसका जीता-जागता उदाहरण है। सिंचाई की महत्वपूर्ण परियोजनाएं-सरयू नहर, बाण सागर, अर्जुन सहायक, मध्य गंगा, भौरट बांध, कन्हर, ऐरच, जसराना, जमरार, कंचननौदा आदि को पूरा नहीं किया गया, जिस वजह से जहां एक ओर इनकी लागत में भारी वृद्धि हुई, वहीं दूसरी ओर किसान आज भी प्रस्तावित सिंचाई सुविधा से वंचित हैं। प्रदेश के कई इलाके लगातार बाढ़ की विभीषिका से ग्रस्त रहे। बाढ़ से सुरक्षा हेतु सुरक्षात्मक कार्य नहीं कराए गए, जिसकी वजह से जनमानस को लगातार बाढ़ की विभीषिका को झेलना पड़ा। बुन्देलखण्ड एवं पूर्वांचल के विकास पर ध्यान न देने के कारण यहां की सड़कें काफी खराब हो गई। गम्भीर उपेक्षा के कारण ये दोनों क्षेत्र मुख्य धारा में नहीं आ सके।

पूर्ववर्ती सरकारों में ऐसे कामों का लोकार्पण किया गया, जो उस समय पूरे नहीं थे। ऐसी अधूरी परियोजनाओं में लखनऊ मेट्रो रेल, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे, जय प्रकाश नारायण अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र, गोमती रिवर फ्रंट, अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, कैंसर इंस्टीट्यूट, एस0जी0पी0जी0आई0 का ट्राॅमा सेण्टर आदि शामिल हैं। आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे का दिसम्बर, 2016 में उद्घाटन कर दिया गया, जबकि साइड रोड, ड्रेन, फेनसिंग, पब्लिक एमेनिटी, टोलबूथ व ट्रैफिक मैनेजमेन्ट सिस्टम या तो प्रारम्भ ही नहीं हुआ अथवा अधूरा था। साइनेजेज लगाए बिना सड़क पर यातायात प्रारम्भ कर दिया गया था, जो कि यात्री सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बना।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन के प्रति तत्कालीन सरकार ने पूर्ण अरूचि प्रदर्शित की, जबकि यह कार्यक्रम नगरीय एवं ग्रामीण आबादी को स्वच्छ व स्वस्थ परिवेश देने की दिशा में बड़ा व सार्थक प्रयास था। पिछली सरकारों के कार्यकाल में गरीबों का राशन उन तक न पहुंचाकर बाजार में बेचने का अनैतिक एवं गैर कानूनी काम किया गया। भ्रष्टाचार के कारण लगभग 50 लाख की संख्या में फर्जी राशन कार्ड जारी किए जाने की आशंका है। अब तक सत्यापन में पात्र गृहस्थी के लगभग 26 लाख 21 हजार तथा अन्त्योदय के करीब 98 हजार राशन कार्ड अपात्र पाए गए हैं।

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की स्थिति पूरी तरह से चरमरा गई थी। अस्पतालों में लगभग 40 फीसदी चिकित्सकों के पद रिक्त थे। सरकारी अस्पतालों में औषधियों की समुचित व्यवस्था न होने के कारण जन सामान्य को अधोमानक दवाइयों के उपयोग के लिए बाध्य होना पड़ा। राजकीय मेडिकल काॅलेजों में मानक के अनुरूप न तो शिक्षक थे और न ही आवश्यक उपकरण। कई स्थानों पर मेडिकल काॅलेजों के लिए भवन निर्मित करा दिए गए, परन्तु वहां पर आवश्यक स्टाफ की तैनाती नहीं की गई। इससे शासकीय धन निष्प्रयोज्य पड़ा रहा और जनता को इनका कोई लाभ नहीं मिल पाया। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत नगर विकास विभाग द्वारा पिछले वर्षों में अनापत्ति नहीं दी गई, जिसके कारण योजना के तहत केन्द्र सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त नहीं हो सकी।

अल्पसंख्यक कल्याण हेतु वर्ष 2012-13 से 2016-17 तक बजट में 13 हजार 804 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई, जबकि इसके सापेक्ष मात्र 04 हजार 830 करोड़ रुपए की धनराशि का ही उपयोग किया गया। इस प्रकार लगभग 09 हजार करोड़ रुपए, जो अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों को लाभान्वित करने में व्यय किए जा सकते थे, अनुपयुक्त पड़े रहे। इससे सामान्य बुद्धि-विवेक का व्यक्ति भी अल्पसंख्यकों के कल्याण का डंका पीटने वाली सरकार के संकल्प को समझ सकता है। अल्पसंख्यक कल्याण का नारा उनके लिए मात्र वोट हासिल करने का उपक्रम था।

अल्पसंख्यक कल्याण हेतु वर्ष 2012-13 से वर्ष 2016-17 तक बजट में प्राविधानित धनराशि 13,804 करोड़ रुपए के सापेक्ष 4,830 करोड़ रुपए की धनराशि का उपयोग नहीं किया गया। यह धनराशि जो अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों को लाभान्वित करने में व्यय की जा सकती थी, अनुपयुक्त रही। इससे सामान्य बुद्धि विवेक का व्यक्ति भी समझ सकता है कि अल्पसंख्यकों के कल्याण का डंका पीटने वाली सरकार कितनी संकल्पित थी। अल्पसंख्यक कल्याण का नारा उनके लिए मात्र वोट हासिल करने का एक उपक्रम था।

नियंत्रक महालेखा परीक्षक द्वारा 31 मार्च, 2013 को समाप्त वर्ष के लिए अपने प्रतिवेदन में कहा गया है कि वर्ष 2007-08 से वर्ष 2009-10 के बीच प्रदेश सरकार द्वारा लखनऊ में 04 व नोएडा में 01 स्मारक के निर्माण की स्वीकृति प्रदान की गई। परियोजनाओं की मूल वित्तीय स्वीकृति लगभग 944 करोड़ रुपए की थी, जो अंत में संशोधित होकर 04 हजार 558 करोड़ रुपए हो गई। इस प्रकार लागत में 483 प्रतिशत की वृद्धि हुई। परियोजनाओं का कभी भी एक साथ निरोपण नहीं किया गया। भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की संवीक्षा से स्पष्ट होता है कि स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं की गईं।

विगत पांच वर्षों में परिषदीय विद्यालयों में 23.62 लाख छात्र-छात्राओं की संख्या में गिरावट दर्ज की गई। इससे स्पष्ट है कि बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में अध्यापकों की तैनाती छात्र संख्या के मानक के अनुरूप नहीं की गई, जिसके फलस्वरूप विभिन्न विद्यालयों में 65 हजार 597 अध्यापक छात्र संख्या के मानक से अधिक तैनात थे, जबकि दूसरी ओर लगभग 07 हजार 587 विद्यालय एकल अध्यापकीय थे। कक्षा 01 से 08 तक के छात्र-छात्राओं को निःशुल्क पाठ्य पुस्तक, यूनीफाॅर्म, निःशुल्क बैग आदि के क्रय एवं वितरण में पारदर्शिता का अभाव था। इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य, डाॅ0 दिनेश शर्मा सहित मंत्रिमण्डल के अन्य सदस्य एवं प्रमुख सचिव सूचना श्री अवनीश कुमार अवस्थी उपस्थित थे।

Related posts

Leave a Comment

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More