देहरादून: ऐरोमेटिक प्लांट्स व उनके उत्पादों की मार्केटिंग पर विशेष फोकस किया जाए। एग्री बिजनेस कन्सोर्सियम बनाया जाए। ऐरोमेटिक प्लांट्स की उत्पादकता को बढ़ाया जाए। गुरूवार को राजभवन में सेंटर फाॅर एरोमेटिक प्लांट्स (कैप), सेलाकुई के कार्यों की समीक्षा करते हुए राज्यपाल डाॅ. कृष्ण कांत पाल ने उक्त निर्देश दिए। गुरूवार को राजभवन में सेंटर फाॅर एरोमेटिक प्लांट्स (कैप), सेलाकुई के प्रभारी डाॅ. नृपेंद्र सिंह चैहान ने राज्यपाल डाॅ. कृष्ण कांत पाल को राज्य में ऐरोमेटिक प्लांट्स को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी। राज्यपाल ने उत्तराराखण्ड मे ऐरोमेटिक प्लांट्स की मार्केटिंग पर विशेष फोकस किए जाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए मार्केटिंग विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा सकती हैं। उत्पादकों की सहायता के लिए एग्री बिजनेस कन्सोर्सियम बनाया जाए। मार्केटिंग की पुख्ता व्यवस्था सुनिश्चित होने पर उत्तराराखण्ड में ऐरोमेटिक प्लांट्स, यहां के काश्तकारों की आय का महत्वपूर्ण साधन हो सकते हैं। उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सगंध पौधों की क्वालिटी सुधार के लिए विशेष प्रयास किए जाएं। राज्यपाल ने राजभवन परिसर में भी ऐरोमेटिक प्लांट लगाए जाने के निर्देश दिए। कैप के प्रभारी डाॅ. नृपेंद्र चैहान ने बताया कि श्री राज्यपाल के पूर्व में दिए गए निर्देशों के क्रम में उत्तराराखण्ड में डमस्क रोज (rose) के उत्पादन व विपणन के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। डमस्क रोज आॅयल का समर्थन मूल्य 4.5 लाख रूपए प्रति किग्रा दिया जा रहा है। राज्य में इसके उत्पादन के लिए 31 क्लस्टर व 58 डिस्टीलेशन पाॅइन्ट बनाए गए हैं। लगभग 71 हेक्टेयर क्षेत्र में 1200 किसान, कैप के सहयोग से इसका उत्पादन कर रहे हैं। राज्य में मुन्स्यारी, चकराता, गरूड़, टिहरी, पौड़ी आदि क्षेत्रों में इसका उत्पादन किया जा रहा है। इस वर्ष राज्य में लगभग 80 क्विंटल रोज वाटर व 1.5 किग्रा रोज आॅयल का उत्पादन हुआ है। डमस्क रोज आॅयल का उपयोग मुख्यतः परफ्यूम व पान मसाला उद्योग में किया जाता है। बैठक में बताया गया कि पिलग्रिम (pilgrim) मार्केटिंग की नीति के तहत लेमन ग्रास, मिंट, बेसिल, पामा रोजा, आर्टिमिसिया, दालचीनी आदि ऐरोमेटिक प्लांटस से बने सुगन्धित आॅयल के विपणन में सहायता की जा रही है। कैप द्वारा उपलब्ध कराई जा रही 10 मिलीलीटर की शीशी में सुगन्धित आॅयल की पैकेजिंग कर यात्रा रूट पर श्रद्धालुओं को विक्रय किया जा रहा है। इससे उत्पादक किसानों को सुगन्धित आॅयल की अच्छी कीमत मिल जाती है।