देहरादून: राज्यपाल डाॅ. कृष्ण कांत पाल ने कहा है कि हर्बल उत्पादों के समुचित क्वालिटी कंट्रोल, गहन शोध व विश्वसनीय चिकित्सकीय परीक्षण द्वारा आयुर्वेद को विश्व स्तर पर व्यापक पहचान दिलाई जा सकती है। राज्यपाल, इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ पैट्रोलियम, देहरादून में उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय द्वारा ‘‘रिसेंट एडवांसेस इन आयुर्वेदिक हर्बल मेडिसिन- फ्राॅम सोर्स टू मेन्यूफेक्चरिंग’’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे।
नेशनल मेडिकीनल प्लांट्स बोर्ड, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित सम्मेलन में राज्यपाल डाॅ. कृष्ण कांत पाल ने आयुर्वेदिक औषधियों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए इनके निर्माण में उच्च मानकों का पालन किए जाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया में औषधीय पौधों की तेजी से बढ़ती हुई मांग को देखते हुए इनकी प्रभावोत्पादता व सुरक्षा उपायों के उच्च मानक स्थापित किए जाने की आवश्यकता है। क्वालिटी कंट्रोल के साथ ही औषधीय पौधों को कीटाणुओं, कीटनाशकों व अन्य प्रदूषकों से बचाना होगा।
राज्यपाल ने कहा कि आयुर्वेद व योग हजारों वर्षों से भारत की जीवन पद्धति का हिस्सा रहे हैं। आयुर्वेद दृढ़ बुनियादी सिद्धांतों पर आधारित विज्ञान की सुव्यवस्थित शाखा है। अथर्ववेद में जिन भी जउ़ी बूटियों का जिक्र है, वे सभी उत्तराखण्ड में पाई जाती हैं। कह सकते हैं कि आयुर्वेद की उत्पत्ति उत्तराखण्ड में हुई है। इसलिए आयुर्वेद को आगे बढ़ाने व इसमें लोगों की विश्वसनीयता बनाने में उत्तराखण्ड का सर्वाधिक दायित्व है। उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। विश्वविद्यालय, हर्बल पौधों में गहन अनुसंधान के लिए कार्ययोजना बनाए। इस अनुसंधान का लाभ पूरी मानवता को मिलना चाहिए। बाहर के देशों में केवल अश्वगंधा, सर्पगंधा व नीम पर आधारित आयुर्वेदिक दवाईयों की ही स्वीकार्यता स्थापित हो पाई है क्योंकि इनमें पर्याप्त अनुसंधान हुआ है। आयुर्वेद में फार्माकोपियो (औषधियों की सूची, जिसमें कि औषधियों का प्रभाव व उनके उपयोग का वर्णन होता है) बनाना चाहिए। इसके तहत हर्बल औषधि विशेष के लिए आवश्यक मृदा, तापमान, जलवायु, उर्वरक संबंधी दशाओं की जानकारी हो।
केबिनेट मंत्री डाॅ. हरक सिंह रावत ने कहा कि देश की जैव विविधता का 28 प्रतिशत उत्तराखण्ड में है। आयुर्वेद में बहुत काम किया जाना है। इसके लिए व्यवहारिक नीतियां बनानी होंगी। वैज्ञानिक तरीकों से लोगों में आयुर्वेद के प्रति विश्वास बढ़ाना होगा। आयुर्वेद से जुड़े लोगों को समर्पण की भावना से काम करना होगा। गम्भीरता के साथ अनुसंधान कार्य करने होंगे। केबिनेट मंत्री डाॅ. रावत ने कहा कि जायका के तहत औषधीय महत्व के पेड़ लगाने को प्राथमिकता दी जाएगी।
कार्यक्रम में सचिव आयुष श्री हरबंस सिंह चुघ,उत्तराखण्ड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर ए.के. त्रिपाठी, सीएसआईआर आइ्रआईपी के निदेशक डाॅ. अंजन रे, यूकाॅस्ट के महानिदेशक डाॅ. राजेंद्र डोभाल व अन्य उपस्थित थे।