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राष्ट्रपति ने गोमातेश्वर भगवान श्री बाहुबली स्वामी के महामस्तक अभिषेक महोत्सव 2018 का श्रवणबेलागोला में उद्घाटन किया

देश-विदेश

नई दिल्लीः राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने गोमातेश्वर भगवान श्री बाहुबली स्वामी के महामस्तक अभिषेक महोत्सव 2018 का श्रवणबेलागोला में उद्घाटन किया।

इस अवसर पर संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति ने महामस्तक अभिषेक महोत्सव 2018 को सफलता पूर्वक संपन्न कराने के लिए आयोजकों और तीर्थ यात्रियों को अपनी शुभकामनाएं भी दीं। उन्होंने कहा कि सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र – जैन दर्शन के तीन रत्न के रूप में जाने जाते हैं। ये पूरी दुनिया के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। सार्वभौमिक कल्याण के मार्ग को शांति, अहिंसा, भाईचारे, नैतिकता और बलिदान द्वारा ही प्रेषित किया जा सकता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश के विभिन्न हिस्सों से और साथ ही दुनिया भर से श्रद्धालु बड़ी संख्या में श्रवणबेलागोला आकर विश्व शांति की प्रार्थना कर रहे हैं।यह हम सभी के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने सभी भक्तों को उनके कल्याण के प्रयासों में सफल होने की कामना की।

1.    इस स्थान पर आप सब के बीच आकर तथा शांति, अहिंसा और करुणा के प्रतीक भगवान बाहुबली की इस भव्य प्रतिमा को देखकर मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है। यह क्षेत्र धर्म, अध्यात्म और भारतीय संस्कृति का केंद्र रहा है और सदियों से मानवता के कल्याण का संदेश देता रहा है।

2.    इस महोत्सव में आने के लिए मुख्यमंत्री जी ने आग्रह कियाऔर निमंत्रण भेजा। केंद्रीय मंत्री श्री अनंतकुमार जी ने भी यहां आने का अनुरोध किया। इस महोत्सव के आयोजकों ने भी राष्ट्रपति भवन आकर आमंत्रण दिया। कर्नाटक के लोगों की सदाशयता में कुछ ऐसा विशेष आकर्षण है जो मुझे यहां बार-बार आने के लिए प्रेरित करता है। राष्ट्रपति बनने के बाद, पिछले लगभग छ: महीनों के दौरान, कर्नाटक की यह मेरी तीसरी यात्रा है।

3.    हमसभी जानते हैं, आदिनाथ ऋषभदेव के पुत्र भगवान बाहुबली चाहते तो अपने भाई भरत के स्थान पर राजसुख भोग सकते थे। लेकिन उन्होने अपना सब कुछ त्याग कर तपस्या का मार्ग अपनाया और पूरी मानवता के कल्याण के लिए अनेक आदर्श प्रस्तुत किये। लगभग एक हजार वर्ष पहले बनाई गई यह प्रतिमा उनकी महानता का प्रतीक है। इस प्रतिमा के कारण यह स्थान आज देश-विदेश में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

4.    यह स्थान हमारे देश की सांस्कृतिक और भौगोलिक एकता का एक बहुत ही प्राचीन केंद्र रहा है। कहा जाता है कि आज से लगभग तेइस सौ वर्ष पूर्व, मध्य प्रदेश के उज्जैन क्षेत्र से जैन आचार्य भद्रबाहु यहां पधारे थे। बिहार के पटना क्षेत्र से उनके शिष्य, विशाल मौर्य साम्राज्य के संस्थापक, सम्राट चन्द्रगुप्त यहां आए थे।वह अपनी शक्ति के शिखर पर रहते हुए भी, सारा राज-पाट अपने पुत्र बिन्दुसारको सौंपकर यहां आ गए थे।यहां आकर उन्होने एक मुनि का जीवन अपनाया और तपस्या की। यहीं चंद्रगिरि की एक गुफा में, अपने गुरु का अनुसरण करते हुए, सम्राट चन्द्रगुप्त ने भी सल्लेखना का मार्ग अपनाया और अपना शरीर त्यागकिया। उन राष्ट्र निर्माताओं ने शांति, अहिंसा,करुणा और त्याग पर आधारित परंपरा की यहां नींव डाली। धीरे-धीरे पूरे देश के अनेक क्षेत्रों से लोग यहां आने लगे।इस प्रकार इस क्षेत्र का आकर्षण बढ़ता गया।

5.    जैन परंपरा की धाराएं पूरे देश को जोड़ती हैं। मैं जब बिहार का राज्यपाल था, तो वैशाली क्षेत्र में भगवान महावीर की जन्मस्थली, और नालंदा क्षेत्र में उनकी निर्वाण-स्थली,पावापुरी में कई बार जाने का मुझे अवसर मिला। आज यहां आकर, मुझे उसी महान परंपरा से जुड़ने का एक और अवसर प्राप्त हो रहा है।

6.    मुझे बताया गया है कि लगभग एक हजार वर्ष पहले इस विशाल और भव्य प्रतिमा का निर्माण हुआ था। इस प्रतिमा का निर्माण कराने वाले गंग वंश के प्रधानमंत्री चामुंडराय और उनके गुरु ने सन 981 में यहां पहला अभिषेक किया था। उसके बाद हर बारह वर्ष पर अभिषेक की परंपरा शुरू हुई, जो आज भी जारी है।

7.    भगवान बाहुबली की यह विशाल प्रतिमा जो हम सब देख रहे हैं, यह भारत की विकसित संस्कृति,स्थापत्य कला, वास्तुशिल्प और मूर्तिकला का बेजोड़ उदाहरण है।शिल्पकारों ने अपनी श्रद्धा और भक्ति से एक विशाल, निर्जीव ग्रेनाइट के पत्थर की शिला में,जान डाल दी है। ‘अहिंसा परमो धर्म:’ का भाव इस प्रतिमा के मुख-मण्डल पर अपने पूर्ण रूप में दिखाई देता है।

8.    भगवान बाहुबली की यह दिगंबर प्रतिमा और इस पर माधवी लताओं की आकृतियां,उनकी गहन तपस्या के बारे में बताने के साथ-साथ यह भी स्पष्ट करती हैं कि,वे किसी भी प्रकार के बनावटीपन सेमुक्त थे, और प्रकृति के साथ पूरी तरह एकाकार थे।जैन मुनियों नें यह परंपरा आज भी कायम रखी है। जैन धर्म के आदर्शों में हमें प्रकृति का संरक्षण करने की सीख मिलती है।

9.    सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र को जैन दर्शन के तीन रत्नों के रूप में जाना जाता है। लेकिन यह तीनों बातें पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी हैं। शांति,अहिंसा, भाईचारा,नैतिक चरित्र और त्याग के द्वारा ही विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है।

10.  मुझे बताया गया है कि विश्व-शांति हेतु प्रार्थना करने के लिए कई देशों से तथा हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों से,भारी संख्या में श्रद्धालु आज यहां आए हैं। हमारे सामने विद्यमान गोम्मटेश्वर की प्रतिमा के चेहरे पर भी पीड़ित मानवता के कल्याण के लिए सहानुभूति का भाव दिखाई देता है। आप सब की प्रार्थना में निहित विश्व कल्याण की भावना,आतंकवाद और तनाव से भरे इस दौर में,सभी के लिए शिक्षाप्रद है। मैं सभी देशवासियों की ओर से, विश्व-शांति के लिए प्रतिबद्ध आप सभी श्रद्धालुओं को , इस कल्याणकारी प्रयास में सफलता की शुभकामनाएं देता हूं।

11.  मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि यहां के ट्रस्ट के प्रयासों से इस क्षेत्र में मोबाइल अस्पताल, बच्चों के अस्पताल, इंजीनियरिंग कॉलेज, पॉलीटेक्निक और नर्सिंगकॉलेजकी स्थापना कराई गई है और एक ‘प्राकृत विश्वविद्यालय’ के निर्माण पर भी काम चल रहा है।

12.  मैं सभी आयोजकों और श्रद्धालुओं को पंच कल्याणक तथा महामस्तक-अभिषेक से जुड़े सभी समारोहों के अत्यंत सफल आयोजन की शुभकामनाएं देता हूं।

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