नई दिल्लीः राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने राजगीर, बिहार में धर्म-धम्म पर चौथे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि इस सम्मेलन का समय बेहद उपयुक्त है। हम आसियान-भारत संवाद साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। जनवरी का महीना भारत-आसियान संबंधों का उत्सव है। 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस पर आयोजित समारोह में सभी 10 आसियान देशों के नेता मुख्य अतिथि होंगे। आज यह सम्मेलन भारत और आसियान की मित्रता तथा सहभागी मूल्यों के साथ-साथ दोनों उप-महाद्वीपों और दक्षिण-पूर्व एशिया की आध्यात्मिक परम्परा और ज्ञान का पालन करने का साक्ष्य है।
राष्ट्रपति ने कहा कि यह सम्मेलन धर्म और धम्म की विविध परम्पराओं की जड़ों और समानताओं में समझ को बढ़ाने का एक प्रयास है। हम उन्हें अनेक नामों से जानते हैं, लेकिन ये हमें एक ही सच्चाई की तरफ ले जाते हैं। ये किसी एक मार्ग के बजाय अनेक मार्गों को महत्व देते हैं, जो हमें एक ही लक्ष्य तक ले जाता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि इस शब्द के लोकप्रिय होने से काफी पहले, बौद्ध धर्म वैश्वीकरण के शुरूआती रूप और हमारे महाद्वीप में आपसी संपर्क का आधार था। इसने विचारों में अनेकता की स्थिति और विविधता को बढ़ावा दिया। इसने अनेक विचारों और उदार अभिव्यक्ति को स्थान दिया। इसने व्यक्ति के जीवन, मानवीय साझेदारियों और सामाजिक तथा आर्थिक लेन-देन में नैतिकता पर जोर दिया। इसने प्रकृति और पर्यावरण के साथ सौहार्द से कार्य करने और सहयोग करने तथा जीने का सिद्धांत सिखाया। इसने ऐसे व्यापार और व्यवसाय संपर्कों के लिए प्रेरित किया, जो नेकनीयत, पारदर्शी और सहयोगी समुदायों के आपसी लाभ के लिए हो।
राष्ट्रपति ने कहा कि यह अनुमान लगाया गया है कि दुनिया की आधे से अधिक वर्तमान आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है, जिन पर इतिहास का प्रभाव है और अनेक मामलों में भगवान बुद्ध द्वारा प्राप्त निर्वाण से अभी तक प्रभावित हैं। यह ऐसा धागा है, जिसने हम सभी को एकसूत्र में पिरो कर रखा है। इस दूरदर्शिता को हमें 21वीं सदी में प्रेरित करना चाहिए और वास्तव में इसी को एशिया की रोशनी कहा गया है। भारत की एक्ट ईस्ट नीति को इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि यह कूटनीतिक पहल से कहीं अधिक है। इसे केवल अधिक व्यापार और निवेश के रूप में नहीं देखा गया है। निश्चित रूप से ये सभी अपेक्षाएं भारत और हमारे सभी सहयोगी देशों की समृद्धि और भलाई के लिए काफी महत्वपूर्ण है। फिर भी एक्ट ईस्ट नीति का उद्देश्य केवल आर्थिक अवसरों को साझा करना नहीं है, बल्कि यह भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में रह रहे करोड़ों लोगों के सपनों और उम्मीदों का एकीकरण है। एशिया के अन्य भागों में जहां धर्म-धम्म के पद चिन्ह हैं, हमारे अतीत का एक साझा स्रोत है। यह सम्मेलन और नया नालंदा विश्वविद्यालय उस विचारधारा का प्रतीक हैं, जिसका हम अनुकरण करते हैं। हमारे आर्थिक और कूटनीतिक प्रयासों का एक स्रोत होना चाहिए।