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रैंकिंग की तुलना में नागरिकों की प्रतिक्रिया अधिक उत्साहवर्धक है: श्री एम. वेंकैया नायडू

रैंकिंग की तुलना में नागरिकों की प्रतिक्रिया अधिक उत्साहवर्धक है: श्री एम. वेंकैया नायडू
देश-विदेश

नई दिल्ली: 18 लाख से अधिक नागरिकों के साथ किये गये अब तक के सबसे बड़े प्रतिदर्श सर्वेक्षण से पता चला है कि देश के शहरों और कस्बों में पिछले एक वर्ष के दौरान स्वच्छता की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से जमीनी स्तर पर बेहतर परिवर्तन के लिए लोगों की सोच बदल रही है।

     ‘स्वच्छ सर्वेक्षण – 2017’ के परिणामों से पुष्टि होती है कि स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत किये जा रहे प्रयासों से शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता पर सकारात्मक असर पड़ा है। शहरी विकास मंत्रालय द्वारा इस वर्ष जनवरी-फरवरी में कराये गये सर्वेक्षण में शहरों और कस्बों में स्वच्छता की स्थिति के बारे में उनकी धारणा जानने के लिए तैयार किये गये छह प्रश्नों के 18 लाख से अधिक नागरिकों ने उत्तर दिये। इसके अलावा भारतीय गुणवत्ता परिषद के 421 सर्वेक्षकों ने 434 शहरों और कस्बों में 17,500 स्थानों का स्वयं जाकर निरीक्षण किया। जमीनी स्तर पर स्वच्छता का आकंलन करने के लिए तीसरे पक्ष द्वारा स्थान पर जाकर इन शहरों और कस्बों में 2680 आवासीय, 2680 व्यवसायिक और 2582 वाणिज्यिक तथा सार्वजनिक शौचालयों का निरीक्षण किया गया।

    शहरी विकास मंत्री श्री एम. वेंकैया नायडू ने सर्वेक्षण के निष्कर्षों पर मंत्रालय के अधिकारियों और सर्वेक्षकों के साथ विस्तृत चर्चा करने के बाद आज ट्वीट में कहा ‘सर्वेक्षण के परिणाम अति उत्साहजनक हैं। पिछले एक वर्ष में स्वच्छता की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। स्वच्छ भारत अभियान का असर जमीनी स्तर नजर आ रहा है। 434 शहरों और कस्बों का स्वच्छ रैंकिंग इस सप्ताह गुरूवार को घोषित किया जाएगा। रैंकिंग की तुलना में नागरिकों की धारणा और जमीनी स्तर की रिपोर्ट अधिक उत्साहवर्धक है।‘

       दो महीने चले सर्वेक्षण के तहत कुल 37 लाख से अधिक नागरिकों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी। सर्वेक्षण करवाने वाली भारतीय गुणवत्ता परिषद  ने प्रतिक्रियाओं का सावधानीपूर्वक सत्यापन करने और एक से अधिक उत्तरों को हटाकर 18 लाख से अधिक प्रतिक्रियाओं पर विचार किया। स्वच्छ सर्वेक्षण – 2017 के निष्कर्ष हैः

  • 83 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने बताया कि उनका क्षेत्र पिछले वर्ष की तुलना में अधिक स्वच्छ हुआ।
  • 82 प्रतिशत से अधिक नागरिकों ने स्वच्छता बुनियादी ढांचा और अधिक कूड़ेदान की उपलब्धता तथा घर-घर जाकर कूड़ा एकत्रित करने जैसी सेवाओं में सुधार के बारे में बताया।
  • 80 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों तक बेहतर पहुंच के बारे में बताया।
  • 404 शहरों और कस्बों के 75 प्रतिशत आवासीय क्षेत्र में अधिक स्वच्छता देखी गई।
  • 185 शहरों में रेलवे स्टेशन के आसपास का पूरा इलाका स्वच्छ।
  • 75 प्रतिशत सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय हवादार थे तथा वहां पर्याप्त रोशनी और जल आपूर्ति थी।
  • 297 शहरों और कस्बों के 80 प्रतिशत वार्डों में घर-घर जाकर कूड़ा एकत्रित किया जा रहा है।
  • 226 शहरों और कस्बों में 75 प्रतिशत निर्धारित वाणिज्यिक क्षेत्रों में दो बार सफाई की जा रही है।
  • 166 शहरों और कस्बों में कूड़ा एकत्रित करने के लिए जीपीएस और आरएफआईडी आधारित वाहन चलाए जा रहे हैं।
  • 227 शहरों और कस्बों में स्वच्छता कर्मचारी के पदों की रिक्तियां दस प्रतिशत से कम हो गयी हैं और
  • 158 शहरों में आईसीटी आधारित उपस्थिति निगरानी की जा रही है।

सर्वेक्षण में सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों को अधिक बच्चों और दिव्यांग व्यक्तियों के अनुकूल बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। नागरिकों की प्रतिक्रिया लेने के लिए तैयार की गई प्रश्नावली में निम्नलिखित घटक थेः

  1. क्या आपको स्वच्छ सर्वेक्षण-2017 की जानकारी है और क्या आप अपने शहर/कस्बे में स्वच्छता की स्थिति के बारे में बताना चाहते हैं?

विकल्पः हां/ ना

  1. क्या आपका क्षेत्र पिछले वर्ष की तुलना में अधिक स्वच्छ हुआ है?

विकल्पः हां, बहुत साफ; पिछले वर्ष से बेहतर; यथास्थिति; पिछले वर्ष से बदतर

  1. क्या बाजारों में कूड़ेदान की उपलब्धता में सुधार आया है?

विकल्पः हां, बहुत अधिक; थोड़ा सा सुधार; बहुत अंतर नहीं; पिछले वर्ष से बदतर

  1. आपके क्षेत्र में घर-घर से कूड़ा एकत्रित करने की स्थिति कैसी है?

विकल्पः काफी बेहतर; थोड़ी बेहतर; बहुत अंतर नहीं; पिछले वर्ष से बदतर

  1. क्या शौचालयों/ प्रसाधनों की संख्या बड़ी है?

      विकल्पः हां बहुत; थोड़े से अधिक; बहुत अंतर नहीं; उपलब्ध ही नहीं

  1. क्या सामुदायिक और सार्वजिक शौचालयों के प्रबंधन में सुधार आया है?

विकल्पः हां काफी बेहतर; थोड़े बेहतर; बहुत सुधार नहीं; कोई अंतर नहीं; पिछले वर्ष से बदतर

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