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लैनसेट में प्रकाशित नये अध्‍ययन के अनुसार भारत में 10 लाख बच्‍चों को मृत्‍यु से बचाया गया

देश-विदेशसेहत

नई दिल्ली: भारत में 2005 से 5 वर्ष से कम आयु के 10 लाख बच्‍चों को निमोनिया, डायरिया, नवजात शिशु संक्रमण, जन्‍म के समय दम घुटने/अभिघात, खसरे और टिटनेस से होने वाली मृत्‍यु से बचाया है। लैनसेट पत्रिका के ताजा अंक में प्रकाशित अध्‍ययन ‘इंडियाज मिलियन डेथ स्‍टडी’ ऐसा पहला अध्‍ययन है जिसको प्रत्‍यक्ष रूप से भारत में बच्‍चों की कारण विशेष मृत्‍यु में हुए बदलावों का अध्‍ययन किया गया है। इसे भारत के रजिस्‍ट्रार जनरल द्वारा लागू किया गया है और इसमें 2000-15 के बीच के अकस्‍मात चुने गए घरों को शामिल करते हुए राष्‍ट्रीय और उपराष्‍ट्रीय रूप में बच्‍चों की कारण विशेष मृत्‍यु का अध्‍ययन किया गया है।

अध्‍ययन में कहा गया है कि राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मिशन के अंतर्गत प्रथमिकता के रूप में तय स्थितियों का बहुत गहरा प्रभाव मृत्‍यु में गिरावट में दिखा। निमोनिया और डायरिया से होने वाली मृत्‍यु में 60 प्रतिशत से अधिक (कारगर इलाज के कारण) की गिरावट आई। जन्‍म संबंधी स्‍वांस कठिनाई और प्रसव के दौरान अभिघात से होने वाली मृत्‍यु में 66 प्रतिशत ( अधिकतर जन्‍म अस्‍पतालों में होने के कारण) की कमी आई। खसरे और टिटनेस से होने वाली मृत्‍यु में 90 प्रतिशत (अधिकतर विशेष टीकाकरण अभियान के कारण) की कमी आई। अध्‍ययन में कहा गया है नवजात शिशु कि मृत्‍यु दर (1000 प्रति जन्‍म) में 2000 के 45 शिशुओं से 2015 में 27 हो गई (3.3 प्रतिशत वार्षिक गिरावट) और 1-59 महीने के बच्‍चों की मृत्‍यु दर 2000 के 45.2 से गिरकर 2015 में 19.6 रह गई(5.4 प्रतिशत वार्षिक गिरावट)। 1 – 59 महीने के बच्‍चों के बीच निमोनिया से होने वाली मृत्‍यु में 63 प्रतिशत की कमी आई। डायरिया से होने वाली मृत्‍यु में 66 प्रतिशत तथा खसरे से होने वाली मृत्‍यु में 90 प्रतिशत से अधिक कमी आई। यह गिरावट लड़कियों में रही। लड़कियों में गिरावट संकेत देता है कि भारत में लड़के और लड़कियां समान संख्‍या में मर रही हैं। यह पिछले कुछ वर्षों की तुलना में काफी सुधरी स्थिति है। 1-59 माह के बच्‍चों में नियमोनिया तथा डायरिया से होने वाली मृत्‍यु में 2010 व 2015 के बीच महत्‍वपूर्ण कमी आई। यह कमी राष्‍ट्रीय वार्षिक गिरावट को 8-10 प्रतिशत के औसत से रही। गिरावट विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों और गरीब राज्‍यों में दिखी।

मिलियन डेथ स्‍टडी में प्रत्‍यक्ष रूप से 1.3 मिलियन (13 लाख) घरों में मृत्‍यु के कारणों की प्रत्‍यक्ष मॉनिटरिंग की गई। 2001 से 900 कर्मियों द्वारा सभी घरों में रह रहे लगभग 1 लाख  लोगों के साक्षात्कार लिए गए जिनके बच्‍चों की मृत्‍यु हुई थी (लगभग 53,000 मृत्‍यु जीवन के पहले महीने में हुई तथा 1-59 महीनों में 42,000 मृत्‍यु)। मृत्‍यु की मॉनिटरिंग में स्‍थानीय भाषा में आधे पन्‍ने में बीमारी के लक्षण और उपचार की जानकारी के साथ साधारण दो पन्‍नों का एक फार्म तैयार किया गया। रिकार्डों का डि‍जटीकरण किया गया है। इसमें विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन द्वारा स्‍वीकृत प्रक्रियाओं का उपयोग करते हुए 400 प्रशिक्षित चिकित्‍सकों में से दो चिकित्‍सकों द्वारा स्‍वतंत्र रूप से मृत्‍यु के कारण को एकरुपता के साथ कोड किया गया है। यह प्रत्‍यक्ष अध्‍ययन है जो परिवारों के साथ आमने-सामने के साक्षात्‍कार पर आधारित है। यह अध्‍ययन छोटे नमूने लेकर मॉ‍डलिंग और प्रोजेक्‍शन पर आधारित नहीं है।

अध्‍ययन में निकले परिणाम बताते हैं कि स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय द्वारा उठाए गए रणनीतिक कदम के लाभ दिखने शुरु हो गए हैं और कम गति  से आगे बढ़ने वाले राज्‍यों पर फोकस करने के प्रयास सफल हो रहे हैं।

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