नई दिल्लीः भारत के उप राष्ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी ने कहा कि
लोकतंत्र की कमियों और असफलताओं को हल करने का समाधान वास्तव में ज्यादा लोकतंत्र है। वह आज वारसा विश्वविद्यालय, पोलैंड में ‘भारतीय लोकतंत्र के सात दशक’ पर व्याख्यान दे रहे थे। इस अवसर पर वारसॉ विश्वविद्यालय के रेक्टर प्रोफेसर मर्सिन पाल्सी और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत के लोग हमारे लोकतांत्रिक भविष्य की सर्वेश्रेष्ठ गारंटी है। जब तक सामान्य भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों और समरूपता की सांस्कृतिक प्रथाओं को सही मानते हैं, जब तक हमारे लोग अधिकारों के सामने रुकावट पैदा नहीं करते हैं और सांप्रदायिक विचारों से प्रभावित नहीं होते हैं, तब तक हमारी आशा है कि हमारा लोकतंत्र बना रहेगा और दूसरों को प्रेरित करता रहेगा।
उप राष्ट्रपति के व्याख्यान के कुछ अंश:
मुझे इस ऐतिहासिक शहर में आकर बेहद खुशी महसूस हो रही है। आपको संबोधित करने के लिए मुझे मिले निमंत्रण के लिए मैं आपका आभारी हूं। मैं लोकतंत्र के साथ हमारे अनुभव से जुड़े कुछ विचार आपके साथ साझा करने का प्रस्ताव करता हूं और इसके (क) सिद्धांतो (ख) तंत्रों और (ग) चुनौतियों पर प्रकाश डालना चाहता हूं जो कि समय-समय पर उभरे हैं।
करीब तीन दशक पहले एक मशहूर समाजशास्त्री ने भारतीय लोकतंत्र को ”आधुनिक विश्व का एक धर्मनिरपेक्ष चमत्कार और अन्य विकासशील देशों के लिए एक मॉडल” कहा था। स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी भारतीय लोकतंत्र का चमत्कार उन लोगों के लिए प्रकाशस्तम्भ की तरह चमक रहा है जो स्वतंत्रता की नींव में बुनियादी मानवीय मूल्यों को रखते हैं।
यह एक सच्चाई है कि प्रत्येक देश और लोग अपने भाग्य को अपने अनूठे तरीके से आकार देते हैं, जो उनके ऐतिहासिक अनुभव से प्रेरित होते हैं। हमारे मामले में, यह कम से कम 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में है। लंबे समय तक की इस ‘तर्कपूर्ण परंपरा’ और हठधर्मिता की सहिष्णुता ने हमारे लोकतंत्र के उत्थान के लिए एक उपजाऊ आधार प्रदान किया है।
एक समकालीन अर्थ में स्वतंत्र भारत की लोकतांत्रिक चेतना औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए हमारे संघर्ष की विरासत का प्रतिबिंब है। राष्ट्रीय आंदोलन से जो हमने हासिल किया, वह हमारे संविधान में दर्ज है और यह भारत में राजनीतिक और न्यायिक संवाद को जारी रखते हैं। हमारे लोगों ने इस विरासत का इस्तेमाल सरकारों, राजनीतिक पार्टियों व संस्थानों के प्रदर्शन को आंकने के औजार के रूप में किया है।
हमारा संविधान एक अर्ध-संघीय प्रारूप में द्विसदनीय संसदीय लोकतंत्र के लिए रूपरेखा प्रदान करता है। इसका उद्देश्य संवैधानिक संस्थानों और कानून के नियम के सिद्धांत के जरिए सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के माध्यम से योग्य न्यायसंगत समाज का निर्माण है।