नई दिल्लीः बेहतर आउटपुट के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षणों की आवश्यकता होती है। इसलिए वर्तमान मांग की पूर्ति के लिए फिल्म पाठ्यक्रमों एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता है। ओपन फोरम में अभिव्यक्त यह एक आम भावना रही। आज भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह (आईएफएफआई) में ’वर्तमान मांग की पूर्ति के लिए फिल्म पाठ्यक्रमों तथा प्रशिक्षण की आवश्यकता’ पर ओपन फोरम में चर्चा हुई। भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान, पुणे के डीन (फिल्म) अमित त्यागी, ऑस्ट्रेलिया की निर्माता एवं निर्देशक सुश्री एना तिवारी, नई दिल्ली की फिल्म स्कॉलर सुश्री सुखप्रीत कहलों एवं गोवा के फिल्मकार शशांक भोसले ने इस परिचर्चा में हिस्सा लिया।
श्री अमित त्यागी ने युवा आबादी की आवश्यकता को देखते हुए अधिक फिल्म संस्थानों के निर्माण पर जोर दिया। हमारे देश में तीस वर्ष से कम उम्र के युवाओं की संख्या लगभग 5 से 7 करोड़ है, इसका अर्थ यह है कि फिल्म निर्माण सीखने वालों के लिए प्रचुर संभावनाएं हैं। एफटीआईआई केवल 110 चुने हुए छात्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। प्रशिक्षण क्षमता को देखते हुए यह एक बड़ी कमी है।
उन्होंने कहा कि ‘हमें वैसे लोगों का स्वागत करने की आवश्यकता है, जिनकी श्रव्य-दृश्य माध्यम को सीखने में दिलचस्पी है। मैं श्रव्य-दृश्य इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि यह भी अन्य उद्योग की तरह एक बड़ा उद्योग है। आज से तीस वर्ष पहले तक हम केवल फिल्में देख सकते थे, लेकिन आज हर औसत घर में 300 चैनल हैं। उत्पादन के माध्यम भी सस्ते हैं।’ उन्होंने कहा कि जहां तक प्रशिक्षण का सवाल है तो इसके विभिन्न स्तर हैं। विवाह जैसे स्थानीय स्तर के समारोहों के लिए उन कौशलों की आवश्यकता नहीं होती, जिसकी सम्भवत: किसी फिल्मकार को आवश्यकता होती है। इसलिए समुचित प्रशिक्षण के सभी स्तरों को बनाए रखने की आवश्यकता है।
सुश्री एना तिवारी पिछले 10 वर्षों से ऑस्ट्रेलिया की निवासी हैं और वर्तमान में वहां के एक विश्वविद्यालय के लिए सांस्कृतिक क्षमताओं पर एक पाठ्यक्रम से जुड़ी हैं। उन्होंने समाज में विविधता को सामने लाने तथा सामाजिक रूप से संवेदनशील बनने की आवश्यकता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि फिल्म विद्यालय एक समर्थन प्रणाली का निर्माण करते हैं। मित्रों का नेटवर्क एक करियर का निर्माण करने तथा उसे बनाए रखने में भी मदद करता है। ऑस्ट्रेलियाई फिल्मों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया की फिल्मों में सांस्कृतिक समझ की कमी दिखती है। सांस्कृतिक समझ फिल्म निर्माण के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
फिल्म स्कॉलर सुखप्रीत कहलों ने कहा कि एक औपचारिक फिल्म शिक्षा के अतिरिक्त युवाओं को भारत की समृद्ध सिनेमाई विरासत के बारे में शिक्षित किये जाने की जरूरत है। उन्होंने एक घटना का जिक्र किया, जिसमें एक छात्र को भारत में मूक फिल्मों के अस्तित्व के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि ‘हमें उन्हें सिनेमाई इतिहास का एहसास कराने की आवश्यकता है, तभी वे कनेक्ट करने में समर्थ हो सकेंगे।’
न्यूयॉर्क की एक पत्रकार सामन्था सन्तोरी ने कहा कि कुछ पहलुओं के लिए एक औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता होती है और प्रत्येक फिल्मकार को फिल्म में अपना मर्म डालना चाहिए।
गोवा के एक युवा फिल्मकार शशांक भोसले ने बिना किसी औपचारिक शिक्षा के अपनी यात्रा आरंभ करने के अनुभव को साझा किया। उन्होंने मैनग्रोव के संरक्षण से संबंधित अपनी पहली पुरस्कार विजेता लघु फिल्म के निर्माण की चर्चा की।