अपने करियर के शुरूआती दिनों में वीरेंद्र सहवाग खेलते थे, तो लोगों एक बार में लगता था कि ये सचिन तेंदुलकर हैं। वीरू की कद-काठी से लेकर खेलने के तरीके तक में उनके रोल मॉडल का असर दिखता रहा। सचिन ने जब कई रिकॉर्ड की तरह वनडे में दोहरा शतक लगाने की कीर्तिमान बनाया, तो फिर भला इसे दोहराने में सहवाग कैसे पीछे रहते। तो 8 दिसंबर 2011 को सहवाग ने ये करिश्मा भी दोहरा डाला। वेस्टइंडीज के खिलाफ इंदौर के होल्कर स्टेडियम में वीरू ने धुआंधार दोहरा शतक ठोक दिया। रेग्युलर कैप्टन महेंद्र सिंह धोनी की गैरमौजूदगी में कप्तानी संभाल रहे सहवाग ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग का फैसला लिया और इस फैसले को सही साबित करने की जिम्मेदारी भी खुद उठाई।
क्रीज पर उतरते ही सहवाग ने गौतम गंभीर के साथ मिलकर कोहराम मचा दिया। सहवाग ने महज 41 बॉल पर पचासा ठोका। 50 रन के बाद अगले पचास रन तो वीरू ने सिर्फ 28 बॉल पर जमा दिए। 10 चौके और पांच छक्के की मदद से 69 बॉल पर सहवाग ने सैकड़ा जड़ा। गंभीर इस बीच 67 रन बनाकर आउट हुए, तो रैना (55 रन, 44 बॉल) ने सहवाग का साथ दिया।
सहवाग ने अपने टिपिकल अंदाज में कवर ड्राइव, पुल, कट और स्ट्रेट ड्राइव्स का शानदारा नजारा पेश किया। 112 बॉल पर सहवाग ने 150 रन पूरे किए तो उम्मीद जाग गई कि आज एक और भारतीय के बल्ले से दोहरा शतक निकल सकता है। फिर भला वीरू कहां निराश करने वाले थे। मुल्तान का सुल्तान, इंदौर का भी सिकंदर साबित हुआ। 140 बॉल पर 23 चौके और छह छक्के की मदद से सहवाग ने ये करिश्मा भी कर डाला। हालांकि विस्फोटक सहवाग का नाम जुड़ते ही वनडे में 200 रन ज्यादा चौंकाने वाले नहीं थे। 149 बॉल पर 219 रन बनाकर सहवाग आउट हुए। भारत ने 418 रन बनाए और मैच 153 रन के बड़े अंतर से जीता।