विशेषज्ञों का मानना है कि मरीज का सचमुच का ऑपरेशन करने की बजाय अगर उसे उस माहौल से गुजारा जाए तो उसका ज्यादा मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है। मरीजो को बिना ऑपरेशन के इससे ठीक करना ज्यादा कारगर माना जा रहा है। इसमें डॉक्टर मरीज की तसल्ली के लिए उसका आभासी ऑपरेशन करते हैं, क्योंकि इससे मरीज को लगता है उसे सारे दर्द दूर हो जाएंगे।
मरीज की खुशी के लिए आभासी इलाज को प्लेसबो इफेक्ट कहते हैं। अब तक दवा देने के लिए ही इसका ज्यादा इस्तेमाल होता था, लेकिन नए अध्ययन में शोधकर्ताओं का कहना है कि ऑपरेशन में भी प्लेसबो प्रभाव काम करता है। मरीज का आभासी ऑपरेशन करने से उसे आराम मिलता है।
इससे मरीज को लगता है कि उसे दवा दे गई है या अब वह जल्दी ठीक हो जाएगा और उसके सारे दर्द दूर हो गए। शोधकर्ताओं का कहना है कि नी होल सर्जरी, एंडोमायट्रोसिस सर्जरी, वर्टिब्रोप्लास्टी जैसी तमाम सर्जरी में डॉक्टर प्लेसबो प्रभाव पर इलाज कर रहे हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि डॉक्टर हजारों मरीजों का सचमुच ऑपरेशन करते हैं, जबकि उनका आभासी ऑपरेशन करने से भी इलाज हो सक है। इससे मरीज को कोई नुकसान भी नहीं होगा और उसे राहत भी मिलेगी।
डॉक्टर मरीजों का प्लेसबो प्रभाव से इलाज करेंगे तो ज्यादा कारगार होंगे, बजाय सर्जरी या ऑपरेशन करने से, क्योंकि इस तरह के ऑपरेशन करना बहुत खतरनाक है। रॉयल कॉलेज के सर्जन क्लेयर मार्क्स का कहना है कि घुटने की सर्जरी में सचमुच के ऑपरेशन की तरह ही झूठे ऑपरेशन का असर होता है।