नई दिल्लीः सभी राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों के मंत्रियों एवं मुख्य सचिवों (एमएसएमई/खादी/कॉयर) की बैठक भारत सरकार के केन्द्रीय सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम (एमएसएमई) मंत्री श्री कलराज मिश्र की अध्यक्षता में आयोजित की गई।
भारत सरकार के एमएसएमई राज्य मंत्री श्री हरिभाई पारथीभाई चौधरी एवं मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारीगण भी इस अवसर पर उपस्थित थे। राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों की ओर से अंडमान एवं निकोबार दीप समूह के उपराज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी, गुजरात के मंत्री श्री रोहित भाई पटेल, हरियाणा के मंत्री श्री विपुल गोयल, मणिपुर के मंत्री श्री बिश्वजीत सिंह, मिजोरम के मंत्री श्री एच. रोहलुना, ओडिशा के मंत्री श्री जोगेन्द्र बेहरा, उत्तर प्रदेश के मंत्री श्री सत्यदेव पचौरी और उत्तराखंड के मंत्री श्री मदन कौशिक ने इस बैठक में भाग लिया और उन्होंने अपने-अपने संघ शासित क्षेत्रों/राज्यों की ओर से विचार पेश किये। कॉयर बोर्ड के अध्यक्ष श्री सी.पी. राधाकृष्णन और केवीआईसी के अध्यक्ष श्री विनय कुमार सक्सेना भी इस अवसर पर मौजूद थे।
इस अवसर पर श्री कलराज मिश्र ने कहा कि यह सहकारी संघवाद की भावना पर सरकार द्वारा दिये जा रहे विशेष जोर एवं राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों के साथ जारी विचार-विमर्श के अनुरूप एक अनूठा प्रयास है। उन्होंने कहा कि सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम क्षेत्र के समग्र विकास के लिए केन्द्र एवं राज्यों के बीच समन्वय एक आवश्यक अवयव है। यह बैठक इस दिशा में एक अच्छा प्रयास है। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जिनमें केन्द्र एवं राज्यों के प्रयासों के बीच बढि़या तालमेल बैठाने की जरूरत है।
इस अवसर पर केन्द्रीय एमएसएमई राज्य मंत्री श्री हरिभाई पारथीभाई चौधरी ने कहा कि यदि केन्द्र एवं राज्य आपस में तालमेल बैठाकर काम करें, तो भारत दुनिया का विनिर्माण केन्द्र (हब) बन सकता है। इससे सभी हितधारक लाभान्वित हो सकते हैं। उन्होंने रोजगार उपलब्ध कराने के लिए एमएसएसई क्षेत्र की व्यापक संभावनाओं पर विशेष जोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान सरकार चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा लोग स्वरोजगार को अपनाएं, ताकि रोजगार तलाशने वालों की संख्या कम हो सके।
राज्यों के उप राज्यपाल एवं मंत्रियों ने अपने यहां मौजूद समस्याओं का उल्लेख किया और मूल्यवान सुझाव दिए।
बैठक में जिन मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया, उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
- सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) का विकास, राज्य में अलग एमएसएमई विभाग और एमएसएमई नीतियों से जुड़े मुद्दे और एमएसएमई के विकास में बाधक नियामकीय मुद्दे :
– भारत सरकार ने एमएसएमई पर विशेष ध्यान दिया है। वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में इस मंत्रालय के लिए आवंटन को वित्त वर्ष 2016-17 की तुलना में एक ही बार में 87 फीसदी बढ़ा दिया गया है। माननीय प्रधानमंत्री ने भी 31 दिसंबर, 2016 को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में एमएसएमई को दी जा रही सुविधाओं का उल्लेख किया। उल्लेखनीय है कि मुख्यत: एमएसएमई द्वारा ही रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं।
– कुछ राज्यों जैसे कि पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और राजस्थान ने अपने यहां एमएसएमई नीतियां तैयार की हैं। इस बैठक में एक बार फिर सभी राज्यों से यह आग्रह किया गया कि वे अपने यहां एमएसएमई नीति तैयार करें, ताकि एमएसएमई को बढ़ावा दिया जा सके।
- प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) के क्रियान्वयन की समीक्षा
- खादी को बढ़ावा और केवीआईसी की विभिन्न योजनाएं
- मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं जैसे कि एस्पायर, एमएटीयू, एमएएस इत्यादि की समीक्षा
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति हब (एनएसएसएच) का क्रियान्वयन
- सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों की प्रगति- क्लस्टर विकास कार्यक्रम (एमएसई-सीडीपी)
- एसएमई के विकास के लिए विभिन्न राज्यों द्वारा अपनाए जा रहे सर्वोत्तम तौर तरीके:
– तेलंगाना में कोई व्यवसाय शुरू करने के लिए वैधानिक मंजूरी स्वत: प्राप्त होना
– गुजरात में वैधानिक मंजूरियों के लिए ‘क्लियरिंग हाउस मॉडल’
– गुजरात सरकार की खरीद नीति के तहत पूंजीगत निवेश सब्सिडी, ब्याज सब्सिडी और लाभ
– पश्चिम बंगाल स्थित डीआईसी में व्यापार सुविधा केन्द्र
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