नई दिल्लीः केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री जे.पी नड्डा ने आज यहां राष्ट्रीय ट्रेकोमा सर्वेक्षण रिपोर्ट (2014-17) जारी की। उन्होंने घोषणा की कि भारत अब ‘रोग पैदा करने वाले ट्रेकोमा’ से मुक्त हो गया है और उन्होंने इसे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया। श्री नड्डा ने कहा कि सर्वेक्षण के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि सर्वेक्षण के सभी जिलों में बच्चों में ट्रेकोमा संक्रमण समाप्त हो चुका है और इसकी मौजूदगी केवल 0.7 प्रतिशत है। यह डब्ल्यूएचओ द्वारा परिभाषित ट्रेकोमा की समाप्ति के मानक से बहुत कम है। उन्होंने कहा कि ट्रेकोमा को उस स्थिति में समाप्त माना जाता है, यदि उसके सक्रिय संक्रमण की मौजूदगी 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में 5 प्रतिशत से कम हो। सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी करने के अवसर पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्रीमती अनुप्रिया पटेल भी मौजूद थीं। स्वास्थ्य मंत्रियों ने सर्वेक्षण से जुड़े सभी लोगों, खासतौर से स्वास्थ्य कर्मियों को बधाई दी, जिन्होंने सर्वेक्षण करने के लिए कठिन परिस्थितियों में भी कार्य किया।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि सर्वेक्षण के परिणामों से संकेत मिलता है कि भारत में अब सक्रिय ट्रेकोमा जन स्वास्थ्य समस्या नहीं रह गई है। हमने डब्ल्यूएचओ के जीईटी 2020 कार्यक्रम के अंतर्गत निर्दिष्ट लक्ष्य के अनुसार ट्रेकोमा का सफाया करने का लक्ष्य हासिल कर लिया है। यह कई दशकों के प्रयासों के बाद संभव हुआ है, जिनमें एंटीबायोटिक आईड्रॉप का प्रावधान, निजी सफाई, सुरक्षित जल की उपलब्धता, पर्यावरण संबंधी बेहतर स्वच्छता, क्रोनिक ट्रेकोमा के लिए सर्जिकल सुविधाओं की उपलब्धता और देश में सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सामान्य सुधार शामिल हैं। श्री नड्डा ने जोर देकर कहा कि राज्य ट्रेकोमा के किसी नये मामले और ट्रेकोमा सीक्वल (टीटी मामलों) की जानकारी देने के लिए लगातार निगरानी रखें तथा तेजी से ऐसे मामलों का इलाज करें, ताकि वे ट्रेकोमा से मुक्त हो सकें।
सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी होने पर श्री नड्डा ने कहा कि हमारा लक्ष्य देश से ट्रेकोमेट्सस्ट्रीचियासिस को समाप्त करना है। ऐसे राज्य जो अभी भी सक्रिय ट्रेकोमा के मामलों की जानकारी दे रहे हैं, उन्हें ट्रेकोमेट्सस्ट्रीचियासिस के मरीजों के समुदाय आधारित निष्कर्षों को प्राप्त करने के लिए एक रणनीति विकसित करने की जरूरत है। ऐसे मामलों की स्थानीय अस्पतालों में मुफ्त एंट्रोपियन सर्जरी/इलाज की व्यवस्था होनी चाहिए। श्री नड्डा ने कहा कि ऐसे पहचाने गये प्रत्येक मामले को सावधानी से दर्ज किया जाना चाहिए और इसके प्रबंधन की स्थिति का डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार रखरखाव किया जाए। साथ ही भारत को ट्रेकोमा मुक्त प्रमाणित करने के लिए देश भर में इस बीमारी की पर्याप्त निगरानी की जानी चाहिए। डब्ल्यूएचओ के दिशा निर्देशों के अनुसार ट्रेकोमा निगरानी के संकेतों पर मासिक आंकड़े नियमित रूप से एनपीसीबी को भेजे जाएं।
समारोह में श्रीमती अनुप्रिया पटेल ने कहा कि सर्वेक्षण के निष्कर्ष अत्यंत प्रोत्साहित करने वाले हैं। टीम को बधाई देते हुए श्रीमती पटेल ने कहा कि सक्रिया ट्रेकोमा अब जन स्वास्थ्य का खतरा नहीं रह गया है। उन्होंने कहा कि देश से ट्रेकोमा का पूरी तरह सफाया करने के लिए नियमित निगरानी को बढ़ाया जाना चाहिए।
ट्रेकोमा (रोहे-कुक्करे) आंखों का दीर्घकालिक संक्रमण रोग है और इससे दुनिया भर में अंधेपन के मामले सामने आते हैं। यह खराब पर्यावरण और निजी स्वच्छता के अभाव तथा पर्याप्त पानी नहीं मिलने के कारण होने वाली बीमारी है। यह आंखों की पलकों के नीचे झिल्ली को प्रभावित करता है। बार-बार संक्रमण होने पर आंखों की पलकों पर घाव होने लगते हैं, इससे कोर्निया को नुकसान पहुंचता है और अंधापन होने का खतरा पैदा हो जाता है। इससे गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और निकोबार द्वीप के कुछ स्थानों के लोग प्रभावित पाए गए हैं। ट्रेकोमा संक्रमण 1950 में भारत में अंधेपन का सबसे महत्वपूर्ण कारण था और गुजरात, राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश में 50 प्रतिशत आबादी इससे प्रभावित थी।
राष्ट्रीय ट्रेकोमा प्रचार सर्वेक्षण और ट्रेकोमा रैपिड असेसमेंट सर्वेक्षण डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सेंटर फॉर ऑपथेलमिक साइंस, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली ने 2014 से 2017 तक नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस एंड विजुअल इम्पेयरमेंट के सहयोग से किया। सर्वेक्षण 23 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के 27 सबसे अधिक जोखिम वाले जिलों में किया गया।
सर्वेक्षण जारी होने के अवसर पर मंत्रालय में सचिव सुश्री प्रीति सूदन और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।