नई दिल्ली: श्री थावरचंद गहलोत, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री ने आज यहां पर आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिल नाडु, तेलंगाना एवं उत्तर प्रदेश राज्यों में नागरिक अधिकार रक्षा कानून (पीसीआर), 1955 एवं अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून (पीओए), 1989 की समीक्षा के लिये गठित समिति की 24वीं बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में आदिवासी मामलों के मंत्री श्री जुआल ओराम एवं सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री श्री रामदास अठावले, राज्य सरकारों के सामाजिक न्याय के मंत्री एवं प्रमुख सचिवों ने बैठक में भाग लिया। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय में सचिव श्रीमती लता कृष्णा राव, आदिवासी मामलों के मंत्रालय की सचिव श्रीमती लीना नायर और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी बैठक में उपस्थित थे।
इस अवसर पर श्री थावरचंद गहलोत ने कई राज्यों में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों पर बढ़ रही अत्याचार की घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की और उनसे इन पर प्रभावी ढंग से रोक लगाने को कहा। उन्होंने कहा कि इसके लिये विशेष न्यायालयों एवं विशेष जन अभियोजकों की नियुक्ति को राज्य सरकारों द्वारा विशेष प्राथमिकता दी जानी चाहिये। उन्होंने अत्याचार निरोधक कानून के अनुपालन की समीक्षा के लिये राज्य एवं जिला स्तर पर सतर्कता एवं निगरानी समितियों की नियमित बैठक पर जोर दिया क्योंकि ये समितियां पीड़ितों को राहत एवं पुनर्वास सुविधायें मुहैया कराने एवं इससे जुड़े मामलों की समीक्षा के लिये जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में जांच और आरोप पत्र दाखिल करने का काम समय से पूरा किया जाना चाहिये।
आज की बैठक में आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिल नाडु, तेलंगाना एवं उत्तर प्रदेश राज्यों में नागरिक अधिकार रक्षा कानून (पीसीआर), एवं अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून (पीओए), के अनुपालन की समीक्षा की गयी।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून के खण्ड 23 के उपखण्ड (1) के अन्तर्गत प्रदत्त शक्तियों के तहत केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक अधिनियम, 1995 को भी सरकार ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक संशोधित अधिनियम, 2016 के जरिये संशोधित कर 14 अप्रैल 2016 को अधिसूचित कर दिया था।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 ने भारत में अस्पृश्यता को समाप्त कर किसी भी रूप में ऐसा करने पर रोक लगा दी और साथ ही अस्पृश्यता की वजह से होने वाली किसी भी परेशानी को कानून के अनुसार दण्डनीय अपराध बना दिया।
संसद द्वारा पारित एक कानून, मुख्य रूप से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) {पीओए} कानून, 1989 जो कि संविधान के अनुच्छेद 17 के अन्तर्गत अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों पर अत्याचार रोकने के लिये और साथ ही ऐसे अपराधों के मुकदमों और ऐसे अत्याचारों के पीड़ितों को राहत और पुनर्वास के लिये विशेष न्यायालयों के गठन के लिये बनाया गया था। यह कानून जम्मू एवं कश्मीर को छोड़ कर संपूर्ण भारत में लागू होता है और इसके अनुपालन का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों पर है।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्यों को व्यापक न्याय दिलाने एवं कानून तोड़ने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इस कानून को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) कानून, 2015 के जरिये संशोधित किया गया और 26.01.2016 से लागू किया गया। इस कानून की प्रमुख विशेषतायें निम्न हैं:
(i) इसमें कई नये अपराधों को जोड़ा गया है जैसे सिर और मूंछों को मूंड़ना या इससे मिलते-जुलते कृत्य जो कि एससी-एसटी की गरिमा के लिये अपमानजनक हैं, जूते-चप्पलों की माला पहनाना, सिंचाई सुविधाओं अथवा वन्य अधिकारों से वंचित करना, मृतकों या मृत पशुओं की ढुलाई एवं उनका निस्तारण करवाना या कब्रों की खुदाई करवाना, मैला ढुलाई या इसकी अनुमति, एससी-एसटी महिला को देवदासी के रूप में समर्पित करना, जातिगत नाम से गाली देना, जादू-टोने से संबंधित अत्याचार, सामाजिक एवं आर्थिक बहिष्कार, एससी-एसटी सदस्यों को चुनाव के लिये नामांकन दाखिल करने से रोकना, किसी एससी-एसटी महिला को विवस्त्र कर नुकसान पहुंचाना, एससी-एसटी समुदाय के सदस्य को घर, निवास या गांव छोड़ने के लिये विवश करना, एससी-एसटी समुदाय के लोगों के लिये पवित्र वस्तुओं का निरादर करना, एवं एससी-एसटी समुदाय के सदस्यों के खिलाफ किसी भी तरह के सेक्सुअल शब्दों, कार्यों या इशारों का इस्तेमाल करना।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध अत्याचार एवं अस्पृश्यता रोकने एव नागरिक अधिकार रक्षा कानून (पीसीआर) एवं अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून (पीओए) के प्रभावी अनुपालन के लिये समन्वय करने एवं रास्ते ढूंढ़ने के लिये गठित समिति की सदस्यता इस प्रकार है।
1 | सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री | अध्यक्ष |
2 | आदिवासी मामलों के मंत्री | सह-अध्यक्ष |
3 | सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री | विशेष निमंत्रित |
4 | आदिवासी मामलों के राज्य मंत्री | विशेष निमंत्रित |
5 | सचिव, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय | सदस्य |
6 | सचिव, गृह मंत्रालय | सदस्य |
7 | सचिव, न्याय विभाग, विधि एवं न्याय मंत्रालय | सदस्य |
8 | सचिव, आदिवासी मामलों का मंत्रालय | सदस्य |
9 | सचिव, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग | सदस्य |
10 | सचिव, राष्ट्रीय अनुसूचित जन जाति आयोग | सदस्य |
11 | संयुक्त सचिव, गृह मंत्रालय (राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो) | सदस्य |
12 | अनुसूचित जाति से 2 गैर-आधिकारिक प्रतिनिधि | सदस्य |
13 | अनुसूचित जनजाति से 1 गैर-आधिकारिक प्रतिनिधि | सदस्य |
14 | संयुक्त सचिव (एससीडी), सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय | सदस्य सचिव |
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