नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने आज नई दिल्ली में ‘विश्व पर्यावरण सम्मेलन’ का आयोजन किया। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सम्मेलन को संबोधित किया। उनके भाषण के प्रमुख अंश नीचे दिए गए हैः-
‘‘इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लेते हुए मुझे खुशी हो रही है। मैं इस सम्मेलन के आयोजन के लिए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) को बधाई देता हूं। मुझे उम्मीद है कि यह सम्मेलन पर्यावरण संबंधी मुद्दों के बारे में विचारों के आदान प्रदान और अनुभव एवं जानकारी साझा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच सिद्ध होगा। मुझे आज महात्मागांधी के वे स्वर्णिम शब्द याद आ रहे हैं, जिनमें उन्होंने कहा था, ‘‘धरती के पास हर किसी की जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन वह किसी का लालच पूरा नहीं कर सकती’’।
मानवता की खुशहाली, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था की कार्य प्रणाली, अंततः इस धरती पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के युक्तिसंगत और जिम्मेदारीपूर्ण प्रबंधन पर निर्भर करती है। मानवता उससे अधिक प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, जितना कि धरती मां हमें स्थिरतापूर्वक प्रदान कर सकती है।
मानवता को आज जिस संकट का सामना करना पड़ रहा है, उसने हमें मानव-प्रकृति के समूचे संबंधों की समीक्षा करने के लिए बाध्य कर दिया है। यह बात पिछले 5 दशकों में हुई घटनाओं और तदनुरूप विकास की भावी कार्यनीति के संदर्भ में अधिक महत्वपूर्ण है। भारत के लोगों का हमेशा यह विश्वास रहा है कि प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाए रखा जाए और हम उसे मां के रूप में देखते हैं। हम प्रकृति के बिना नहीं रह सकते हैं। प्रकृति का शोषण नहीं किया जाना चाहिए बल्कि मानव मात्र की खुशहाली के लिए उसका संरक्षण जरूरी है। प्रकृति के साथ संतुलन की स्थिति में हमारा जीवन और जगत जिसमें हम रहते हैं, के बीच एक संतुलन बना रहता है। हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में हमेशा मानव और प्रकृति के बीच एक स्वस्थ और स्थायी संबंध बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। अथर्व वेद में यह परम कर्तव्य बताया गया है कि हमें धरती की रक्षा अवश्य करनी है, ताकि जीवन की निरंतरता बनी रहे। धरती के साथ अपने संबंध को हमने ‘माता भूमि पुत्रो अह्म पृथ्व्या’ के रूप में परिभाषित किया है।
भारत के संविधान में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राज्यों का यह दायित्व है कि वे पर्यावरण की संरक्षा और उसमें सुधार लाएं और देश के वनों और वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करें। भारत के नागरिक होने के नाते वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना हमारा परम दायित्व है।
राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में भी पर्यावरण को शामिल किया गया है। जीवन के मूलभूत अधिकार की व्याख्या में भी पर्यावरण समाहित है। स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण, जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने भी व्यवस्था दी है, किसी भी सभ्य समाज के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है।
प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन हमारे वर्तमान पर बुरा असर डाल रहे है और हमारे भविष्य पर भी इनका गंभीर दुष्प्रभाव पड़ने जा रहा है। यह अनुमान लगाया गया है कि यदि खपत और उत्पादन का वर्तमान पैटर्न जारी रहा, तो 2050 तक दुनिया की आबादी 9.6 अरब हो जाएगी। ऐसा होने पर हमें अपनी जीवन पद्धतियों और खपत को स्थिरता प्रदान करने के लिए तीन ग्रहों की आवश्यकता पड़ेगी।
आज जलवायु परिवर्तन को एक प्रमुख वैश्विक चुनौती के रूप में स्वीकार किया गया है। भारत में हमारा विश्वास है कि जलवायु परिवर्तन ग्रीन हाउस गैस उत्सृजन का परिणाम है और नतीजतन जो धरती का तापमान बढ़ रहा है, उसका कारण विकसित राष्ट्रों में हुई औद्योगिक प्रगति है, जो जीवाष्म ईंधन की खपत से संचालित है। एक विकासशील देश के नाते भारत का इस धारणा से कुछ अधिक सरोकार नहीं है, लेकिन उसके दुष्परिणाम उसे भुगतने पड़ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन हमारे करोड़ों किसानों के लिए एक गंभीर खतरा है, चूंकि इससे मौसम पद्धतियों में परिवर्तन हो रहा है और प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ रही है।
दोनों ध्रुवों पर बर्फ पिघलने से बढ़ते समुद्र हमारी चिंता का कारण हैं। आर्कटिक और अंटार्कटिक में इस वर्ष बर्फ में रिकार्ड कमी दर्ज हुई है और पिघलते ध्रुव प्रदेश हमारी तट रेखाओं के प्रति गंभीर खतरा हैं। हमें भारत में इस बात की भी चिंता है कि हिमालय के ग्लेशियर घट रहे हैं, जो हमारी नदियों को पानी देते हैं और हमारी सभ्यता का पोषण करते हैं।
पेरिस समझौते के अंतर्गत दुनिया की सरकारों ने संकल्प व्यक्त किया है कि वे ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेंटिग्रेड से कम रखने के लिए अपने कार्बन उत्सर्जनों में भारी कमी लाएंगे। इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकतर देशों ने लक्ष्य हासिल करने के लिए पहले ही राष्ट्रीय कार्य योजनाएं तैयार कर ली हैं और मुझे उम्मीद है कि ये योजनाएं हमारे युग के प्रति अधिक प्रतिबद्ध होंगी।
भारत वैश्विक खतरों के प्रति संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। भारत सरकार ने हाल ही में यह लक्ष्य निर्धारित किया है कि 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा पैदा की जाएगी। 2030 तक हमारी संस्थापित विद्युत क्षमता का 40 प्रतिशत गैर-जीवाष्म ईंधन पर आधारित होगा। भारत सरकार आटोमोबाइल्स के लिए ईंधन के मानदंड बढ़ा रही है और भारत विश्व के उन गिने चुने देशों में से एक है, जिन्होंने कोयले पर कर लगाया है। हमने पैट्रोलियम उत्पादों पर सब्सिडी भी कम की है। यहां तक कि नवीकरणीय ऊर्जा के लिए हमने कर मुक्त बांड भी शुरू किए हैं। हमने अपने वन आच्छादित क्षेत्र का विस्तार करने और जैव विविधता की संरक्षा करने की भी योजना बनाई है।
मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन में विचार विमर्श से जो निष्कर्ष निकलेंगे और जो अनुशंसाएं की जाएंगी वे पर्यावरण के विधान और विचारधारा में वास्तविक प्रगति लाने में सहायक सिद्ध होंगी।’’