नई दिल्ली: केन्द्रीय वित्त, रक्षा एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा है कि बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) से निपटना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। हालांकि, चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में एनपीए यानी फंसे कर्जों में कमी देखने को मिली है। उन्होंने कहा कि एनपीए की मुख्य समस्या का वास्ता अत्यंत बड़ी कंपनियों से है। हालांकि, इस तरह की कंपनियों की संख्या कम है। एनपीए की समस्या मुख्यत: इस्पात, विद्युत, बुनियादी ढांचागत और कपड़ा क्षेत्रों में व्याप्त है। उन्होंने कहा कि जोरदार तेजी के दौर (2003-08) में इन औद्योगिक क्षेत्रों ने अपनी क्षमता काफी ज्यादा बढ़ा ली थी, लेकिन वैश्विक वित्तीय संकट और इसके बाद छाई सुस्ती से उन्हें जूझना पड़ा। उन्होंने कहा कि एनपीए विशेष कर बड़े कर्जों की समस्या से निपटने के लिए सरकार क्षेत्र विशेष उपाय कर रही है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि इस्पात क्षेत्र में बेहतरी का रुख देखा जा रहा है, जबकि उनकी समस्याओं से निपटने के लिए बुनियादी ढांचागत, बिजली एवं कपड़ा क्षेत्रों में अनेक निर्णय लिए गए हैं। वित्त मंत्री श्री जेटली आज यहां वित्त मंत्रालय से संबद्ध सलाहकार समिति की पहली बैठक को संबोधित कर रहे थे। आज की बैठक का विषय था ‘गैर निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए)’।
वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि विभिन्न बैंकों द्वारा सुपुर्द किये गये मामलों पर गौर करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने एक निगरानी समिति भी बनाई है। इस बारे में मिली प्रतिक्रिया और इसके प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा कि सरकार इस तरह की समितियों के बहुलीकरण पर विचार कर रही है। एक ‘बैड बैंक’ की स्थापना किये जाने के मसले पर केन्द्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि अनेक संभावित विकल्प हैं और इस मसले पर सार्वजनिक मंचों पर बहस हो रही है।
आज की बैठक में भाग लेने वाले सलाहकार समिति के सदस्यों ने विशेष कर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के व्यापक एनपीए की समस्या से निपटने के लिए विभिन्न सुझाव दिए, जिससे बैंकों का समग्र प्रदर्शन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। एक सदस्य ने सुझाव दिया कि संबंधित राज्य सरकारों को फंसे कर्जों की नीलामी में भाग लेने की अनुमति दी जा सकती है। विभिन्न सदस्यों ने सुझाव देते हुए कहा चूंकि परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियां (एआरसी) निजी क्षेत्र में हैं और अनेक मामलों में उनका प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा है, इसलिए कड़े नियम-कायदों के जरिए एआरसी के परिचालनों पर करीबी निगाह रखी जानी चाहिए। इन सदस्यों ने स्वत: रूट के जरिए एआरसी में 100 फीसदी एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) की अनुमति देने के निर्णय को ध्यान में रखते हुए यह सुझाव दिया है।
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