देहरादून: उत्तराखण्ड विधानसभा की ओर से पुशलोक बैराज ऋषिकेश में उत्तराखण्ड के नदी तंत्र को स्वच्छ अविरल बनाये रखने और नदियों की अविरलता में बाधा बन रही परियोजनाओं विकल्प खोजने के लिए एक ंगोष्ठी का अयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता राज्यपाल डाॅ. कृष्ण कान्त पाल ने की। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि गंगा की स्वच्छता पर विचार मंथन सभा का ऋषिकेश में आयोजन किया जाना प्रासंगिक है, क्योंकि गोष्ठी का केंद्र गंगा है तो गंगा के तट पर यह आयोजन होने से सभी का ध्यान गंगा पर ही केंद्रित होना चाहिए।
राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड का नदी तंत्र विश्व के सबसे समृद्ध नदी तंत्रों में से एक है। यहाॅ सैकड़ों छोटी-बड़ी जलधाराएं हैं जो हिमालय की गोद में स्थित भारत, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं में स्थित स्रोतों से उत्पन्न होकर उत्तराखण्ड से गुजरती है प्रदेश ही नहीं वरन् सम्पूर्ण देश के आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय तंत्र के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गंगा भारत वासियों सहित विश्व के करोड़ों लोगों की धार्मिक और आध्यत्मिक आस्था का प्रतीक है।
राज्यपाल ने विशेष जोर देते हुए कहा कि गंगा को जितना सम्मान हम धार्मिक आस्था के रूप् में तो हम देते ही हैं, लेकिन गंगा को आज हमारे भावानात्मक लगाव की आवश्यकता है। हमें गंगा के साथ आत्मीय और भावनात्मक सम्मान देना होगा। गंगा की स्वच्छता तभी सम्भव है।
राज्पाल ने गंगा को पर्यावरण और मानव जीवन के लिए उपयोगी बताते हुए कहा कि बच्चों को स्कूलों में गंगा की स्वछता और पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाये जाने की आवश्यकता है। शिक्षक बच्चों को पर्यावरण के विषय पर विशेष रूप् से प्रेरित करें। उन्होंने कहा कि गंगा को बचाने के लिए सबसे बड़ी चुनौती गंगा में बढ़ते हुए प्रदूषण की हैं।
गंगा में सीवरेज, औद्योगिक कूड़ा, प्लास्टिक की थैलियाॅ एवं नालों आदि का गंगा में छोड़ा जाना बंद करना होगा। गंगा घाटों पर शव दाह, एवं जलने के बाद शरीर की राख और पार्थिव शरीर को गंगा में विसर्जन किये जाने की प्रक्रिया से गंगा विषैली हो रही हैं। इन सब समस्याओं के उचित समाधान खोजने की आवश्यकता है।
गंगा की स्वच्छता में सबसे बड़ा पहलू जन सहभागिता है। गंगा को स्वच्छ रखने के लिए सीवेज तथा औद्योगिक कूड़ा निष्पादन तंत्र विकसित किये जाने की आवश्यकता बतायी। राज्यपाल ने सुझाव दिया कि रिहायिशी इलाकों में नालियों, नालों व सीवेज आदि स्थानों पर राइजोम घास लगानी चाहिए। यह बेल नुमा घास पानी को शुद्ध करने का कार्य करती है। हरित क्षेत्र को बढ़ाना देना होगा, लेकिन इसके लिए विशेष रूप् से बाॅज, साल और बरगद के पेड़ लगाये जाने चाहिए। इन वृक्षों की विशेषता है कि यह अधिक पानी होने पर पानी को सोखने और धरती में कम पानी होने पर पानी को छोड़ने की प्रक्रिया करते हैं। नदियों में कूड़ा निस्तारण पूर्णतः बंद किये जाने की आवश्यकता राज्यपाल ने बतायी। संगोष्ठी में विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचन्द्र अग्रवाल स्वामी चिदानन्द मुनी सहित पर्यावरण विशेषज्ञ उपस्थ्रित है।