नई दिल्लीः राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने हैदराबाद में उस्मानिया विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोहों के उद्घाटन समारोह को संबोधित किया।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमें विश्वविद्यालयों का उच्चतर शिक्षा के मंदिरों के रूप में विकास करना चाहिए। उन्हें अध्ययन वातावरण के सृजन का स्थान होना चाहिए जहां विचारों का स्वतंत्र आदान प्रदान हो सके और छात्रों एवं शिक्षकों के रूप में ताकतवर मस्तिष्क आपस में विचारों का आदान प्रदान कर सकें। उस्मानिया विश्वविद्यालय की स्थापना इसी ध्येय के साथ की गई थी कि यह उत्कृष्टता का एक ऐसा संस्थान बनेगा जहां स्वतंत्र मस्तिष्क स्वतंत्रता के साथ विचारों का आदान प्रदान कर सकें, आपस में बातचीत कर सकें और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के साथ रह सकें। राष्ट्र्पति महोदय ने कहा कि प्राचीन समय में भारत ने उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई थी। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला आदि जैसे विश्वविद्यालयों ने छात्रों एवं शिक्षकों के रूप में ताकतवर मस्तिष्कों को आकर्षित किया था।
राष्ट्र्पति महोदय ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि आज उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षणिक अवसंरचना में प्रचुर विकास हुआ है। बहरहाल, अभी भी चिंता के कुछ क्षेत्र हैं। उच्चतर शिक्षा के 100 से अधिक केंद्रीय संस्थानों की यात्रा कर चुकने के कारण, वह लगातार इस विषय पर जोर देते रहे हैं कि भारत के इन संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग प्रक्रिया में उनका उचित स्थान प्राप्त होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस पहलू पर ध्यान दिए जाने के अतिरिक्त, मूलभूत अनुसंधान एवं शिक्षा पर भी बल दिए जाने की आवश्यकता है। राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि उद्योग एवं शिक्षा क्षेत्र के बीच कारगर अंत:संयोजन एवं परस्पर संपर्क किए जाने की जरूरत है। हम अलग थलग नहीं रह सकते। हमें अनुसंधान एवं नवप्रवर्तन में निवेश करने की आवश्यकता है जिससे कि हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपना उचित स्था्न प्राप्त कर सकें। राष्ट्रपति महोदय ने जोर देकर कहा कि इन विचारों को अनिवार्य रूप से व्यवहारिक कदम के रूप में रूपांतरित किया जाना चाहिए।