नई दिल्ली: 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन. के. सिंह ने 8-9 मई के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक और जाने माने अर्थशास्त्रियों के साथ मुंबई में हुई दो दिवसीय बैठक की आज मीडिया को जानकारी दी।
श्री सिंह ने बैठक को काफी सफल बताते हुए कहा कि चर्चा के दौरान सतत वृहत आर्थिक स्थायित्व के लिए कुछ अहम विषयों पर गौर किए जाने के बारे में वित्त आयोग का ध्यान आकर्षित किया गया। बैठक में राज्यों के रिण का विशेष रूप से रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर विश्लेषण किया गया। इस दौरान राज्य सरकारों के ऋण परिदृश्य तथा इस संबंध में उनके द्वारा वृहत आर्थिक प्रबंधन विधेयक के अनुपालन का वृहत आकलन किया गया। श्री सिंह ने बताया कि इस विषय पर बातचीत काफी लाभदायक रही।
श्री सिंह ने कहा कि आर्थिक प्रबंधन के लिहाज से कुछ राज्यों का प्रदर्शन अच्छा है जबकि कुछ का काफी खराब। इसलिए बैठक में उन प्रणालियों पर खास तौर से व्यापक चर्चा की गई जिसके जरिए बाजार की ताकतें उधारी दर तय करती हैं और जिनके आधार पर आगे वित्तीय प्रबंधन के मामले में राज्यों का आकलन किया जाता है। बैठक में रिण की स्थिति के लिहाज से राज्यों को क्रेडिट रेटिंेग तथा बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) लक्ष्यों के लिए समायोजन करने के लिए प्रेात्साहित करने के संभावित उपायों पर भी चर्चा की गई।
वित्त आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि बेहतर आर्थिक अनुशासन के लिए मजबूत सांख्यिकी प्रणाली विकसित करने, डेटा की विश्वसनीयता बनाए रखने और उनमें एकरूपता लाने की संभावनाओं का भी पता लगाया गया।
चर्चा के दौरान कुछ रोचक विचार भी सामने आए। केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के भविष्य पर हुई चर्चा इनसें से एक थी। श्री सिंह ने कहा कि केन्द्र सरकार ऐसी योजनाओं पर प्रति वर्ष साढ़े तीन लाख करोड़ रूपए खर्च करती है। ऐसी योजनाओं को और अधिक युक्तिसंगत बनाने के पिछले कुछ समय से किए गए प्रयास काफी लाभदायक रहे हैं। चूंकि अब पंचवर्षीय योजना खत्म हो चुकी है इसलिए केन्द्र प्रायोजित योजनाओं की मध्यावधि समीक्षा भी नहीं होती ऐसे में सरकार ने अब यह तय किया है कि इन योजनाओं की समय अवधि वित्त आयोग के कार्यकाल के अनुरूप होगी। इस संबंध में कई सुझाव भी दिए गए।
केंद्र सरकार और अन्यों के दृष्टिकोण से सीएसएस को युक्तिपूर्ण और सरल बनाने का एक बहुत अच्छा अवसर है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसके बारे में विचार किया जा रहा है।
वित्त आयोग को 30 ज्ञापन प्राप्त होते हैं जिनमें एक केंद्र सरकार से और 29 ज्ञापन राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों से प्राप्त होते हैं। हम केंद्र सरकार के ज्ञापन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि यह ज्ञापन जल्दी ही हमें मिल जाएगा जिसके बाद हम देखेंगे कि केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व का उचित वितरण क्या हो सकता है।
आयोग 29 राज्यों में से 20 राज्यों का दौरा पहले ही कर चुका है। आदर्श आचार संहिता की अवधि समाप्त होने के बाद बकाया राज्यों का दौरा शुरू किया जाएगा।
मीडिया द्वारा पूछे गए प्रश्नों के अध्यक्ष द्वारा दिए गए जवाबों के कुछ अंश यहां दिए गए हैं।
बिमल जालान समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की आरक्षित निधियों के मुद्दे पर वित्त आयोग और आरबीआई द्वारा गहराई से विचार-विमर्श नहीं किया जाना चाहिए। यह आरबीआई का अंदरुनी मामला है। हमारे सामने यह उल्लेख किया गया है कि बिमल जालान समिति अपने विचार-विमर्श के अंतिम चरण में है।
हम पीसीए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनः पूंजीकरण के संबंध में केंद्र सरकार के एक ज्ञापन की प्रतीक्षा करेंगे, क्योंकि पुनः पूंजीकरण की बाध्यता केंद्र सरकार के लिए होती और उनके द्वारा ही वित्त आयोग के ज्ञापन के माध्यम से संबंधित अवधि के लिए संभावित व्यय प्रस्तुत किया जाएगा।
हम इस बारे में बड़ी नजदीकी से विचार कर रहे हैं कि किस तरह की असमान वृद्धि, ऋण और राजकोषीय घाटे की गति सामान्य सरकार के ऋण और वित्तीय घाटे के उस समग्र उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए व्यावहारिक होगी जो एफआरबीएम लक्ष्यों के अनुरूप होने पर भी व्यावहारिकता की सीमा के भीतर हो।
हम ऋण के आंकड़े, सार्वजनिक क्षेत्र की ऋण आवश्यकताओं और आकस्मिक देनदारियों का पता लगाना चाहेंगे ताकि हमें ऋण परिदृश्य की एक सच्ची और समग्र तस्वीर प्राप्त हो सके। हमने इस संबंध में आरबीआई के साथ विचार-विमर्श किया है और यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आयोग ध्यान देगा।
राजस्व विभाग द्वारा हमें दिए गए अनुमानों से प्रत्यक्ष करों में बहुत अच्छी उछाल आने का पता चलता है। अप्रत्यक्ष कर संग्रह विशेष रूप से जीएसटी के संबंध में स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हम जीएसटी रुख में सुधारों के नवीनतम आंकड़ों के आधार पर राजस्व विभाग के साथ बातचीत का एक अन्य दौर करने जा रहे हैं और इस बारे में विचार किया जाएगा कि स्थिति को बहुत बेहतर स्थाई और अनुमानित बनाने के लिए क्या-क्या बदलाव किए जा सकते हैं।
हम स्वयं सीएजी, आरबीआई और वित्त मंत्रालय तथा अन्य स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के आर्थिक आंकड़ा के समन्वय की प्रक्रिया शुरू करने जा रहे हैं ताकि हम जनता के लिए विश्वसनीय डेटा के बारे में विचार-विमर्श के आधार पर उचित निष्कर्ष निकाल सकें। हालांकि इसका डेटा की कार्यप्रणली और गणना से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन हम डेटा के विविध स्रोतों में सामंजस्य स्थापित करना चाहते हैं। ऐसा करने में सक्षम होने के लिए यह सामंजस्य स्वीकार्य और उचित विवेक की सीमा के भीतर होगा।