ऑटोमोबाइल उद्योग अधिक मात्रा में इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्माण करने के लिए बेताब है लेकिन, इनके परिवर्तन में भारी मात्रा में बाधाओं का सामना कर रह है। ऐसे कठिन समय में इंटस्ट्री को इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए धक्का देना, वैश्विक और घरेलू ब्रांड्स को इन ईको-फ्रेंडली वाहनों के लिए एक दम से भारी मात्रा में निवेश करना आसान नहीं है।
अगले कुछ वर्षों में कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहन सेगमेंट में अपने कई मॉडल्स लॉन्च करने जा रही हैं लेकिन इसकी मांग में कई गुना वृद्धि अगले दशक तक ही देखने को मिलेगी। विश्व राष्ट्रों के बीच कम कार्बन पदचिह्न की चिंता इलेक्ट्रिक वाहनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके साथ ही हर देश की जनता इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को स्वीकार कर रही है क्योंकि परिवहन का भविष्य और नए तकनीकी निर्माण के अनुकूल होना उनके लिए जरूरी भी है।
भविष्य में दो चीजों को कम करने के की लड़ाई चलेगी एक तो मौजूदा पेट्रोल-डीजल इंजन वाली कारों की कीमतें कम करना और इलेक्ट्रिक वाहनों को बनाने की लागत को कम करना। लेकिन अगर भविष्य में ऐसा हो जाए कि ईको-फ्रेंडली कारों की कीमत मौजूदा पेट्रोल-डीजल कारों से कम हो तो कैसा लगेगा? ऐसा ऑफर मिलते ही नया वाहन खरीदने जा रहे लोग खुद को रोक नहीं पाएंगे।
बता दें अंतर्राष्ट्रीय मीडिया पर एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें यह बताया गया है कि 2024 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत मौजूदा पेट्रोल-डीजल कारों के समान हो जाएगी। और एक साल बाद, बैटरी पैक की कीमत और इेक्ट्रिक व्हीकल सिस्टम के प्रोसेसिंग में काम आने वाले अनूठे धातुओं की मांग में गिरावट आ जाएगी। दोनों ही आउटपुट लागत तय करने वाले प्रमुख संसाधन हैं और लिथियम-आयन स्टोरेज के बड़े पैमाने पर उत्पादन में वृद्धि के कारण बैटरी की कीमतें 2030 तक 70 डॉलर प्रति kWh होने का अनुमान है। हालांकि एक्सपर्ट कहते हैं कि पश्चिमी देशों में 2024 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतों में कटौती उनके लिए बड़ी चुनौती है लेकिन भारत में अभी इलेक्ट्रिक वाहनों को पूरी तरह से आने में 10 से 15 साल और लग सकते हैं।
बाकी देशों के मुकाबले भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की क्या स्थिति है?
ऑटो एक्सपर्ट रंजॉय मुखर्जी ने बताया कि भारत में इलेक्ट्रिक कारें काफी महंगी हैं और लोग इन्हें खरीदने के लिए इसलिए भी कतराते हैं क्योंकि इन्हें पूरे देश में नहीं चलाया जा सकता। भारत में अभी इलेक्ट्रिक वाहन अभी काफी छोटे पैमाने पर हैं और दुनिया में जितने भी सफल इलेक्ट्रिक वाहन हैं वो काफी महंगे हैं, जो कि आम आमदी की पहुंच से बाहर है।
उदाहरण के तौर पर आप भारत में चल रहे महिंद्रा के इलेक्ट्रिक वाहनों को भी देख सकते हैं। बाजार में इनकी बिक्री काफी कम है और मौजूदा समय में यह काफी महंगे हैं। ये वाहन कीमत, पावर और परफॉर्मेंस के हिसाब से पेट्रोल-डीजल वाहनों के आस-पास भी नहीं हैं। भारत में अभी इलेक्ट्रिक और पारंपरिक वाहन समान्य होना काफी मुश्किल हैं और यहां 10 से 15 साल और लगेंगे।
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर क्या हैं चुनौतियां?
रंजॉय मुखर्जी ने बताया कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर अपनी कुछ चुनौतियां है, जहां भारत में काफी गर्मी होती है वहीं जिन देशों में इलेक्ट्रिक कारें सफल है वहां काफी ठंड होती है। इसके अलावा दूसरे देशों के मुकाबले भारत में चार्जिंग पाइंट्स और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है। जिस देश के गावों तक बिजली पूरी तरह नहीं पहुंची है उस पूरे देश में इलेक्ट्रिक वाहन कैसे चलाएंगे।
पश्चिमी देशों में क्यों है इलेकट्रिक वाहन सफल?
पश्चिमी देशों ने इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर सब कुछ इलेक्ट्रिफाई कर लिया है और उनकी इलेक्ट्रिसिटी पूरी तरह न्यूक्लियर है। वहीं भारत में सबसे ज्यादा इलेक्ट्रिसिटी कोयले से बनाई जाती है उसके बाद कुछ थर्मल और हाइड्रोइलेक्ट्रिसिटी बनाते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा इस्तेमाल भारत में बिजली बनाने का कोयले से हो रहा है। इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए भारत में और ज्यादा इलेक्ट्रिसिटी चाहिए होगी तो उसके लिए और ज्यादा कोयले की खपत होगी। एक तरफ जहां आप इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज कर रहे हैं तो दूसरी और कोयले से बनी इलेक्ट्रिसिटी और ज्यादा प्रदूषण फैला रही है। (जागरण)