देहरादून: मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, देहरादून में डॉक्टरों ने एक शानदार उपलब्धि हासिल की है। यहां भर्ती 23 वर्षीय तन्मय चौहान कोविड संक्रमण से मुक्त होने के बाद जटिल एवं गंभीर फेफड़े के निमोनिया से जूझ रहे थे और अस्पताल में 60 दिनों तक रहने के बाद उन्हें डिस्चार्ज किया गया। अस्पताल में मल्टीडिसप्लनेरी टीम के प्रयास से ऐसा संभव हो पाया है। यह मैक्स अस्पताल के हर संभव तरीके से मृत्यु दर को कम करने के मिशन का ही एक प्रमाण है।
इसे एक असाधारण मामला कहा जा सकता है क्योंकि तन्मय 49 दिनों तक आईसीयू में थे, जिसमें से लगातार 36 दिन उन्होंने वेंटिलेटर सपोर्ट पर बिताए। पोस्ट कोविड सीक्वेल के अलावा, उन्हें गंभीर रेस्पाइरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम, रीनल फेल्यर और सेप्सिस जैसी कंडीशन में था और उन्हें मेकैनिकल वेंटिलेटर की आवश्यकता थी। लेकिन इसके बावजूद तन्मय के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ।
इस मामले के बारे में बात करते हुए मैक्स अस्पताल के पल्मोनोलॉजी के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ पुनीत त्यागी ने कहा, “इतनी कम उम्र होने के बावजूद, उन्हें एआरडीएस या एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम हो गया और उनका एक फेफड़ा भी रप्चर हो गए। तन्मय की ऑक्सीजन की आवश्यकता लगातार बढ़ रही थी, और उन्हें एनआरबीएम (नॉन-रिब्रीदर मास्क) सपोर्ट पर रखा गया। 28 अप्रैल से उन्हें आईसीयू में रखा गया और उन्हें एनआईवी (नॉन-इनवेसिव वेंटिलेटर) सपोर्ट पर भी रखा गया। उनका सैचुरेशन लेवल लगातार घटता जा रहा था और उन्हें पूरी तरह से मेकैनिकल वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। उन्हें बाद में सेकेंडरी बैक्टीरियल निमोनिया और राइट न्यूमोथोरैक्स हो गया जिसमें उनके एक फेफड़े के चारों ओर हवा भर गई जिसके बाद प्ल्युरल स्पेस (आईसीडी-इंटरकोस्टल ड्रेनेज ट्यूब) डाली गई।
वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट के कंसल्टेंट डॉ वैभव चाचरा ने कहा, “तन्मय 49 दिनों तक आईसीयू में थे और लगभग 36 दिनों तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे। उन्हें रीनल फेल्यर के साथ ठीक न होने वाला बुखार भी हो गया। इसे सेप्टिक शॉक व सेप्सिस एवं एक्यूट किडनी इंजरी के रूप में जाना जाता है। तन्मय के पैरों में भी कमजोरी होने लगी थी इसलिए न्यूरोलॉजी टीम से परामर्श किया गया और उन्हें भी इलाज में शामिल किया गया। रेमेडिसिविर, ैजमतवपके के साथ-साथ प्लाज्मा थेरेपी सहित कोविड के लिए सभी दवाएं देने के बावजूद, मरीज की तबीयत और बिगड़ गई। हालांकि, हम सभी ने दिन-रात अथक परिश्रम किया और कभी उम्मीद नहीं छोड़ी।”
इस मामले के बारे में बात करते हुए, क्रिटिकल केयर के कंसल्टेंट और विभागाध्यक्ष डॉ शांतनु बेलवाल ने कहा, “हमने कोई कसर नहीं छोड़ी और रोगी की अत्यधिक देखभाल की। हमने उचित एंटीमाइक्रोबियल सपोर्ट के साथ उनकी निगरानी की। गंभीर कोविड निमोनिया होने के कारण उनके स्वास्थ्य में उतारदृचढ़ाव आता रहा। इसके चलते उन्हें कई प्रकार की जटिलताओं से जूझना पड़ा और लगातार वेंटिलेटर सपोर्ट की आवश्यकता पड़ती रही। उनकी स्थिति को नियंत्रण में रखना एक चुनौती थी और एक समर्पित टीम और चौबीसों घंटे प्रयास के साथ ही उन्हें बचाना संभव हो सका।ʺ
न केवल रोगी बल्कि उसके परिवार ने भी इलाज में पूरा सहयोग दिया और डॉक्टरों और उनके इलाज में अपना पूरा विश्वास रखा। जब वह आईसीयू में थे, तब उनका परिवार उन्हें प्रेरित करने के लिए नियमित रूप से वीडियो कॉल करता था। जबकि, उस समय बहुत से लोग अपनी जान गंवा रहे थे। लेकिन तन्मय दृढ़ इच्छाशक्ति वाले थे और उन्होंने जीवन के लिए अपने उत्साह को बनाए रखा। अस्पताल से छुट्टी मिलने के एक महीने बाद, तन्मय ठीक हो रहे हैं और उन्होंने अपनी दैनिक गतिविधियों को फिर से शुरू कर दिया है। वह अपने घर से ही अपने व्यवसाय का प्रबंधन कर रहे हैं।
मैक्स में डॉक्टरों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए, तन्मय की मां ने कहा, “हम मैक्स हॉस्पिटल्स और सभी डॉक्टरों के साथ-साथ कर्मचारियों के काम के लिए और हमारे बेटे के अनमोल जीवन को बचाने के लिए आभारी हैं। यह केवल उनकी निरंतर देखभाल और निगरानी और अथक प्रयास के कारण संभव हुआ कि आज हमारे साथ हमारा बेटा मौत के मुंह से वापस आ गया है। अगर मैक्स अस्पताल में ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध नहीं होता, तो हमारे बेटे को इतनी जल्दी इतनी हाई-टेक देखभाल की सुविधा नहीं मिल पाती।”
मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, देहरादून का 35 बेड वाला क्रिटिकल केयर विभाग पूरी तरह से अत्याधुनिक गुणवत्ता वाले वेंटिलेटर, विशेष मॉनिटर, पोर्टेबल डायलिसिस मशीन, सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम, आर्टेरियल ब्लड गैस एनालाइजर (एबीजी) से लैस है। रोगी की सुविधानुसार बेड साइड पोर्टेबल एक्स-रे, यूएसजी, यूजीआई स्कोप और ब्रोंकोस्कोपी की सुविधा आसानी से उपलब्ध है जो और किसी भी फैसिलिटी में उपलब्ध नहीं है। विभाग के पास प्रशिक्षित सहायक स्टाफ और डॉक्टरों की एक समर्पित टीम है।