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25 जून 2017 को आकाशवाणी के मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के उद्बोधन का मूल पाठ

देश-विदेश

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार! मौसम बदल रहा है। इस बार गर्मी भी बहुत रही। लेकिन अच्छा हुआ कि वर्षा ऋतु समय पर अपने नक्शेक़दम पर आगे बढ़ रही है। देश के कई भागों में झमाझम बारिश से मौसम सुहाना हो गया है। बारिश के बाद ठण्डी हवाओं में पिछले दिनों की गर्मी से राहत का अनुभव रहा है। और हम सबने देखा है कि जीवन में कितनी ही आपाधापी हो, कितना ही तनाव हो, व्यक्तिगत जीवन हो, सार्वजनिक जीवन हो, बारिश का आगमन ही हमारी मनःस्थिति को भी बदल देता है।

आज भगवान जगन्नाथ जी की रथ-यात्रा देश के कई भागों में बहुत ही श्रद्धा और उल्लासपूर्वक देशवासी मनाते हैं। अब तो विश्व के भी कुछ भागों में भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा का उत्सव सम्पन्न होता है। और भगवान जगन्नाथ जी के साथ देश का ग़रीब जुड़ा हुआ है। जिन लोगों ने डॉ0 बाबा साहेब आम्बेडकर का अध्ययन किया होगा, उन्होंने देखा होगा कि भगवान जगन्नाथ जी का मन्दिर और उसकी परंपराओं की वो बड़ी तारीफ़ करते थे, क्योंकि उसमें सामाजिक न्याय, सामाजिक समरसता अंतर्निहित थे। भगवान जगन्नाथ ग़रीबों के देवता हैं। और बहुत कम लोगों को पता होगा, अंग्रेज़ी भाषा में एक शब्द है juggernaut और उसका मतलब होता है, ऐसा भव्य रथ जिसे कोई रोक नहीं सकता। और इस juggernaut के dictionary meaning में भी ये पाया जाता है कि जगन्नाथ के रथ के साथ में से ही ये शब्द का उद्भव हुआ है। और इसलिए हम समझ सकते हैं कि दुनिया ने भी जगन्नाथ की इस यात्रा को अपने-अपने तरीक़े से किस प्रकार से माहात्म्य स्वीकार किया है। भगवान जगन्नाथ जी की यात्रा के अवसर पर मैं सभी देशवासियों को शुभकामनायें देता हूँ और भगवान जगन्नाथ जी के श्रीचरणों में प्रणाम भी करता हूँ।

भारत की विविधता ये इसकी विशेषता भी है, भारत की विविधता ये भारत की शक्ति भी है। रमज़ान का पवित्र महीना सब दूर इबादत में पवित्र भाव के साथ मनाया। अब ईद का त्योहार है। ईद-उल-फ़ितर के इस अवसर पर मेरी तरफ़ से सबको ईद की बहुत-बहुत शुभकामनायें | रमज़ान महीना पुण्य दान का महीना है, ख़ुशियों को बाँटने का महीना है और जितनी खुशियाँ बाँटते हैं, उतनी खुशियाँ बढ़ती हैं। आइए, हम सब मिलकर के इन पवित्र उत्सवों से प्रेरणा लेकर के ख़ुशियों के ख़ज़ानों को बाँटते चलें, देश को आगे बढ़ाते चलें।

रमज़ान के इस पवित्र महीने में उत्तर प्रदेश के बिजनौर के मुबारकपुर गाँव की एक बड़ी प्रेरक घटना मेरे सामने आयी। क़रीब साढ़े तीन हज़ार हमारे मुसलमान भाई-बहनों के परिवार वहाँ उस छोटे से गाँव में बसते हैं, एक प्रकार से ज़्यादा आबादी हमारे मुस्लिम परिवार के भाइयों-बहनों की है। इस रमज़ान के अन्दर गाँववालों ने मिलकर के शौचालय बनाने का निर्णय लिया। और इस व्यक्तिगत शौचालय के अन्दर सरकार की तरफ़ से भी सहायता मिलती है और उस सहायता की राशि क़रीब 17 लाख रुपये उनको दी गई। आपको जानकर के सुखद आश्चर्य भी होगा, आनंद होगा। रमज़ान के इस पवित्र महीने में सभी मुसलमान भाइयों-बहनों ने सरकार को ये 17 लाख वापस लौटा दिए। और ये कहा कि हम हमारा शौचालय, हमारे परिश्रम से, हमारे पैसों से बनाएँगे। ये 17 लाख रुपये आप गाँव की अन्य सुविधाओं के लिए खर्च कीजिए। मैं मुबारकपुर के सभी ग्रामजनों को रमज़ान के इस पवित्र अवसर को समाज की भलाई के अवसर में पलटने के लिए बधाई देता हूँ। उनकी एक-एक चीज़ भी बड़ी ही प्रेरक है। और सबसे बड़ी बात है, उन्होंने मुबारकपुर को खुले में शौच से मुक्त कर दिया। हम जानते हैं कि हमारे देश में तीन प्रदेश ऐसे हैं सिक्किम, हिमाचल और केरल, वो पहले ही खुले में शौच से मुक्त घोषित हो चुके हैं। इस सप्ताह उत्तराखण्ड और हरियाणा भी ODF घोषित हुए। मैं इन पाँच राज्यों के प्रशासन को, शासन को और जनता-जनार्दन को विशेष रूप से आभार प्रकट करता हूँ इस कार्य को परिपूर्ण करने के लिये।

हम भली-भाँति जानते हैं कि व्यक्ति के जीवन में, समाज के जीवन में कुछ भी अच्छा करना है, तो बड़ी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। अगर हमारी handwriting ख़राब है, अगर उसको ठीक करना है, तो लंबे अरसे तक बहुत जागरूक रहकर के प्रयास करना पड़ता है। तब जाकर के शरीर की, मन की आदत बदलती है। स्वच्छता का भी विषय ऐसा ही है। ऐसी बुरी आदतें हमारे स्वभाव का हिस्सा बन गई हैं। हमारी आदतों का हिस्सा बन गई हैं। इससे मुक्ति पाने के लिये अविरत रूप से हमें प्रयास करना ही पड़ेगा। हर किसी का ध्यान आकर्षित करना ही पड़ेगा। अच्छी प्रेरक घटनाओं का बार-बार स्मरण भी करना पड़ेगा। और मुझे खुशी है कि आज स्वच्छता ये सरकारी कार्यक्रम नहीं रहा है। ये जन समाज का, जन-सामान्य का एक आन्दोलन बनता चला जा रहा है। और शासन में बैठे हुए लोग भी जब जनभागीदारी से इस काम को आगे बढाते हैं, तो कितनी ताक़त बढ़ जाती है।

पिछले दिनों एक बहुत ही उत्तम घटना मेरे ध्यान में आई, जो मैं आपके सामने ज़रूर कहना चाहूँगा। ये घटना है आन्ध्र प्रदेश के विजयनगरम ज़िले की। वहाँ के प्रशासन ने जनभागीदारी से एक बड़ा काम हाथ में लिया। 10 मार्च सुबह 6 बजे से लेकर के 14 मार्च सुबह 10 बजे तक। 100 घंटे का non stop अभियान। और लक्ष्य क्या था ? एक सौ घंटे में 71 ग्राम पंचायतों में दस हज़ार घरेलू शौचालय बनाना। और मेरे प्यारे देशवासियो, आप जानकर के ख़ुश हो जाएँगे कि जनता-जनार्दन ने और शासन ने मिलकर के 100 घंटे में दस हज़ार शौचालय बनाने का काम सफलतापूर्वक पूर्ण कर दिया। 71 गाँव ODF हो गए। मैं शासन में बैठे हुए लोगों को, सरकारी अधिकारियों को और विजयनगरम ज़िले के उन गाँव के नागरिकों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ कि आपने परिश्रम की पराकाष्ठा करते हुए बड़ा प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है।

इन दिनों ‘मन की बात’ में लगातार मुझे जनता-जनार्दन की तरफ़ से सुझाव आते रहते हैं। NarendraModiApp पर आते रहते हैं, MyGov.in पर आते हैं, चिट्ठियों से आते हैं, आकाशवाणी पर आते हैं।

श्रीमान प्रकाश त्रिपाठी ने emergency को याद करते हुए लिखा है कि 25 जून को लोकतंत्र के इतिहास में एक काला कालखंड के रूप में उन्होंने प्रस्तुत किया है। प्रकाश त्रिपाठी जी की लोकतंत्र के प्रति ये जागरूकता सराहनीय है और लोकतंत्र एक व्यवस्था ही है, ऐसा नहीं है, वो एक संस्कार भी है। Eternal Vigilance is the Price of Liberty लोकतंत्र के प्रति नित्य जागरूकता ज़रूरी होती है और इसलिये लोकतंत्र को आघात करने वाली बातों को भी स्मरण करना होता है और लोकतंत्र की अच्छी बातों की दिशा में आगे बढ़ना होता है। 1975 – 25 जून – वो ऐसी काली रात थी, जो कोई भी लोकतंत्र प्रेमी भुला नहीं सकता है। कोई भारतवासी भुला नहीं सकता है। एक प्रकार से देश को जेलखाने में बदल दिया गया था। विरोधी स्वर को दबोच दिया गया था। जयप्रकाश नारायण सहित देश के गणमान्य नेताओं को जेलों में बंद कर दिया था। न्याय व्यवस्था भी आपातकाल के उस भयावह रूप की छाया से बच नहीं पाई थी। अख़बारों को तो पूरी तरह बेकार कर दिया गया था। आज के पत्रकारिता जगत के विद्यार्थी, लोकतंत्र में काम करने वाले लोग, उस काले कालखंड को बार-बार स्मरण करते हुए लोकतंत्र के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहे हैं और करते भी रहने चाहिए। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जी भी जेल में थे। जब आपातकाल को एक वर्ष हो गया, तो अटल जी ने एक कविता लिखी थी और उन्होंने उस समय की मनःस्थिति का वर्णन अपनी कविता में किया है।

झुलसाता जेठ मास,

शरद चाँदनी उदास,

झुलसाता जेठ मास,

शरद चाँदनी उदास,

सिसकी भरते सावन का,

अंतर्घट रीत गया,

एक बरस बीत गया,

एक बरस बीत गया ।।

सीखचों में सिमटा जग,

किंतु विकल प्राण विहग,

सीखचों में सिमटा जग,

किंतु विकल प्राण विहग,

धरती से अम्बर तक,

धरती से अम्बर तक,

गूंज मुक्ति गीत गया,

एक बरस बीत गया,

एक बरस बीत गया ।।

पथ निहारते नयन,

गिनते दिन पल-छिन,

पथ निहारते नयन,

गिनते दिन पल-छिन,

लौट कभी आएगा,

लौट कभी आएगा,

मन का जो मीत गया,

एक बरस बीत गया ।।

लोकतंत्र के प्रेमियों ने बड़ी लड़ाई लड़ी और भारत जैसा देश, इतना बड़ा विशाल देश, जब मौका मिला तो भारत के जन-जन की रग-रग में लोकतंत्र कैसा व्याप्त है, चुनाव के माध्यम से उस ताक़त का प्रदर्शन कर दिया। जन-जन की रग-रग में फैला हुआ ये लोकतंत्र का भाव ये हमारी अमर विरासत है। इस विरासत को हमें और सशक्त करना है।

मेरे प्यारे देशवासियो, हर हिंदुस्तानी आज विश्व में सिर ऊँचा कर-कर के गौरव महसूस कर रहा है। 21 जून, 2017 – पूरा विश्व योगमय हो गया। पानी से पर्वत तक लोगों ने सवेरे-सवेरे सूरज की किरणों का स्वागत योग के माध्यम से किया। कौन हिंदुस्तानी होगा, जिसको इस बात का गर्व नहीं होगा। ऐसा नहीं है कि योग पहले होता नहीं था, लेकिन आज जब योग के धागे में बंध गए हैं, योग विश्व को जोड़ने का कारण बन गया है। दुनिया के क़रीब-क़रीब सभी देशों ने योग के इस अवसर को अपना अवसर बना दिया। चीन में The Great Wall of China उस पर लोगों ने योग का अभ्यास किया, तो Peru में World Heritage Site माचू पिच्चू पर समुद्र तल से 2400 मीटर ऊपर लोगों ने योग किया। फ़्रांस में एफिल टॉवर के साये में लोगों ने योग किया। UAE में Abu Dhabi में 4000 से अधिक लोगों ने सामूहिक योग किया। अफगानिस्तान में, हेरात में India Afghan Friendship Dam सलमा बाँध पर योग कर के भारत की दोस्ती को एक नया आयाम दिया। सिंगापुर जैसे छोटे से स्थान पर 70 स्थानों पर कार्यक्रम हुए और सप्ताह भर का उन्होंने एक अभियान चलाया है। UN ने अंतराष्ट्रीय योग दिवस के 10 Stamps निकाले। उन 10 Stamps को release किया। UN Headquarter में Yoga Session with Yoga Masters का आयोजन किया गया। UN के staff, दुनिया के diplomats हर कोई इसमें शरीक़ हुआ।

इस बार फिर एक बार योग ने विश्व रिकॉर्ड का भी काम किया। गुजरात में अहमदाबाद में क़रीब-क़रीब 55 हज़ार लोगों ने एक साथ योग करके एक नया विश्व रिकॉर्ड बना दिया। मुझे भी लखनऊ में योग के कार्यक्रम में शरीक़ होने का अवसर मिला। लेकिन पहली बार मुझे बारिश में योग करने का सद्भाग्य प्राप्त हुआ। हमारे सैनिकों ने जहाँ minus 20, 25, 40 degree temperature होता है उस सियाचिन में भी योग किया। हमारे Armed Forces हों, BSF हो, ITBP हो, CRPF हो, CISF हो, हर कोई अपनी ड्यूटी के साथ-साथ योग को अपना हिस्सा बना दिया है। इस योग दिवस पर मैंने कहा था कि तीन पीढ़ी, क्योंकि ये तीसरा अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस था, तो मैंने कहा था कि परिवार की तीन पीढ़ियाँ एक साथ योग करते हुए उसकी फ़ोटो share कीजिये। कुछ TV channel ने भी इस बात को आगे बढ़ाया था। मुझे इस पर काफ़ी फ़ोटो मिले, उसमें से कुछ selected photographs NarendraModiApp पर compile करके रखे गए हैं। जिस प्रकार से पूरे विश्व में योग की चर्चा हो रही है, उसमें एक बात अच्छी उभर कर के आ रही है कि योग से आज की जो health conscious society है, वो fitness से अब wellness की ओर जाने की दिशा में क़दम रख रही है और उनको लग रहा है कि fitness का महत्व है ही है, लेकिन wellness के लिए योग उत्तम मार्ग है।

(साउंड बाइट #)

“Respected Prime Minister Sir, मैं डॉक्टर अनिल सोनारा अहमदाबाद, गुजरात से बोल रहा हूँ। सर, मेरा एक सवाल है कि recently केरल में हमने आपको सुना था कि different-different places पे जो bouquet as a gift हम देते हैं, उसकी जगह kind of good books हमको देनी चाहिए as a memento। इस चीज़ का आपने शुरुआत गुजरात में अपने कार्यकाल में भी करवाया था, सर, लेकिन अभी in recent days हमें ये ज़्यादा देखने को नहीं मिल रहा है। So can we do something ? हम क्या इस चीज़ के बारे में कुछ कर नहीं सकते, जिससे ये देशव्यापी तौर पे इस चीज़ का implementation हो सके, सर ?”

पिछले दिनों मुझे एक बहुत ही मेरे प्रिय कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला। केरल में अच्छा कार्यक्रम चलता है कुछ वर्षों से, P. N. Panicker Foundation के द्वारा चलता है और लोगों को किताबें पढ़ने की आदत बने, लोग किताब पढ़ने की ओर जागरूक हों, इसलिये reading day, reading month celebration किया जाता है। तो मुझे उसके शुभारम्भ में जाने का मौका मिला। और वहाँ मुझे ये भी बताया गया कि हम bouquet नहीं, book देते हैं। मुझे अच्छा लगा। अब मुझे भी जो चीज़ मेरे ध्यान से हट गई थी, उसका पुनः स्मरण हो गया। क्योंकि जब मैं गुजरात में था, तो मैंने सरकार में एक परंपरा बनाई थी कि हम bouquet नहीं देंगे, book देंगे या तो हाथ-रुमाल, handkerchief उसी से स्वागत करेंगे। और खादी का handkerchief, ताकि खादी को भी बढ़ावा मिले। जब तक मैं गुजरात में था, हम सब की आदत बन गई थी, लेकिन यहाँ आने के बाद मेरी वो आदत छूट गई थी। लेकिन केरल गया, तो फिर से एक बार वो जागरूक हो गई। और मैंने तो अभी सरकार में फिर से नीचे सूचना देना भी शुरू कर दिया है। हम भी धीरे-धीरे एक स्वभाव बना सकते हैं। और bouquet की आयुष बहुत कम होती है। एक बार हाथ में लिया, फिर छोड़ देते हैं। लेकिन अगर book देते हैं, तो एक प्रकार से घर का हिस्सा बन जाता है, परिवार का हिस्सा बन जाता है। खादी का रुमाल दे कर के भी स्वागत करते हैं, तो कितने ग़रीब लोगों को मदद मिलती है। ख़र्चा भी कम हो जाता है और सही रूप से उसका उपयोग भी होता है। और जब मैं ये बात कह रहा हूँ, तो ऐसी चीज़ों का कितना ऐतिहासिक मूल्य होता है। मैं गत वर्ष जब UK गया था, तो London में Britain की Queen, Queen Elizabeth ने मुझे भोजन पर निमंत्रित किया था। एक मातृसहज वातावरण था। बड़े प्यार से उन्होंने भोजन भी कराया, लेकिन बाद में उन्होंने मुझे एक बड़े ही आदर के साथ भावात्मक स्वर में एक छोटा-सा खादी का और धागे से बुना हुआ एक handkerchief दिखाया और उनकी आँखों में चमक थी, उन्होंने कहा कि जब मेरी शादी हुई थी, तो ये handkerchief महात्मा गाँधी ने मुझे भेंट में भेजा था शादी की शुभकामना के रूप में। कितने साल हो गए, लेकिन Queen Elizabeth ने महात्मा गाँधी के द्वारा दिया हुआ ये handkerchief संभाल के रखा हुआ है। और मैं गया, तो उन्होंने इस बात का बड़ा आनंद था कि वो मुझे वो दिखा रही थीं। और जब मैं देख रहा था, तो उनका आग्रह रहा कि नहीं, मैं उसको छू कर के देखूँ। महात्मा गाँधी की एक छोटी सी भेंट उनके जीवन का हिस्सा बन गई, उनके इतिहास का हिस्सा बन गई। मुझे विश्वास है कि ये आदतें रातों-रात नहीं बदलती हैं और जब कभी ऐसी बात करते हैं, तो आलोचना का भी शिकार होना होता है। लेकिन उसके बावजूद भी ऐसी बातें करते रहनी चाहिए, प्रयास करते रहना चाहिए। अब मैं ये तो नहीं कह सकता हूँ कि मैं कहीं जाऊँगा और कोई bouquet ले के आ जाएगा, तो उसको मना कर दूँगा, ऐसा तो नहीं कर पाऊँगा। लेकिन फिर भी आलोचना भी होगी, लेकिन बात करते रहेंगे, तो धीरे-धीरे सुधार भी होगा।

मेरे प्यारे देशवासियो, प्रधानमंत्री के नाते अनेक प्रकार के काम रहते हैं। फ़ाइलों में डूबे रहते हैं, लेकिन मैंने मेरे लिये एक आदत विकसित की है कि मुझे जो चिट्ठियाँ आती हैं, उसमें से रोजाना कुछ चिट्ठियाँ मैं पढ़ता हूँ और उसके कारण मुझे सामान्य मानव से जुड़ने का एक अवसर मिलता है। भाँति-भाँति की चिट्ठियाँ आती हैं, अलग-अलग प्रकार के लोग चिट्ठियाँ लिखते हैं। इन दिनों एक ऐसी चिट्ठी मुझे पढ़ने का अवसर मिला, मुझे लगता है कि मुझे ज़रूर आपको बताना चाहिए। दूर-सुदूर दक्षिण में, तमिलनाडु में, मदुराई की एक housewife अरुलमोझी सर्वनन – उन्होंने मुझे एक चिट्ठी भेजी। और चिट्ठी क्या थी, उन्होंने लिखा कि मैंने अपने परिवार में बच्चों की पढ़ाई वगैरह के ध्यान में रह के कुछ-न-कुछ economical activity करने की दिशा में सोचा, तो परिवार को थोड़ी आर्थिक मदद हो जाए। तो मैंने ‘मुद्रा’ योजना से, बैंक से पैसे लिए और बाज़ार से कुछ सामान ला करके supply करने की दिशा में कुछ काम शुरू किया। इतने में मेरे ध्यान में आया कि भारत सरकार ने Government E-Marketplace नाम की कोई व्यवस्था खड़ी की है। तो मैंने ढूँढ़ा, ये क्या है, कुछ लोगों से पूछा। तो मैंने ख़ुद को भी उसमें register करवा दिया। मैं देशवासियों को बताना चाहता हूँ, आपको भी मौका मिले, तो आप Internet पर E-GEM – ‘ई जी ई एम’ – उसको visit कीजिए। एक बड़ी नयी प्रकार की व्यवस्था है। जो भी सरकार में कोई चीज़ supply करना चाहता है, छोटी-छोटी चीज़ें भेजना चाहता है – बिजली के बल्ब भेजना चाहता है, dustbin भेजना चाहता है, झाड़ू भेजना चाहता है, chair भेजना चाहता है, table भेजना चाहता है, बेचना चाहता है, वो उसमें अपना नाम register करवा सकता है। वो क्या quality का माल है उसके पास, वो उसमें लिखकर के रख सकता है, कितने में वो बेचेगा, वो लिख सकता है और सरकार के department को compulsory है कि उन्होंने उस पर visit करना होगा, देखना होगा कि ये supply करने वाले quality compromise न करते हुए सस्ते में कौन पहुँचाता है। और फिर उसको order करना होता है। और उसके कारण बिचौलिये ख़त्म हो गए। सारी transparency आ गई। interface नहीं होता है, technology के माध्यम से ही सब होता है। तो E-GEM के अन्दर जो लोग registry करवाते हैं, सरकार के सभी department उसको देखते रहते हैं। बीच में बिचौलिये नहीं होने के कारण चीज़ें बहुत सस्ती मिलती हैं। अब ये अरुलमोझी मैडम ने सरकार की इस website पर वो जो-जो सामान दे सकती हैं, उसका सारा registry करवा दी। और मज़ा ये है कि उन्होंने मुझे जो चिट्ठी लिखी है, वो बड़ी interesting है। उन्होंने लिखा कि एक तो मुझे ‘मुद्रा’ से पैसे मिल गए, मेरा कारोबार शुरू हो गया, E-GEM के अन्दर मैंने मैं क्या दे सकती हूँ, वो सारी सूची रख दी और मुझे प्रधानमंत्री कार्यालय से order मिला, PMO से। अब मेरे लिए भी ये नयी ख़बर थी, PMO ने क्या मँगवाया होगा, तो उसने लिखा है कि PMO ने मेरे से दो thermos ख़रीदे। और 1600 रुपये का मुझे payment भी मिल गया। ये है empowerment ये है entrepreneurship को बढ़ावा देने का अवसर। शायद अरुलमोझी जी ने मुझे चिट्ठी न लिखी होती, तो मेरा भी शायद इतना ध्यान नहीं गया होता कि E-GEM की व्यवस्था से दूर-सुदूर एक गृहिणी छोटा सा काम कर रही है, उसका माल प्रधानमंत्री कार्यालय तक ख़रीदा जा सकता है। यही देश की ताक़त है। इसमें transparency भी है, इसमें empowerment भी है, इसमें entrepreneurship भी है। Government E-Marketplace – GEM मैं ज़रूर चाहूँगा कि जो इस प्रकार से सरकार को अपना माल बेचना चाहते हैं, वो उससे ज़्यादा से ज़्यादा जुड़ें। मैं मानता हूँ Minimum Government and Maximum Governance का एक बेहतरीन उदहारण है ये और इसका लक्ष्य क्या है minimum price और maximum ease, efficiency and transparency.

मेरे प्यारे देशवासियो, एक तरफ़ हम योग को लेकर के गर्व करते हैं, तो दूसरी तरफ़ हम Space Science में हमारी जो सिद्धियाँ हैं, उसके लिए भी गर्व कर सकते हैं। और ये ही तो भारत की विशेषता है कि अगर हमारे पैर योग से जुड़े हुए ज़मीन पर हैं, तो हमारे सपने दूर-दूर आसमानों के उन क्षितिजों को पार करने के लिये भी हैं। पिछले दिनों खेल में भी और विज्ञान में भी भारत ने बहुत-कुछ करके दिखाया है। आज भारत केवल धरती पर ही नहीं, अंतरिक्ष में भी अपना परचम लहरा रहा है। अभी दो दिन पहले ISRO ने ‘Cartosat-2 Series Satellite’ के साथ 30 Nano Satellites को launch किया। और इन satellites में भारत के अलावा फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका – ऐसे क़रीब-क़रीब 14 देश इसमें शामिल हैं। और भारत के इस Nano Satellite अभियान से खेती के क्षेत्र में, किसानी के काम में, प्राकृतिक आपदा के संबंध में काफ़ी कुछ हमें मदद मिलेगी। कुछ दिन पहले इस बात का हम सब को बराबर याद होगा, ISRO ने ‘GSAT-19’ का सफ़ल launch किया था। और अब तक भारत ने जो satellite launch किये हैं, उसमें ये सबसे ज़्यादा वज़नदार heavy satellite है। और हमारे देश के अख़बारों ने तो इसकी हाथी के वज़नों के साथ तुलना की थी, तो आप कल्पना कर सकते हैं कि कितना बड़ा काम अंतरिक्ष के क्षेत्र में हमारे वैज्ञानिकों ने किया है। 19 जून को ‘मार्स मिशन’ के एक हज़ार दिन पूरे हुए हैं। आप सबको पता होगा कि जब ‘मार्स मिशन’ के लिये हम लोग सफलतापूर्वक orbit में जगह बनाई थी, तो ये पूरा mission एक 6 महीने की अवधि के लिये था। उसकी life 6 महीने की थी। लेकिन मुझे ख़ुशी है कि हमारे वैज्ञानिकों के इस प्रयासों की ताक़त ये रही कि 6 महीने तो पार कर दिये – एक हज़ार दिन के बाद भी ये हमारा ‘मंगलयान मिशन’ काम कर रहा है, तस्वीरें भेज रहा है, जानकारियाँ दे रहा है, scientific data आ रहे हैं, तो समय अवधि से भी ज़्यादा, अपने आयुष से भी ज़्यादा काम कर रहा है। एक हज़ार दिन पूरा होना हमारी वैज्ञानिक यात्रा के अन्दर, हमारी अंतरिक्ष यात्रा के अन्दर एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।

इन दिनों sports में भी हम देख रहे हैं कि हमारे युवाओं का रुझान बढ़ता चला जा रहा है। अब ये नज़र आने लगा है कि पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी हमारी युवा पीढ़ियों को अपना भविष्य दिखने लगा है और हमारे खिलाड़ियों के कारण, उनके पुरुषार्थ के कारण, उनकी सिद्धि के कारण देश का भी नाम रोशन होता है। अभी हाल ही में भारत के बैडमिंटन खिलाड़ी किदाम्बी श्रीकांत ने इंडोनेशिया ओपन में जीत दर्ज़ कर देश का मान बढ़ाया है। मैं इस उपलब्धि के लिए उनको और उनके कोच को ह्रदय से बधाई देता हूँ। मुझे कुछ दिन पहले एथलीट पी. टी. उषा जी के Usha School of Athletics के Synthetic Track के उद्घाटन समारोह में जुड़ने का अवसर मिला था। हम खेल को जितना बढ़ावा देंगे, sports, sportsman spirit भी लेकर आता है। खेल व्यक्तित्व के विकास के लिए भी बहुत बड़ी अहम भूमिका अदा करता है। overall personality development में खेल का माहात्म्य बहुत है। देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। अगर हमारे परिवार में भी बच्चों को खेल की रुचि है, तो उनको अवसर देना चाहिए। उनको मैदान में से उठा करके, कमरे में बंद करके, किताबों के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए। वो पढ़ाई भी करें, उसमें भी आगे बढ़ सकते हैं, तो बढ़ें, लेकिन अगर खेल में उसका सामर्थ्य है, रुचि है, तो स्कूल, कॉलेज, परिवार, आस-पास के लोग – हर किसी को उसको बल देना चाहिए, प्रोत्साहित करना चाहिए। अगले Olympic के लिए हर किसी को सपने संजोने चाहिए।

फिर एक बार मेरे प्यारे देशवासियो, वर्षा ऋतु, लगातार उत्सवों का माहौल, एक प्रकार से ये कालखंड की अनुभूति ही नयी होती है। मैं फिर एक बार आप सब को शुभकामनायें देते हुए अगले ‘मन की बात’ के समय फिर कुछ बातें करूँगा। नमस्कार।

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