नई दिल्ली: जलवायु में होने वाले परिवर्तनों और मौसमों में अत्याधिक बदलाव कृषि उत्पादन प्रणाली में जोखिम और अनिश्चितता वैश्विक खाद्य असुरक्षा का प्रमुख कारण बन गए हैं।
शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं, उद्योग और किसानों के बीच कृषि मौसम संबंधी ज्ञान को एक-दूसरे से साझा करने, प्रौद्योगिकियों / प्रथाओं की पहचान करने और जोखिम प्रबंधन के लिए एक रोडमैप विकसित करने की तत्काल आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, कृषि मौसम वैज्ञानिकों के संघ (एएएमए) ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में “भारत में किसानों की जलवायु संबंधी जोखिमों के प्रबंधन के लिए कृषि मौसम विज्ञान में प्रगति” विषय पर (आईएनएजीएमईटी-2019) तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया है जिसका आज शुभारंभ हुआ।
इसका आयोजन भारतीय मौसम विभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने मिलकर किया है। संगोष्ठी का उद्घाटन करते हए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सचिव डॉ. माधवन एन राजीवन ने कहा कि यह संगोष्ठी मौसम और जलवायु भविष्यवाणियों में अग्रिम अनुमानों पर वैश्विक अनुभवों, जलवायु परिवर्तन और कृषि पर परिवर्तनशीलता के प्रभावों को समझने और अनुकूलन के लिए प्रभावी हस्तक्षेपों और बदलते मौसम के कारण होने वाले दुष्प्रभावों के शमन तथा नयी प्रौद्योगिकियों को अपनाने तथा वैश्विक मौसम विज्ञान और कृषि समुदायों के अनुभवों को साझा और सूचीबद्ध करेगी। इसके साथ ही यह कृषक समुदाय की आवश्यकताओं के अनुरूप भविष्य के अनुसंधान और सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करने में भी मदद करेगी।
संगोष्ठी के प्रमुख विषय इस प्रकार हैं-
· कृषि क्षेत्र के लिए मौसम और जलवायु से जुड़ी सेवाएं
· मानसून की भिन्नता तथा अनुमान
· जलवायु में अस्थिरता तथा बदलाव : पूर्वानुमान , प्रभाव और कृषि प्रणालियों के लिए हस्तक्षेप
· कृषि मौसम प्रणालियों के लिए कृषि मौसम संबंधी जानकारी और भू-स्थानिक निर्णय समर्थन प्रणाली व्यवस्था
· जोखिम हस्तांतरण : मौसम और फसल बीमा
· फसल बाद प्रबंधन और कृषि विपणन
· कृषि में जैव कृषि और दबाव प्रबंधन स्थानांतरण
· कृषि मौसम संबंधी सलाह के परिप्रेक्ष्य
· फसल मॉडल और भविष्यवाणी
· कृषि के लिए जल चक्र और पानी के उपयोग की दक्षता
· कृषि मौसम विज्ञान सेवाओं के विस्तार के लिए उद्योग इंटरफ़ेस
· मवेशियों,पोल्ट्री और मत्स्य पालन प्रंबधन के हस्तक्षेप
अध्ययनों के अनुसार, मौसम खेती उत्पादकता में बदलाव का सबसे बड़ा स्रोत है। विकास के स्तर पर निर्भर रहते हुए , पैदावार में अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता का लगभग 20 से 80% या तो प्रत्यक्ष शारीरिक तनावों के माध्यम से या कीटों और बीमारियों जैसे अप्रत्यक्ष तनाव के माध्यम से मौसम की परिवर्तनशीलता से उपजा है। कृषि उत्पादन प्रणालियों को पर्यावरणीय परिस्थितियों और खेती प्रबंधन द्वारा नियंत्रित किया जाता है। जलवायु संवेदनशील नीतियों और कार्यों के माध्यम से कृषि प्रणालियों का लचीलापन प्राप्त किया जा सकता है। कृषि में जलवायु संबंधी जोखिमों की पहचान, समझ और विश्लेषण और उनके संभावित समाधान हितधारकों द्वारा खोजे जाने वाले प्रमुख मुद्दे हैं।
निगरानी की आधुनिक प्रणाली, मौसम और जलवायु भविष्यवाणी,कृषि मौमस विज्ञान सेवाओं तथा प्रौद्योगिकी नवोन्मय और नए तरीकों ने जलवायु परिवर्तन के जोखिमों को कम करने और टिकाऊपन प्राप्त करने में काफी मदद की है।
आईएनएजीएमईटी -2019 में कृषि मौसम विज्ञान के प्रमुखता वाले क्षेत्रों से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान औरअनुभव साझा करने के लिए पेशेवरों, वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और अन्य सामाजिक समूहों के बीच बातचीत के लिएएक मंच मिलने की संभावना है। इस संगोष्ठी में देश भर के लगभग 100 संस्थानों और विदेशों के कृषि मौसमविज्ञान से जुड़े विशेषज्ञ तथा कृषि के विभिन्न क्षेत्रों के लगभग 450 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। संगोष्ठी में जहां मौसम और कृषि वैज्ञानिक अपने-अपने क्षेत्रों में हालिया प्रगति को ब्यौरा देंगें वहीं कृषि उद्योग के लिए कृषि व्यवसायको दोगुना करने और किसान की आय दोगुनी करने की पृष्ठभूमि में किसानों के सशक्तिकरण के लिए संयुक्त रूप से रोडमैप तैयार किया जाना संगोष्ठी के सत्र का विशेष आकर्षण होगा।