नई दिल्ली: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने आज यहाँ गौवंश एवं गौशालाओ पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय एवं पशु पालन, डेयरी मत्स्य पालन विभाग द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन मे कहा की भारत में डेयरी 60 मिलियन ग्रामीण घरेलू किसानों को आजीविका प्रदान करता है जिसमें से दो तिहाई गरीब, लघु और सीमान्त किसान तथा भूमिहीन कृषि मजदूर हैं।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जी ने कहा कि भारत डेयरी राष्ट्रों के बीच एक लीडर के रूप मे उभर रहा है। देश मे 2015-16 के दौरान हमारे किसानों ने 160.35 मिलियन टन दूध उत्पादित किया है जिसकी कीमत 4 लाख करोड़ रू. से भी अधिक है।पहली बार 10 वर्षों के औसत उत्पादन में वार्षिक वृद्धि दर भारत में 4.6 % और विश्व कि 2.24% है। देश की डेयरी सहकारिताएं किसानों को औसत रूप से अपनी बिक्री का 75 से 80 प्रतिशत प्रदान करती है।
श्री सिंह ने जानकारी दी की इस क्षेत्र में 15 मिलियन पुरूषों की तुलना में 75 मिलियन महिलायेँ कार्यरत हैं। पशुधन विकास क्रियाकलापों और डेयरी सहकारिताओं में नेतृत्वकारी भूमिका में महिलाओं की भागीदारी के प्रति रूझान बढ़ रहा है। इससे ग्रामीण समुदायों में महिला नेतृत्व घरों के सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जी ने कहा कि भारत में 30 करोड़ बोवाईन है, जो विश्व की बोवाईन आबादी का 18 प्रतिशत हैं। पारंपरिक तथा वैज्ञानिक ज्ञान के माध्यम से सैकड़ो वषों की मेहनत के बाद देश के देशी बोवाईन आनुवंशिक संसाधन विकसित हुए हैं और आज हमारे पास गोपशुओं की 39 नस्लों के साथ-साथ याक और मिथुन के अलावा भैंसों की 13 नस्लें हैं।
श्री सिंह ने कहा कि भारत में देशी पशु विशेष रूप से अपने-अपने प्रजनन क्षेत्रों की जलवायु और पर्यावरण के उपयुक्त होते हैं। उनमें ऊष्मा सध्यता, रोगों के प्रति प्रतिरोध की क्षमता और जलवायु और पोषाहार के अत्यधिक दबाव में पनपने की क्षमता होती है। डेयरी पशुओं के दुग्ध उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन और तापमान में वृद्धि का दुग्ध उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 2020 में तापीय दबाव के कारण पशुओं और भैंसों के दुग्ध उत्पादन में लगभग 30.2 लाख टन की वार्षिक हानि होगी जिसका मूल्य वर्तमान दरों पर लगभग 5000 करोड़ रुपये से अधिक होगा। दुग्ध उत्पादन और जनन क्षमता में गिरावट सबसे अधिक विदेशी एवं संकर नस्ल के पशुओ और उसके बाद भैंसों में होगी। जलवायु परिवर्तन से देशी नस्लें कम से कम प्रभावित होंगी। संयुक्त राज्य अमरीका, ब्राजील और आस्ट्रेलिया सहित कई देशों द्वारा ऊष्मा-सह् रोग प्रतिरोध स्टॉक का विकास करने के लिए देशी नसलों का आयात किया है।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जी ने कहा कि देशी गायें ए2 दूध उत्पादन करने के लिए जानी जाती हैं। ए2 प्रोटीन होने के कारण हमारी देशी गायें हमे कई बीमारियों से बचाती हैं जैसे डायाबेटिस, हार्द्य रोग दिमाग के रोग इत्यादि। हाल ही मे श्री सिंह ने वैज्ञानिकों एवं डेयरी उधयोग से जुड़े लोगे से बात की थी और उसमे सभी का मत था की अब ए2 दूध के विपणन की अलग से व्यवस्था करनी चाहिए। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का पशु पालन विभाग इस दिशा मे कार्य कर रहा है। श्री सिंह ने कहा कि विभाग ने ए2 दूध के विपणन की अलग से व्यवस्था करने के लिए ओड़ीशा एवं करनाटक राज्य को 2 -2 करोड़ रुपए की राशि अविकरत की है।
श्री सिंह ने बताया की व्यावसायिक फार्म प्रबंधन और संतुलित पोषाहार के जरिये भारत में देशी नस्लों की उत्पादकता में वृद्धि करने की अत्यधिक संभाव्यता है। राष्ट्रीय बोवाइन प्रजनन और डेयरी विकास कार्यक्रम के तहत “राष्ट्रीय गौकुल मिशन” संगठित तथा वैज्ञानिक ढंग से स्वदेशी नस्लों के संरक्षण एवं संवर्धन उदेश्य से देश मे पहली बार शुरू की गयी है। योजना के अंतर्गत अब तक 35 प्रस्तावों को 582.09 करोड़ की राशि के साथ स्वीकरत किया जा चुका है।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जी ने जानकारी दी की राष्ट्रीय गौकुल मिशन के अंतर्गत 14 गौकुल ग्राम स्थापित करने कि स्वीकृति राज्यों को दी गई है, {महाराष्ट्र में 3, पंजाब में 2, छत्तीसगढ़ में 2, आंध्र प्रदेश में 1, 1(गोशाला) गुजरात में, 2 (1 विश्वविद्यालय के साथ ) उत्तर प्रदेश में, 2 मध्य प्रदेश में, मिथुन्स के लिए नागालैंड में 1)} की स्थापना के लिए स्कीम के तहत निधियां अनुमोदित कर दी गई हैं और पहली किस्त जारी कर दी गई है। उन्होंने बताया की मिथुन और याक सहित स्वदेशी गोजातीय पशुओं की नस्लों के 35 बुल मदर फार्मों के सुदृढ़ीकरण के लिए निधियां अनुमोदित कर दी गई हैं और पहली किस्त भी जारी कर दी गई है।
श्री ने आगे जानकारी दी कि 1,50,000 स्वदेशी पशुओं के लिए फील्ड परफोर्मेंस रिकार्डिंग प्रोग्राम (एफपीआरपी) की स्थापना के लिए निधियां अनुमोदित कर दी गई हैं और पहली किस्त जारी कर दी गई है। उन्होंने बताया की प्रजनन ट्रैक्ट में चुनिंदा प्रजनन के लिए और गैर वर्णित पशु को उन्नत बनाने के लिए प्राकृतिक सेवाओं हेतु राज्यों द्वारा स्वदेशी नस्लों के 3629 सांड लाए गए है ।उन्होंने कहा की जनन द्रव्य उत्पादन के लिए जनन द्रव्य केंद्रों पर स्वदेशी नस्ल के 65 सांड लाए गए तथा मध्य प्रदेश, केरल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और गुजरात द्वारा स्वदेशी नस्लों के लिए प्राकृतिक सेवा हेतु सांड उत्पादन कार्यक्रम की शुरूआत की गई है।
श्री सिंह ने आगे बताया की अधिकतर देशो मे राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय ब्रीडिंग सेंटर होते है। स्वदेशी नस्लों के संरक्षण के लिए ” नेशनल कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर” एक समग्र और वैज्ञानिक तरीके से विकास और स्वदेशी नस्लों के संरक्षण और संवर्धन करने के उद्देश्य से देश मे पहली बार दो नेशनल कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर स्थापित किए जा रहे हैं। एक दक्षिण मे आंध्रा प्रदेश मे तथा एक उत्तर मे मध्य प्रदेश मे। इसके तहत 39 गोजातीय नस्लों, और 13 भैंसों की नस्लों को संरक्षित एवं आनुवंशिक उन्नयन और उनकी उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से न्यूक्लियस हर्ड की स्थापना की जा रही है।