भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (बीबीआईएल) के साथ साझेदारी में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा विकसित कोवैक्सीनके तीसरे चरण के परिणामों ने कोविड-19 को रोकने में 81 प्रतिशतकी अंतरिम टीका प्रभावकारिता दिखाई है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) व भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (बीबीआईएल) द्वारा नवंबर 2020 के मध्य में संयुक्त रूप से शुरू किए गए तीसरे चरण का परीक्षण 21 स्थानों पर कुल 25,800 व्यक्तियों में किया गया था । ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) द्वारा अनुमोदित प्रोटोकॉल के अनुसार विश्लेषण से इस टीके की 81 प्रतिशतकी अंतरिम प्रभावकारिता अन्य वैश्विक अग्रणी टीकों के बराबर है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ बलराम भार्गव ने कहा कि “8 महीने से भी कम समय में पूरी तरह से स्वदेशी कोविड-19 वैक्सीन की शुरू से अंत तक की यात्रा विषमताओं से लड़ने तथा वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समुदाय में बड़ा नज़र आने में आत्मनिर्भर भारत की अपार ताकत को प्रदर्शित करती है। यह वैश्विक वैक्सीन महाशक्ति के रूप में भारत के उद्भव का प्रमाण भी है।”
कोवैक्सीनपहली कोविड-19 वैक्सीन है जिसे पूरी तरह से भारत में विकसित किया गया है। मार्च 2020 में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर)- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) में सार्स सीओवी-2 वायरस को अलग करने में सफलता के बाद भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने वायरस आइसोलेट को प्रभावी वैक्सीन में बदलने के लिए बीबीएल के साथ सार्वजनिक-निजी साझेदारी में प्रवेश किया। आईसीएमआर-एनआईवी ने कृत्रिम परिवेशीय प्रयोगों और इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी अध्ययनों के माध्यम से भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (बीबीआईएल) द्वारा विकसित वैक्सीन की विशेषता बताई।
छोटे जानवरों और हम्सटर में पूर्व नैदानिक अध्ययनों ने सुरक्षा और इम्यूनोजेनिसिटी के मामले में आशाजनक परिणाम दिखाए। लघुपुच्छ वानरों यानी रीसस मकाक में किए गए आगे के अध्ययनों ने कोवैक्सीनकी उल्लेखनीय सुरक्षा और सुरक्षात्मक प्रभावकारिता की स्थापना भी की। कुल 755 प्रतिभागियों में किए गए चरण 1 और चरण 2 के नैदानिक परीक्षणों ने कैंडिडेट वैक्सीन के उच्च सुरक्षा प्रोफ़ाइल का प्रदर्शन किया, जिसमें 56 और 104 दिन में क्रमशः 98.3 प्रतिशतऔर 81.1 प्रतिशतकी सेरोकंवर्सेशन दरें हासिल हुईं।
कोवैक्सीन कोविश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) प्री-क्वालिफाइड वेरोसेल प्लेटफॉर्म पर विकसित किया गया है जो विश्व स्तर पर सुरक्षा के ठीक प्रकार से स्थापित ट्रैक रिकॉर्ड के साथ पहचाना जाता है। सार्स-सीओवी-2 के यूके वैरिएंट स्ट्रेन को बेअसर करने की कोवैक्सीनकी क्षमता भी हाल ही में स्थापित हो गई है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महामारी एवं संचारी रोग प्रमुख तथा राष्ट्रीय एड्स अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. समीरन पांडा ने कहा, “कोवैक्सीनका विकास एवं वितरण यह सुनिश्चित करता है कि निरंतर परिवर्तित होती महामारी की स्थिति में भारत के शस्त्रागार में एक शक्तिशाली हथियार है एवं यह कोविड-19 के विरुद्ध युद्ध में मदद करने में दूर तक जाएगा। समय की मांग यह सुनिश्चित करना है कि भारत में लोगों को वैक्सीन मिलती रहे और वायरस ट्रांसमिशन की चेन को तोड़ा जाना जारी रहे।”
शुरू से अब तक कोवैक्सीनकी यात्रा: भारत की अपनी वैक्सीन
- 11 मार्च, 2020: जब कोविड-19 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा महामारी घोषित किया गया था तो भारत अपने नागरिकों के साथ-साथ विश्व समुदाय को इस खतरनाक बीमारी से बचाने के लिए सुरक्षित और प्रभावी टीके विकसित करने की वैश्विक दौड़ में शामिल हुआ ।
- मार्च 13, 2020: आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (आईसीएमआर-एनआईवी) ने सार्स-सीओवी-2 वायरस को सफलतापूर्वक आइसोलेट किया। भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का 5वां देश बना।
- अप्रैल 2020: आईसीएमआर ने सार्स-सीओवी-2 के लिए एक प्रभावी वैक्सीन कैंडिडेट विकसित करने के लिए भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (बीबीआईएल) के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी में प्रवेश किया।
- मई 2020: भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर)- एनआईवी ने वायरस स्ट्रेन को भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (बीबीआईएल) में स्थानांतरित किया और कृत्रिम परिवेशीय प्रयोगों और इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी अध्ययनों के माध्यम से बीबीएल द्वारा विकसित वैक्सीन की विशेषता बतलाई।
- जून-अगस्त 2020: छोटे जानवरों (चूहों और खरगोशों) और हम्सटर में प्रयोग ने कोवैक्सीनकी आशाजनक सुरक्षा और इम्यूनोजेनिसिटी की स्थापना की। यह डेटा सेल प्रेस के सुप्रतिष्ठित प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। (शोध पत्रों से लिंक: लिंक 1, लिंक 2)
- जुलाई-अगस्त 2020: लघु पुच्छ वानरों (रीसस मकाक) में किए गए अध्ययनों ने कोवैक्सीनकी सुरक्षा और सुरक्षात्मक प्रभावकारिता को स्थापित किया। परिणामों ने संक्रमित अंगों से वायरस को साफ करने के साथ-साथ बी और टी सेल प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाने में वैक्सीन कैंडिडेट की उल्लेखनीय क्षमता को स्थापित किया। रिसर्च पेपर से लिंक: लिंक 3।
- जुलाई-अक्टूबर 2020: 755 प्रतिभागियों में किए गए चरण 1 और चरण 2 के नैदानिक परीक्षणों ने कैंडिडेट वैक्सीन के उच्च सुरक्षा प्रोफ़ाइल के साथ-साथ 56 और 104 दिन में क्रमशः 98.3 प्रतिशतऔर 81.1 प्रतिशतकी सेरोकंवर्सेशन दरें प्रदर्शित की। परिणाम लैंसेट जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। रिसर्च पेपर से लिंक: लिंक 4, लिंक 5
- नवंबर 2020: भारत में तीसरे चरण के लिए 25,800 से अधिक प्रतिभागियों के साथ कोविड-19 के लिए अब तक का सबसे बड़ा नैदानिक परीक्षण शुरू किया गया ।
- 3 जनवरी, 2021: ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने कोवैक्सीनके लिए आपातकालीन स्थितियों में प्रतिबंधित उपयोग के लिए अनुमोदन प्रदान किया।
- 16 जनवरी, 2021: भारत ने स्वास्थ्यकर्मियों तथा कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में अगुआ रहने वाले कर्मियों को चरणबद्ध तरीक़े से कोविड-19 वैक्सीन देने की प्रक्रिया की शुरुआत की।
- जनवरी 27, 2021: कोवैक्सीनकी सार्स-सीओवी-2 के ब्रिटेन वाले स्ट्रेन को ख़त्म करने की क्षमता स्थापित हुई, यह जर्नल ऑफ ट्रेवल मेडिसिन में प्रकाशित हुआ। रिसर्च पेपर से लिंक: लिंक 6
- 3 मार्च 2021: कोवैक्सीनके चरण 3 प्रभावकारिता परीक्षणों के अंतरिम परिणाम ने सार्स-सीओवी-2 वायरस के खिलाफ 81 प्रतिशतप्रभावकारिता दिखाई। परीक्षण किए गए प्रतिभागियों के फॉलो-अप परीक्षण अभी भी चल रहे हैं।
आईसीएमआर के बारे में: भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), नई दिल्ली, जैव चिकित्सा अनुसंधान के निर्माण, समन्वय और संवर्धन के लिए भारत में शीर्ष निकाय है, यह दुनिया के सबसे पुराने चिकित्सा अनुसंधान निकायों में से एक है। आईसीएमआर की अनुसंधान प्राथमिकताएं राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के साथ संरेखित होती हैं। ये प्रयास रोग के कुल प्रकोप को कम करने और हमारी जनसंख्या के स्वास्थ्य एवं बेहतरी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किए जाते हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद इंट्राम्यूरल के साथ-साथ एक्सट्राम्यूरल रिसर्च के जरिए देश में जैव चिकित्सा अनुसंधान को बढ़ावा देती है। विस्तार से जानने के लिए https://www.icmr.gov.in/ पर जाएं।
संपर्क
डॉ निवेदिता गुप्ता
वैज्ञानिक एफ, महामारी विज्ञान और संचारी रोग प्रभाग, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर)
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डॉ लोकेश शर्मा
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