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आरटीआई कार्यकर्ताओं की देश में हुई 58 हत्याओं में से 9 के साथ यूपी दूसरे स्थान पर, 12 के साथ महाराष्ट्र अव्वल

उत्तर प्रदेश

लखनऊ: भारत में आरटीआई यानि सूचना का अधिकार कानून साल 2005 में लागू किया गया था. केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के प्रत्येक लोक प्राधिकारी के कार्यकरण में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व संवर्धन के उद्देश्य से लाये गए इस कानून के तहत नागरिकों के सूचना के अधिकार की व्यवहारिक शासन पद्धति स्थापित करने के लिए हर सरकारी, अर्द्ध-सरकारी कार्यालयों में जन सूचना अधिकारी और अपीलीय अधिकारी नियुक्त करने के साथ-साथ सूचना आयोगों की स्थापना की गयी।

आरटीआई के इन ग्यारह सालों में देश के महज 0.3 % नागरिकों ने ही सूचना के अधिकार का प्रयोग किया  पर इतने में ही यहां भी बाहुबलवाद व गुंडाराज की आमद हो गयी और आरटीआई आवेदन करने वाले को प्रताड़ित किये जाने की घटनाओं में वृद्धि होने लगी और कई आरटीआई आवेदनकर्ताओं को अपनी जान से भी हाथ भी धोना पड़ा. ग्यारह वर्षों में आरटीआई कानून से भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए लेकिन इसका सबसे भयावह और दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष आरटीआई कार्यकर्ताओं पर जघन्य हमले और हत्याएं है. इसकी ताजा कड़ी मुंबई के भूपेन्द्र वीरा हैं जिनकी हत्या से दुखी और उद्देलित आरटीआई कार्यकर्ताओं ने आज राजधानी लखनऊ के हजरतगंज  जीपीओ के निकट स्थित महात्मा गांधी पार्क में येश्वर्याज सेवा संस्थान (AOP) की सचिव और आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी शर्मा के नेतृत्व में इकठ्ठा होकर मृत आरटीआई कार्यकर्त्ता की आत्मा की शांति के लिए 2 घंटे की श्रद्धांजली सभा का आयोजन किया और श्रद्धांजली सभा के बाद देश के राष्ट्रपति,प्रधान मंत्री और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन भेजकर देश में आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के लिए प्रभावी तंत्र विकसित करने की मांग उठाई।

श्रद्धांजली सभा के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए उर्वशी ने कहा “वैसे तो लोकतंत्र जनता के लिए, जनता के द्वारा और जनता का शासन है और एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में गोपनीय जैसा कुछ भी नहीं होना चाहिए पर दुर्भाग्यपूर्ण है कि सूचना चाहने वाले दिलेर नागरिकों का सम्मान किये जाने के स्थान पर उनकी प्रताड़नाओं और हत्याओं का सिलसिला बढ़ता जा रहा है. ऐसा लगता है कि इन प्रताड़नाओं और हत्याओं से लोग सूचना मांगने से डरने लगे हैं क्योंकि राज्यसभा में दी गई एक सूचना के अनुसार 2014-15 में आरटीआई आवेदकों की संख्या घटकर 7,55,247 हो गई जो उसके पिछले साल 8,34,183 थी जिससे स्पष्ट है कि आरटीआई आवेदकों की संख्या घटती जा रही है. आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या यह पुष्ट कर रही है कि भारतीय शासन पद्धति के प्रत्येक स्तर पर भ्रष्ट  तत्त्वों की पैठ इतनी गहरी हो चुकी है कि वे एक इशारे सेकिसी का भी मुंह बंद करा सकते हैं या किसी को हमेशा के लिए ख़ामोश कर सकते हैं।”

उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में बात करते हुए उर्वशी ने बताया कि आरटीआई लागू होने के इन ग्यारह वर्षों में देश भर में 58 से अधिक  आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है जिनमें से 9 मामले यूपी के हैं. आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याओं के मामले में देश में यूपी का स्थान महाराष्ट्र के बाद दुसरे नंबर पर आता है जहाँ अब तक 12 आरटीआई कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं.इस मामले में गुजरात भी 9 हत्याओं के साथ यूपी के साथ दूसरे स्थान पर है. उर्वशी ने बताया कि आरटीआई का प्रयोग करने के कारण अब तक यूपी के हापुड़ जिले के मंगत त्यागी,मेरठ जिले के संजय त्यागी,फर्रुखाबाद के आनंद प्रकाश राजपूत,मेरठ के टिन्कू,बहराइच के विजय प्रताप और गुरु प्रसाद,श्रावस्ती के जाकिर सिद्दीकी,कानपुर के अवध नरेश सिंह और मुरादाबाद के पुष्पेन्द्र की हत्या हो चुकी है।

कार्यक्रम में सूचना का अधिकार बचाओ अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष तनवीर अहमद सिद्दीकी, एस.आर.पी.डी. मेमोरियल समाज सेवा संस्थान के सचिव राम स्वरुप यादव,सूचना का अधिकार कार्यकर्ता वेलफेयर एसोसिएशन के हरपाल सिंह के साथ साथ आरटीआई कार्यकर्ता संजय आजाद,जय विजय,हुसैन अहमद और हेमन्त आहूजा ने शिरकत की।

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