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मुख्यमंत्री ने नेशनल डिजास्टर मेनेजमेंट ओथाॅरिटी के सदस्य ले.ज.(से.नि.) एनसी मारवाह ने भेंट की।

उत्तराखंड
देहरादून: मंगलवार को बीजापुर हाउस में मुख्यमंत्री हरीश रावत से नेशनल डिजास्टर मेनेजमेंट ओथाॅरिटी के सदस्य ले.ज.(से.नि.) एनसी मारवाह ने भेंट की। मुख्यमंत्री ने लगभग 350 संवेदनशील गांवों के अविलम्ब पुनर्वास, पहाड़ों में जलस्त्रोतों के पुनर्जीवन व नदियों में लगातार इकट्ठा होते जा रहे मलबे के निस्तारण की आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए जनसहभागिता आवश्यक है। इसके लिए स्थानीय लोगों विशेषरूप से महिलाओं को प्रशिक्षित कर उनकी क्षमता विकास को प्राथमिकता देनी होगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भूस्खलन जोन के उपचार में जोशीमठ-बदरीनाथ मार्ग पर विशेष ध्यान देना होगा। उत्तराखण्ड भूकम्प की दृष्टि से भी अति संवेदनशील क्षेत्र में आता है। इसलिए राज्य सरकार हर प्राथमिक व जूनियर हाई स्कूल को प्री-फैब स्ट्रक्चर में लाने की कार्ययोजना तैयार कर रही है। इसके साथ ही प्रत्येक गांव में कम से कम एक सामुदायिक भवन ऐसा जरूर हो जो कि पूर्णतया भूकम्परोधी हो। उत्तराखण्ड में एनसीसी, एनएसएस, स्काउट, युवक मंगल दल, महिला मंगल दलों को भी आपदा प्रबंधन से जोड़ा जा रहा है।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने बताया कि प्रदेश में लगभग 350 गांवों को चिन्हित किया गया है जो कि आपदा की दृष्टि से अति संवदेनशील हैं। इनका सुरक्षित स्थानों पर पुनर्वास बहुत जरूरी है। परंतु राज्य सरकार के लिए सीमित संसाधनों से इसे कर पाना कठिन है। मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले कुछ समय से उत्तराखण्ड में नदियों की प्रकृति में बदलाव आ रहा है। लगातार मलबा जमा होते रहने से नदियों का तल उथला होता जा रहा है। नदियांे की दिशा बदलने से निकटवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है। इससे जहां जानमाल का नुकसान होता है वहीं नदियों के किनारे के वनों को भी नुकसान होता है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि जिस प्रकार की स्थिति बिहार में कोसी नदी में बाढ़ से हर साल उत्पन्न होती है, वैसी ही स्थिति अब उत्तराखण्ड में भी होने लगी है। इस समस्या का एकमात्र हल यही है कि नदियों के तल से मलबा निस्तारण की उपयुक्त व्यवस्था हो। इसके लिए तमाम तरह की स्वीकृतियों की आवश्यकता होती है। इसमें केंद्र सरकार मदद कर सकती है। उत्तराखण्ड ऐसा राज्य है जो कि हर साल लगभग आधा प्रतिशत भूमि जलकटाव के कारण खो रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में खेती को प्रोत्साहित करना भी जरूरी है। खेतों में जुताई से बारिश का पानी जमीन के अंदर जाएगा जिससे एक ओर जहां प्राकृतिक जलस्त्रोत संरक्षित होंगे वहीं मैदानी क्षेत्रों में नदियों के बाढ़ का खतरा कम होगा।
एनडीएमए के सदस्य ले.ज.(से.नि.) एनसी मारवाह ने कहा कि देश में आपदा प्रबंधन की तैयारियों को लेकर उत्तराखण्ड को श्रेष्ठ उदाहरण के तौर पर लिया जाता है। यहां आपदा प्रबंधन के लिए जिस प्रकार की पहल की गई है, वह दूसरे राज्यों के लिए भी अनुकरणीय है। श्री मारवाह ने कहा कि उत्तराखण्ड में एसडीआरएफ का गठन कर उसका कुशलतापूर्वक उपयोग किया गया है। वर्ष 2013 की दैवीय आपदा के बाद चारधाम यात्रा को सीमित समय में पुनः न केवल प्रारम्भ किया गया है बल्कि इसका कुशलतापूर्वक प्रबंधन भी किया गया है। श्री मारवाह ने राज्य में संचालित आपातकालीन परिचालन केंद्रों की भी प्रशंसा करते हुए राज्य सरकार को एनडीएमए के पूरे सहयोग के प्रति आशान्वित किया। आपदा की दृष्टि से उत्तराखण्ड की संवेदनशीलता को देखते हुए राज्य को सिविल हेलीकाप्टर उपलब्ध करवाने के मामले को गम्भीरता से लिया जाएगा।

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