लखनऊ: अधिक दूध उत्पादन हेतु दुधारू पशुओं की उचित देखभाल बेहद जरूरी है। पशुपालकों को चाहिए कि गर्मियों में दुधारू पशुओं को 40-50 लीटर पानी अवश्य पिलायें। प्रति लीटर दुग्ध उत्पाद पर 3 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। क्योंकि दूध में 85 प्रतिशत पानी होता है।
बछड़ों को एक माह बाद हरा चारा, कुट्टी का आहार दें। संकर गाय से प्रति वर्ष एक बच्चा एवं हर माह 3000 लीटर दूध उत्पादन का लक्ष्य बनाएं। बच्चा देने के 60 से 90 दिन बाद पशु का कृत्रिम वीर्यदान कराये मादा पशुओं को गर्मी में लाने के लिए प्रजना, जनोवा या फीटसूल टेबलेट खिलायें। दुधारू गाय को हरा चारा एवं सूखे चारा की सन्तुलित मात्रा दें। पशुओं को केवल हरा चारा देने से पेट में गैस/अफास/दस्त की शिकायत होती है। सातवें महीने से धीरे-धीरे दूध निकालना बंद करें। आठवें महीने से गाय को 1 से 5 किग्रा0 अतिरिक्त पशु आहार दें, जिससे गर्भस्थ (शिशु) बच्चे को पर्याप्त पोषण मिल सके। नवे महीने में 2 किग्रा0 पशुआहार और साथ में 50 ग्राम मिनरल मिक्सचर तथा 50 ग्राम गुड़ दें। प्रसूति से पूर्व गाय को हरा चारा तथा पानी दें, जिससे गोवर पतला होकर आसान प्रसव हो सके। गर्मी में दोनों समय पशुओं को नहलायें, कीड़े किलनी से बचायें। पशुशाला को साफ रखें, दीवारों में परजीवी किलनी आदि रहते हैं कीटनाशक का छिड़काव करें। पेट के कीड़े एवं किलनी से बचा कर आधा लीटर दूध उत्पादन प्रतिदिन बढ़ाया जा सकता है। पेटे में छिपे कीड़े चैथाई पोषक तत्व हजम कर जाते हैं। इसलिये हर तीसरे माह पेट के कीड़े की दवा आइवर मेक्टिन, अललोमार या वर्मीसूल अवश्य दें। कीड़े की दवा से कीड़े मारने के बाद माह में 10 दिन (कैल्सियम 1 लीटर $ वाइमसेल 60 मिली0) मिक्चर 100$100 मिली0 दें या ए0बी0सी0 अल्फा बायो कैल्सियम 1,2 को 20-20 मिली0 सुबह शाम दूध निकालने के बाद दें।
पशुपालक /किसान भाई छोटी सींग और ज्यादा दूध देने वाली भैंस का पालन करें। भैसों को गर्मी से बचायें, छाया हेतु पशुशाला के आस-पास छोटे पेड़ लगायें। दूध दुहते समय 7-8 मिनट के अन्दर पूरा दूध निकाल लें। दूध निकालने के लिए आक्सीटोसतीन इन्जेक्शन का प्रयोग कभी न करें। इससे दूध की गुणवत्ता खराब होती है तथा पशु भी बाँझपन का शिकार हो जाता है। पशुओं को जानलेवा संक्रामक बीमारियों, गलाघोंटू एच0एस0 लगड़ी बी0क्यू0, खुरपका, मुंहपका एफएमडी से बचाव हेतु बरसात से पूर्व टीके अवश्य लगवा लें। पशुशाला के आस-पास गंदापानी या गंदगी न इकट्ठा होने दें। पशुशाला की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दें। बरसात में ब्याने वाले पशुओं में थनैला रोग की संभावना बढ़ जाती है। दूध निकालने के 15-20 मिनट बाद तक टीट (थन) का मुंह खुला रहता है। जानवर के गंदगी में बैठते ही बीमारी के कीटाणु थन में पहुंच कर थनैला रोग पैदा करते हैं। दूध निकालने के बाद ही पशु को चारा-दाना दें। इसी बहाने पशु आधे घंटे तक खड़ा रहेगा और पालतू दुधारू पशु थनैला रोग का शिकार होने से बच जायेंगे।