नई दिल्ली। बिहार के सियासी घमासान में अदालती ट्विस्ट आ गया है। पटना हाईकोर्ट ने नीतीश कुमार के जेडीयू विधानमंडल दल का नेता होने पर रोक लगा दी है। गौरतलब है कि जेडीयू विधायक दल ने नीतीश को अपना नेता चुना था, और स्पीकर ने उन्हें मान्यता भी दे दी थी।
इस बीच नीतीश अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली मे जमें हुए हैं। शाम सात बजे वो सदन में जल्द से जल्द शक्ति परीक्षण की मांग को लेकर राष्ट्रपति से मुलाकात करने वाले हैं। एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने के लिए बेताब नीतीश कुमार को पटना हाईकोर्ट से करारा झटका लगा है।
हाईकोर्ट ने जीतन राम मांझी के मुख्यमंत्री रहते नीतीश के विधायक दल का नेता बनने पर रोक लगा दी है। जेडीयू विधायक दल ने रविवार को मांझी को दरकिनार कर नीतीश को अपना नेता चुन लिया था। नीतीश के इस चुनाव पर विधानसभा अध्यक्ष ने भी मुहर लगा दी थी।
लेकिन एक जनहित याचिका पर फैसला देते हुए अदालत ने स्पीकर के इस कदम पर रोक लगा दी है। ये याचिका जीतन राम मांझी के समर्थक राजेश्वर राय ने डाली थी। मामले की अगली सुनवाई 18 फरवरी को होगी। लेकिन ये कानूनी पेंच सदन में जल्द से जल्द शक्ति परीक्षण की मांग कर रहे नीतीश कुमार की मुश्किल बढ़ा सकता है।
नीतीश और उनके समर्थकों का आरोप है कि जैसे-जैसे देर हो रही है विधायकों के खरीद-फरोख्त की आशंका बढ़ रही है। इसी सिलसिले में नीतीश खेमा अपने 130 विधायकों के साथ दिल्ली में आकर जमा है। नीतीश लगातार आरोप लगा रहे हैं कि बिहार का सियासी संकट बीजेपी की साजिश है।
जेडीयू नेता नीतीश कुमार के मुताबिक बिहार में संविधान का खुला मजाक उड़ाया जा रहा है, माहौल खराब कर रहे हैं, बहुमत का प्रदर्शन पटना में हो चुका और आज हम सब दिल्ली में मौजूद हैं। दलबदल का खुला खेल चल रहा है। एक-एक आदमी से बात करने की कोशिश की जा रही है।
बिहार के इस सियासी संकट के दौरान दिल्ली चुनाव में मुंह की खाने के बाद बीजेपी भी बैकफुट पर है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी नहीं चाहती कि वो बिहार में सरकार को अस्थिर करती दिखे और नीतीश कुमार खुद को पीड़ित की तरह पेश करें।
इसकी वजह महादलित जीतन राम मांझी नीतीश के हाथों प्रताड़ित दिखें और बीजेपी को ये बताने का मौका मिले की नीतीश का दलित-महादलित प्रेम दिखावा है। फिलहाल इस मामले से बीजेपी खुद को अब दूर ही रखना चाहती है।
बिहार में फिलहाल सारा गैरबीजेपी विपक्ष नीतीश के पीछे एकजुट हो गया है। इसमें आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई और कुछ निर्दलीय भी शामिल हैं। ऐसे में अगर बीजेपी मांझी की कुर्सी अपने विधायकों की मदद से बचाने की कोशिश करे तो ये उसके लिए आसान नहीं होगा। इसके लिए नीतीश गुट में बड़ी सेंध लगाना जरूरी है।
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