“राष्ट्र को योग दिवस पर समर्पित’
अपने गौरव की गाथा को
अब फिर से हमको गाना होगा।
देव भूमि इस भारत को
अब फिर से स्वर्ग बनाना होगा।
कितने पावन जन्मे थे हम
दिव्य गुणों से सजे हुए।
ऋषि- मुनियो के योग यज्ञ
से अलौकित थे जन जीवन।
वीरो के बलिदान की खुशबू
से महका रहा था हर उपवन।
प्रेम ज्ञान की गंगा से
हर उर में मधुरस भरता था।
धीरे- धीरे देव्ष स्वार्थ की
जंजीरो में हम जकड गए।
काम क्रोध मद लोभ मोह
में कैसे जीवन लिप्त हुए।
पतित हुए भष्ट हुए
स्वरुप हमारे विक्रत हुए।
अपने इस विस्मृति स्वरुप की
पूर्व स्मृति में लाना होगा।
प्रेम शांति के ज्ञान दिप को
योग अग्नि से जलाना होगा।
पुरे विश्व में भारत का
गौरव मान बढ़ाना होगा।
अपने गौरव की गाथा को
अब फिर से हमको गाना होगा।
देव भूमि इस ‘भारत’ को
अब फिर स्वर्ग बनाना होगा।
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लेखिका- कल्पना तिवारी, पीलीभीत