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PM’s address at Maghar, Uttar Pradesh on the occasion of the 500th death anniversary of the great saint and poet, Kabir

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New Delhi: The Prime Minister, Shri Narendra Modi, visited Maghar in Sant Kabir Nagar district of Uttar Pradesh. He offered floral tributes at Sant Kabir Samadhi, on the occasion of the 500th death anniversary of the great saint and poet, Kabir. He also offered Chadar at Sant Kabir Mazaar. He visited the Sant Kabir Cave, and unveiled a plaque to mark the laying of Foundation Stone of Sant Kabir Academy, which will highlight the great saint’s teachings and thought.

At a public meeting, the Prime Minister said that a wish which he had for years, had been fulfilled, by paying homage to the great saint Kabir, at the hallowed land of Maghar, where legend says that Sant Kabir, Guru Nanak and Baba Gorakhnath, had engaged in spiritual discussion.

The Prime Minister said that Sant Kabir Academy, to be built at a cost of about Rs. 24 crore, would create an institution to preserve the legacy of Sant Kabir, as well as regional dialects and folk arts of Uttar Pradesh.

The Prime Minister said that Sant Kabir represents the essence of India’s soul. He broke the barriers of caste, and spoke the language of the ordinary, rural Indian, Shri Narendra Modi added.

The Prime Minister said that saints have risen from time to time, in various parts of India, who have guided society to rid itself of social evils. Naming many such saints from various parts of India, across different eras, the Prime Minister mentioned Babasaheb Ambedkar who ensured for every citizen of India, equality, through the Constitution.

Making a strong statement against political opportunism, the Prime Minister recalled Sant Kabir’s teaching that the ideal ruler is one who understands the feelings and suffering of the people. He said Sant Kabir had criticized all social structures which discriminated among people. In this context, the Prime Minister mentioned the various schemes of the Union Government which seek to empower the poor and under privileged sections of society, such as Jan Dhan Yojana, Ujjwala Yojana, insurance schemes, toilet construction, and direct benefits transfer. He also mentioned the increase in pace in various infrastructure sectors such as roads, railways, optical fibre network etc. He said the Union Government is working to ensure that all parts of India receive the fruits of development.

हम अपने के बड़ा सौभाग्‍यशालीमानत हाणि कि महान सूफी संत कबीरदास जी के स्‍मृति में हो रहे ई आयोजन में ये पावन धरती पर पाय लागी। आज हमके यहां आके बहुत नीक लगता। हम ये पावन धरती के प्रणाम करत बाड़ी और आप सब लोगन के पाय लागी।

राज्‍य के लोकप्रिय एवं यशस्‍वी मुख्‍यमंत्री श्रीमान योगी आदित्‍यनाथ जी, केंद्र में मंत्रिपरिषद के मेरे साथी श्रीमान महेश शर्मा जी, केंद्र में मंत्रिपीरिषद के मेरे साथी श्रीमान शिवप्रताप शुक्‍ला जी, राज्‍य सरकार में मंत्री डॉक्‍टर रीटा बहुगुणा जी, राज्‍य सरकार में मंत्री श्रीमान लक्ष्‍मी नारायण चौधरी जी, संसद में मेरे साथी और उत्‍तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्‍यक्ष मेरे मित्र डॉक्‍टर महेन्‍द्र नाथ पांडे जी। हमारी संसद में एक युवा, जुझारू, सक्रिय और नम्रता और विवेक से भरे हुए, इसी धरती की संतान, हमारे सांसद श्रीमान शरत त्रिपाठी जी, उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍य सचिव श्रीमान राजीव कुमार, यहां उपस्थित सभी अन्‍य महानुभाव और देश के कोने-कोने से आए मेरे प्‍यारे भाइयो और बहनों। आज मुझे मगहर की इस पावन धरती पर आने का सौभाग्‍य मिला, मन को एक विशेष संतोष की अनुभूति हुई।

भाइयो-बहनों, हर किसी के मन में ये कामना रहती कि ऐसे तीर्थ स्‍थलों में जाएं, आज मेरी भी वो कामना पूरी हुई है। थोड़ी देर पहले मुझे संत कबीरदास जी की समाधि पर फूल चढ़ाने का, उनकी मजार पर चादर चढ़ाने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ। मैं उस गुफा को भी देख पाया जहां कबीरदास जी साधना किया करते थे। समाज को सदियों से दिशा दे रहे, मार्गदर्शक, समधा और समता के प्रतिबिम्‍ब, महात्‍मा कबीर को उनकी ही निर्वाण भूमि से मैं एक बार फिर कोटि-कोटि  नमन करता हूं।

ऐसा कहते हैं कि यहीं पर संत कबीर, गुरू नानक देव और बाबा गौरखनाथ जी ने एक साथ बैठ करके आध्‍यात्मिक चर्चा की थी। मगहर आ करके मैं एक धन्‍यता अनुभव करता हूं। आज ज्‍येष्‍ठ शुक्‍ल पूर्णिमा है। आज ही से भगवान भोलेनाथ की यात्रा भी शुरू हो रही है। मैं तीर्थ यात्रियों को सुखद यात्रा के लिए हृदयपूर्वक शुभकामनाएं देता हूं।

कबीरदास जी की पंचशति पुण्‍य तिथि के अवसर पर सालभर यहां कबीर महोत्‍सव की शुरूआत हुई है। सम्‍पूर्ण मानवता के लिए संत कबीरदास जी जो उम्‍दा संपत्ति छोड़ गए हैं, उसका लाभ अब हम सभी को मिलने वाला है। खुद कबीर जी ने भी कहा है-

तीर्थ गए तो एक फल, संत मिले फल चार। 

सदगुरू मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।। 

यानी तीर्थ जाने से एक पुण्‍य मिलता है तो संत की संगत से चार पुण्‍य प्राप्‍तहो सकते हैं। 

मगहर की इस धरती पर कबीर महोत्‍सव में, ये कबीर महोत्‍सव ऐसा ही पुण्‍य देने वाला है।

भाइयो और बहनों, थोड़ी देर पहले ही यहां संत कबीर अकादमी का शिलान्‍यास किया गया है। करीब 24 करोड़ रुपये खर्च करके यहां महात्‍मा कबीर से जुड़ी स्‍मृतियों को संजोने वाली संस्‍थाओं का निर्माण किया जाएगा। कबीर ने जो सामाजिक चेतना जगाने के लिए अपने जीवन पर्यन्‍त काम किया, कबीर के गायन, प्रशिक्षण भवन, कबीर नृत्‍य प्रशिक्षण भवन, रिसर्च सेंटर, लायब्रेरी, ऑडिटोरियम, होस्‍टल, आर्ट गैलरी; इन सबको विकसित करने की इसमें योजना है।

संत कबीर अकादमी उत्‍तर प्रदेश की आंचलिक भाषाओं और लो‍क विधाओं के विकास और संरक्षण के लिए भी काम करेगी। भाइयो और बहनों, कबीर का सारा जीवन सत्‍य की खोज तथा असत्‍य के खंडन में व्‍यतीत हुआ। कबीर की साधना मानने से नहीं, जानने से आरंभ होती है। वो सिर से पैर तक मस्‍तमौला स्‍वभाव के फक्‍कड़, आदत में अक्‍खड़, भगत के सामने सेवक, बादशाहत के सामने प्रत्‍यंत दिलेर, दिल के साफ, दिमाग के दुरुस्‍त, भीतर से कोमल, बाहर से कठोर थे। वो जन्‍म के धधें से ही नहीं, अपने कर्म से वंदनीय हो गए।

महात्‍मा कबीरदास, वो धूल से उठे थे लेकिन माथे का चंदन बन गए। महात्‍मा कबीरदास व्‍यक्ति से अभिव्‍यक्ति हो गए और इससे भी आगे वो शब्‍द से शब्‍दब्रह्म हो गए। वो विचार बन करके आए और व्यवहार  बन करके अमर हो गए। संत कबीरदास जी ने समाज को सिर्फ दृष्टि देने का ही काम नहीं किया बल्कि समाज की चेतना को जागृत करने का भी, और इसी समाज जागरण के लिए वे कांसी से मगहर आए। मगहर को उन्‍होंने प्रतीक स्‍वरूप चुना।

कबीर साहब ने कहा था कि यदि हृदय में राम बसते हैं तो मगहर भी सबसे पवित्र है। और उन्‍होंने कहा- 

क्‍या कासी क्‍या उसर मगहर, राम हृदय बसो मोरा 

वे किसी के शिष्‍य नहीं, रामानंद द्वारा चेताए हुए चेला थे। संत कबीरदास जी कहते थे’ 

हम कासी में प्रकट भए हैं, रामानंद चेताए। 

कासी ने कबीर को आध्‍यात्मिक चेतना और गुरू से मिलाया था। 

भाइयो और बहनों, कबीर भारत की आत्‍मा का गीत, रस और सार कहे जा सकते हैं। उन्‍होंने सामान्‍य ग्रामीण भारतीय के मन की बात को उसकी अपनी बोलचाल की भाषा में पिरोया था। गुरू रामानंद के शिष्‍य थे सो जाति कैसे मानते। उन्‍होंने जाति-पांति के भेद तोड़े-

सब मानस की एक जाति – ये घोषित किया और अपने भीतर के अहंकार को खत्‍म कर उसमें विराजे ईश्‍वर का दर्शन करने का कबीरदास जी ने रास्‍ता दिखाया। वे सबके थे इसलिए सब उनके हो गए। उन्‍होंने कहा था-

कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर। 

न काहु से दोस्‍ती, न काहु से बैर ।। 

उनके दोहों को समझने के लिए किसी शब्‍दकोश की जरूरत नहीं है। साधारण बोलचाल की हमारी-आपकी भाषा, हवा की सरलता और सहजता के साथ जीवन के गहन रहस्‍यों को उन्‍होंने जन-जन को समझा दिया। अपने भीतर बैठे राम को देखो, हरी तो मन में हैं, बाहर के आडम्‍बरों को क्‍यों समय व्‍यर्थ करते हो। अपने को सुधारो तो हरि मिल जाएंगे-

जब मैं था तब हरि नहीं, जब हरि है मैं नहीं। 

सब अंधियारा मिट गया दीपक देखा माही।। 

जब मैं अपने अहंकार में डूबा था तब प्रभु को न देख पाता था, लेकिन जब गुरू न ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अंधकार मिट गया।

साथियों, ये हमारे देश की महान धरती का तप है, उसकी पुण्‍यता है कि समय के साथ समाज में आने वाली आंतरिक बुराइयों को समाप्‍त करने के लिए समय-समय पर ऋषियों ने, मुनियों ने आचार्यों ने, भगवन्‍तों ने, संतों ने मार्गदर्शन किया है। सैकड़ों वर्षों की गुलामी के कालखंड में अगर देश की आत्‍मा बची रही, देश का समभाव, सद्भाव बचा रहा तो ऐसे महान तेजस्‍वी-तपस्‍वी संतों की वजह से ही हुआ।

समाज को रास्‍ता दिखाने के लिए भगवान बुद्ध पैदा हुए, महावीर आए, संत कबीर, संत सुदास, संत नानक जैसे अनेक संतों की श्रृंखला हमारे मार्ग दिखाती रही। उत्‍तर हो या दक्षिण, पूर्व हो या पश्चिम- कुरीतियों के खिलाफ देश के हर क्षेत्र में ऐसी पुण्‍यात्‍माओं ने जन्‍म लिया जिसने देश की चेतना को बचाने का, उसके संरक्षण का काम किया।

दक्षिण में माधवाचार्य, निम्‍बागाराचार्य, वल्‍लभाचार्य, संत बसवेश्‍वर, संत तिरूगल, तिरूवल्‍वर, रामानुजाचार्य; अगर हम पश्चिमी भारत की ओर देखें तो महर्षि दयानंद, मीराबाई, संत एकनाथ, संत तुकाराम, संत रामदास, संत ज्ञानेश्‍वर, नरसी मेहता; अगर उत्‍तर की तरफ नजर करें तो रामांनद, कबीरदास, गोस्‍वामी तुलसीदास, सूरदास, गुरू नानक देव, संत रैदास, अगर पूर्व की ओर देखें तो रामकृष्‍ण परमहंस, चैतन्‍य महाप्रभु और आचार्य शंकरेदव जैसे संतों के विचारों ने इस मार्ग को रोशनी दी।

इन्‍हीं संतों, इन्‍हीं महापुरुषों का प्रभाव था कि हिन्‍दुस्‍तान उस दौर में भी तमाम विपत्तियों को सहते हुए आगे बढ़ पाया और खुद को संकटों से बाहर निकाल पाया।

कर्म और चर्म के नाम पर भेद के बजाय ईश्‍वर भक्ति का जो रास्‍ता रामानुजाचार्य ने दिखाया, उसी रास्‍ते पर चलते हुए संत रामानंद ने सभी जातियों और सम्‍प्रदायों के लोगों को अपना शिष्‍य बनाकर जातिवाद पर कड़ा प्रहार किया है। संत रामानंद ने संत कबीर को राम नाम की राह दिखाई। इसी राम-नाम के सहारे कबीर आज तक पीढ़ियों को सचेत कर रहे हैं।

भाइयो और बहनों, समय के लम्‍बे कालखंड में संत कबीर के बाद रैदास आए। सैंकड़ों वर्षों के बाद महात्‍मा फूले आए, महात्‍मा गांधी आए, बाबा साहेब भीमराव अम्‍बेडकर आए। समाज में फैली असमानता को दूर करने के लिए सभी ने अपने-अपने तरीके से  समाज को रास्‍ता दिखाया।

बाबा साहेब ने हमें देश का संविधान दिया। एक नागरिक के तौर पर सभी को बराबरी का अधिकार दिया है। दुर्भाग्‍य से आज इन महापुरुषों के नाम पर राजनीतिक स्‍वार्थ की एक ऐसी धारा खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है जो समाज को तोड्ने का प्रयास कर रही है। कुछ राजनीतिक दलों को समाज में शांति और विकास नहीं, लेकिन उन्‍हें चाहिए कलह, उन्‍हें चाहिए अशांति। उनको लगता है जितना असंतोष और अशांति का वातावरण बनाएंगे उतना उनको राजनीतिक लाभ होगा। लेकिन सच्‍चाई ये भी है- ऐसे लोग जमीन से कट चुके हैं। इन्‍हें अंदाजा ही नहीं कि संत कबीर, महात्‍मा गांधी, बाबा साहेब को मानने वाले हमारे देश का मूल स्‍वभाव क्‍या है।

कबीर कहते थे- अपने भीतर झांको तो सत्‍य मिलेगा, पर इन्‍होंने कभी कबीर को गंभीरता से पढ़ा ही नहीं। संत कबीरदास जी कहते थे

पोथी पढ़ी-पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय, 

ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।

जनता से, देश से, अपने समाज के प्रति, उसकी प्रगति से मन लगाओ तो विकास के लिए विकास का जो हरि है, वो विकास का हरि मिल जाएगा। लेकिन उन लोगों का मन लगा हुआ है अपने आलीशान बंगले से। मुझे याद है जब गरीब और मध्‍यम वर्ग के लोगों को घर देने के‍ लिए प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू हुई तो यहां जो पहले वाली सरकार थी, उनका रवैया क्‍या था।

हमारी सरकार ने चिट्ठियां पर चिट्ठियां लिखीं, अनेक बार फोन पर बात की गई उस समय की यूपी सरकार आगे आएं, गरीबों के लिए बनाए जाने वाले घरों की कम से कम संख्‍या तो बताएं। लेकिन वो ऐसी सरकार थी जिनको अपने बंगले में रुचि थी। लेकिन वो हाथ पर हाथ धर करके बैठे रहे। और जब से योगीजी की सरकार आई, उसके बाद उत्‍तर प्रदेश में गरीबों के लिए रिकॉर्ड, रिकॉर्ड घरों का निर्माण किया जा रहा है।

साथियों, कबीर ने सारी जिंदगी उसूलों पर ध्‍यान दिया। दुनिया के उसूलों को नहीं, अपने बनाए और सही समझे उसूलों पर। मगहर आने के पीछे भी तो यही तो वजह थी। उन्‍होंने मोक्ष का मोह नहीं किया। लेकिन गरीबों को झूठा दिलासा देने वाले, समाजवाद और बहुजन की बातें करने वालों का सत्‍ता के प्रति लालच भी आज हम भलीभांति देख रहे हैं।

अभी दो दिन पहले ही देश में आपातकाल को 43 साल हुए हैं। सत्‍ता का लालच ऐसा है कि आपातकाल लगाने वाले और उस समय आपातकाल को विरोध करने वाले, आज कंधे से कंधा मिलाकर कुर्सी झपटने की फिराक में घूम रहे हैं। ये देश नहीं, समाज नहीं, सिर्फ अपने और अपने परिवार के हितों के लिए चिंतित हैं। गरीबों, दलितों, पिछड़े, वंचित, शोषित, उनको धोखा देकर अपने लिए करोड़ों के बंगले बनाने वाले हैं। अपने भाइयों, अपने रिश्‍तेदारों को करोड़ों, अरबों की संपत्ति का मालिक बनाने वाले हैं। ऐसे लोगों से उत्‍तर प्रदेश और देश के लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है।

साथियों, आपने तीन तलाक के विषय में भी इन लोगों का रवैया देखा है। देशभर में मुस्लिम समाज की बहनें आज तमाम धमकियों की परवाह न करते हुए तीन तलाक हटाने, इस कुरीति से समाज को मुक्ति के लिए लगातार मांग कर रही हैं। लेकिन ये राजनीतिक दल, ये सत्‍ता पाने के लिए वोट बैंक का खेल खेलने वाले लोग, तीन तलाक के बिल के संसद में पास होने पर रोड़े अटका रहे हैं। ये अपने हित के लिए समाज को हमेशा कमजोर रखना चाहते हैं। उसे बुराइयों से मुक्‍त नहीं देखना चाहते।

साथियों, कबीर का प्राकट्य जिस समय हुआ था तब भारत, भारत के ऊपर एक आक्रमण भीषण आक्रमण का ताज था। देश का सामान्‍य नागरिक परेशान था। संत कबीरदास जी ने तब के बादशाह को चुनौती दी थी। और कबीरदास की चुनौती थी-

 दर की बात कहो दरवेसा बादशाह है कौन भेसा 

कबीर ने कहा था- आदर्श शासक वही है जो जनता की पीड़ा को समझता हो और उसे दूर करने का प्रयास करता हो। वे शासक के रूप में आदर्श राजा राम की कल्‍पना करा करते थे। उनकी कल्‍पना का राज्‍य लोकतांत्रिक और पंथ निरपेक्ष था। लेकिन अफसोस आज कई परिवार खुद को जनता का भाग्‍य-विधाता समझकर संत कबीरदास जी की कही बातों को पूरी तरह नकारने में लगे हुए हैं। वे ये भूल गए हैं कि हमारे संघर्ष और आदर्श की बुनियाद कबीर जैसे महापुरुष हैं।

कबीर जी ने बि‍ना किसी लाज-लिहाज के रूढ़ियों पर सीधा प्रहार किया था। मनुष्‍य-मनुष्‍य के बीच भेद करने वाली हर व्‍यवस्‍था को चुनौती दी थी। जो दबा-कुचला था, जो वंचित था, जिसका शोषण किया जा रहा था; कबीर उसको सशक्‍त बनाना चाहते थे। वो उसको याचक बनाकर नहीं रखना चाहते थे।

 संत कबीरदासजी कहते थे-

 मांगन मरण समान है, मत कोई मांगो भीख

 मांगन ते मरना भला, यह सतगुरू की सीख।।

 कबीर खुद श्रमजीवी थे। वे श्रम का महत्‍व समझते थे। लेकिन आजादी के इतने वर्षों तक हमारे नीति-निर्माताओं ने कबीर के इस दर्शन को नहीं समझा। गरीबी हटाने के नाम पर वो गरीबों को वोट बैंक की सियासत पर आश्रित करते रहे।

साथियों, बीते चार वर्षों में हमने उस नीति-रीति को बदलने का भरसक प्रयास किया है। हमारी सरकार गरीब, दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित, महिलाओं को, नौजवानों को, सशक्‍त करने की राह पर चल रही है। जन-धन योजना के तहत उत्‍तर प्रदेश में लगभग पांच करोड़ गरीबों के बैंक खाते खोलकर, 80 लाख से ज्‍यादा महिलाओं को उज्‍ज्‍वला योजना के तहत मुफ्त गैस कनेकशन देकर, करीब एक करोड़ 70 लाख गरीबों को सिर्फ एक रुपया महीना और दिन में 90 पैसे के प्रीमियम पर सुरक्षा बीमा कवच देकर, यूपी के गांवों में सवा करोड़ शौचालय बनाकर, लोगों के बैंक खाते में सीधे पैसे ट्रांसफर करके गरीबों को सशक्‍त करने का काम किया। आयुष्‍मान भारत से हमारे गरीब परिवारों को सस्‍ती, सुलभ और सर्वश्रेष्‍ठ स्‍वास्‍थ्‍य सेवा देने का एक बहुत बड़ा बीड़ा उठाया है। गरीब के आत्‍मसम्‍मान और उसके जीवन को आसान बनाने को सरकार ने अपनी प्राथमिकता बनाया है।

काल करे सो आज कर। 

कबीर काम में विश्‍वास रखते थे, अपने राम में विश्‍वास रखते थे। आज तेजी से पूरी होती योजनाएं, दोगुनी गति से बनती सड़कें, नए हाईवे, दोगुनी गति से होता रेल लाइनों का बिजलीकरण, तेजी से बन रहे नए एयरपोर्ट, दोगुनी से भी ज्‍यादा तेजी से बन रहे घर, हर पंचायत तक बिछाई जा रही ऑप्‍टीकल फाइबर नेटवर्क, तमाम कार्यों की रफ्तार कबीर मार्ग के ही तो प्रतिबिंब हैं। ये हमारी सरकार के ‘सबका साथ सबका विकास’ मंत्र की भावना है।

साथियो, जिस प्रकार कबीर के कालखंड में मगहर को ऊसर और अभिशप्‍त माना गया था, ठीक उसी प्रकार आजादी के इतने वर्षों तक देश के कुछ ही हिस्‍सों तक विकास की रोशनी पहुंच पाई थी। भारत का एक बहुत बड़ा हिस्‍सा खुद को अलग-थलग महसूस कर रहा था। पूर्वी उत्‍तर प्रदेश से लेकर पूर्वी और उत्‍तर, उत्‍तर-पूर्वी भारत विकास के लिए तरस गया था। जिस प्रकार कबीर ने मगहर को अभिशाप से मुक्‍त किया उसी प्रकार हमारी सरकार का प्रयास है कि भारत-भूमि की एक-एक इंच जमीन को विकास की धारा के साथ जोड़ा जाए।

भाइयो और बहनों, पूरी दुनिया मगहर को संत कबीर की निर्वाण भूमि के रूप में जानती है। लेकिन स्‍वतंत्रता के इतने वर्षों बाद यहां भी स्थिति वैसे नहीं थी जैसी होनी चाहिए। 14-15 वर्ष पहले जब पूर्व राष्‍ट्रपति अब्‍दुल कलाम जी यहां आए थे तब उन्‍होंने इस जगह के लिए एक सपना देखा था। उनके सपनों को साकार करने के लिए मगहर को अंतर्राष्‍ट्रीय मानचित्र में सद्भाव, समरसता के केंद्र के तौर पर विकसित करने का काम अब हम तेज गति से करने जा रहे हैं।

देशभर में मगहर की तरह की आस्‍था और आध्‍यात्‍म के केंद्र को स्‍वदेश्‍ दर्शन स्‍कीम के तहत विकसित करने का बीड़ा सरकार ने उठाया है। रामयण सर्किट हो, बौद्ध सर्किट हो, सूफी सर्किट हो, जैसे अनेक सर्किट बनाकर अलग-अलग जगहों को विकसित करने का काम किया जा रहा है। साथियो, मानवता की रक्षा, विश्‍व बंधुतत्‍व और परस्‍पर प्रेम के लिए कबीर की वाणी एक बहुत बड़ा सरल माध्‍यम है। उनकी वाणी सर्व पंत समभाव और सामजिक समरसता के भाव से इतनी ओतप्रोत है कि वह आज भी हमारे लिए पथ-प्रदर्शक है।

जरूरत है कबीर साहब की वाणी को जन-जन तक पहुंचाया जाए और उसके हिसाब से आचरण किया जाए। मैं उम्‍मीद करता हूं कि कबीर अकादमी इसमें महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाएगी। एक बार फिर बाहर से आए श्रद्धालुओं को संत कबीर की इस पवित्र धरती में पधारने के लिए मैं उनका बहुत-बहुत आभार करता हूं। संत कबीर के अमृत वचनों को जीवन में ढालकर हम नयू इंडिया के संकल्‍प को सिद्ध कर पाएंगे।

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