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कृषि को निर्वहनीय एवं पोषण-समृद्ध बनाने के लिए किसानों के साथ ज्ञान और विशेषज्ञता साझा करें: उपराष्ट्रपति की वैज्ञानिकों से अपील

देश-विदेश

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडु ने कहा है कि सरकार, सिविल सोसाइटी, वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं को कृषि को निर्वहनीय एवं पोषण-समृद्ध बनाने के लिए किसानों के साथ अवश्य ज्ञान और विशेषज्ञता साझा करना चाहिए। पोषण के लिए कृषि का लाभ उठाने पर एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन द्वारा आयोजित राष्ट्रीय परामर्श सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने भारतीय कृषि एवं अनुसंधान परिषद तथा कृषि विज्ञान केंद्रों जैसे संस्थानों से हमारे किसानों को शिक्षित बनाने में अग्रणी भूमिका निभाने की अपील की।

इस अवसर पर तमिलनाडु के मात्स्यिकी एवं कार्मिक तथा प्रशासनिक सुधार मंत्री श्री डी जयकुमार, कृषि वैज्ञानिक श्री एम एस स्वामीनाथन एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि यह बहुत निराशाजनक बात है कि केंद्र एवं राज्यों में विभिन्न सरकारों द्वारा प्रयास किए जाने के बावजूद भारत में अस्वीकार्य स्तर पर कुपोषण की समस्या बनी हुई है। उन्होंने कहा कि देश की आबादी स्वस्थ एवं उत्पादक बनी रही इसके लिए इस समस्या का युद्ध स्तर पर समाधान आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए सितंबर 2017 में राष्ट्रीय पोषण कार्यनीति का अंगीकरण किया है। इस नीति में हमारी कृषि नीति पर फिर से गौर करने की आवश्यकता बताई गई है।

उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि भारतीय कृषि को निश्चित रूप से प्रमुख फसलों की एकल फसलीकरण से अलग हट कर एक ऐसी पद्धति की ओर बढ़ने के द्वारा हमारे खाद्य उत्पादन को विविधीकृत करना चाहिए जिसमें छोटे कदन्नों, दलहनों, फलों एवं सब्जियों समेत कई खाद्य वस्तुएं समेकित की गई हो।

उन्होंने कहा कि कदन्न जैसे पोषणिक रूप से समृद्ध फसलों के लिए एक बाजार के सृजन की आवश्यकता है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये उन्हें बढ़ावा देना या उनकी आपूर्ति करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि किसानों को विभिन्न खाद्यों के पौषणिक मूल्य के बारे में जानकारी होनी चाहिए। उन्होंने श्री एम एस स्वामीनाथन द्वारा दिए गए परामर्शों के अनुरूप कृषि, पोषण एवं स्वास्थ्य को एकीकृत करने के लिए एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण के अनुरूप भारत सरकार की राष्ट्रीय पोषण कार्यनीति 2017 में कुपोषण की समस्या के समाधान के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण के महत्व को स्वीकार किया गया है।

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