नई दिल्ली: आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी (आयुष) दवाओं की सुरक्षा निगरानी बढ़ाने के लिए एक नई केन्द्रीय योजना शुरू की है। इसका मुख्य उद्देश्य आयुष की दवाओं के फायदों के साथ ही उसके दुष्प्रभावों का लिखित रिकॉर्ड रखने के साथ ही इन दवाओं के बारे में भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाना है। आयुष सचिव की अध्यक्षता में गठित स्थायी वित्त समिति ने 1 नवम्बर, 2017 को इस योजना को मंजूरी दी थी, जिसके बाद वित्त वर्ष 2017-18 के आखिर में इसे लागू करने का काम शुरू कर दिया गया।
इस योजना के तहत देश भर में आयुष की दवाओं की निगरानी के लिए तीन स्तरीय नेटवर्क बनाने का काम किया जा रहा है। मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त निकाय के रूप में कार्यरत नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान को आयुष दवाओं की निगरानी से जुड़ी गतिविधियों के बीच समन्वय बनाने का काम सौंपा गया है। योजना को लागू करने के शुरूआती स्तर पर पांच राष्ट्रीय आयुष संस्थानों तथा 42 आयुष संस्थानों को इस काम में मदद करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिसके तहत इन संस्थानों को आयुष की दवाओं का लिखित रिकॉर्ड बनाने, उनका विश्लेषण करने, ऐसे दवाओं के दुष्प्रभावों का आकलन कर उनका रिकॉर्ड तैयार करने तथा आयुष दवाओं के सेवन से जुड़ी अन्य गतिविधियों का रिकॉर्ड भी रखने का काम करना है। मंत्रालय ने 2020 तक देश में ऐसे 100 केन्द्र खोलने का लक्ष्य रखा है। आयुष दवाओं के लिए सुरक्षा नेटवर्क बनाने के लिए सरकार ने अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान को शुरूआती तौर पर 10.60 करोड़ रुपये का अनुदान मंजूर किया है।
आयुष दवाओं की निगरानी के इस काम में केन्द्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन और भारतीय भेषज संहिता आयोग भी इस काम में आयुष मंत्रालय के साथ काम कर रहा है।