नई दिल्ली: आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा 13 अगस्त, 2018 को शुरू किए गए जीवन सुगमता सूचकांक ने लोगों में काफी उत्साह पैदा किया और शहरी योजनाकारों, नगर निगम प्राधिकरणों तथा लोगों को आधार रेखा आंकड़ों पर सार्वजनिक चर्चा का मौका मिला। यह उम्मीद की जाती है कि आधार रेखा आंकड़े अपने शहर प्रशासनों से बेहतर जीवन की उम्मीद कर रहे लोगों की मांगों को पूरा करेगी। यह एक विशेष अभ्यास है और इससे पारदर्शिता के साथ शहरी पैमानों का आकलन संभव बनेगा।
अंतर्राष्ट्रीय बोली प्रक्रिया के तहत जीवन सुगमता के पैमानों का आकलन करने के लिए मेसर्स आईपीओएस रिसर्च प्रा.लि. को चुना गया है। इसके साथ मेसर्स अथेना इंफोनोमिक्स इंडिया प्रा.लि. और इकोनोमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) शामिल हैं। मूल्यांकन का कार्यान्वयन औपचारिक रूप से 19 जनवरी, 2018 से शुरू हुआ था।
गुणवत्ता नियंत्रण और उत्कृष्टता आधारित खाता परीक्षण के दो दौर पूरे किए गए हैं, जो शहरों द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर हैं। इसके साथ त्रुटियों को भी चिह्नित किया गया। हर शहर को त्रुटियां दूर करने और अपने आंकड़ों को उन्नत करने का अवसर दिया गया।
अंत में चुने हुए मानदंडों के लिए भौतिक लेखा परीक्षण किया गया, जिसके तहत भौतिक सत्यापन संभव है। उदाहरण के लिए यात्री सूचना प्रणालियों की उपलब्धता को लिया जा सकता है। यह कार्य प्रशिक्षित कर्मियों के नेटवर्क के जरिए किया गया।
इस संबंध में संकेतकों और उपादेयता, शहरों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों, उपलब्ध आंकड़ों की गुणवत्ता और संबंधित पैमानों का ध्यान रखा गया। मूल्यांकन के तहत सभी शहरों को समान अवसर मिल सके, इसके लिए 78 संकेतकों में से 22 संकेतकों को संबंधित पैमानों में लागू किया गया।