महाभारत में हुए इस उल्लेख के अनुसार करवा चौथ व्रत की कथा भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं द्रौपदी को सुनाई थी। श्री कृष्ण ने द्रौपदी को इस व्रत के बारे में बताते हुए कहा के व्रत को विधि-विधान से पूर्ण करने पर पति की लंबी उम्र होती है साथ ही समस्त दुखों का नाश भी होता है। इससे दांपत्य जीवन में सुख-सौभाग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
कृष्ण जी की बातों को मानते हुए द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत रखा और विधि पूर्वक उसे पूर्ण किया। फलस्वरुप अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को हराकर जीत हासिल की।
करवा चौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है, उनके घर में सुख, शांति, समृद्धि और संतान सुख मिलता है। करवा चौथ के पूजन में धातु के करवे का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। यथास्थिति अनुपलब्धता में मिट्टी के करवे से भी पूजन का विधान है। इस व्रत में भगवान शिव शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है।
पूजा षोडशोपचार विधि से विधिवत करके एक तांबे या मिट्टी के पात्र में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, जैसे- सिंदूर, चूडियां शीशा, कंघी, रिबन और रुपया रखकर किसी बड़ी सुहागिन स्त्री या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करनी चाहिए।
करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। करवा चौथ का व्रत केवल विवाहित महिलाएं ही रख सकती हैं। इस दिन स्त्रियां सूर्योदय से पहले उठें। सबसे पहले दैनिक नित्यक्रिया करने के बाद सुबह चौथ माता की प्रतिमा को स्थापित करें।
करवा चौथ के दिन यह रिवाज होता है कि व्रती महिला की सास अपनी बहू को व्रत रखने से पहले सरगी अर्थात् खाने की सामग्री देती है। बहू उसे खाकर ही व्रत की शुरुआत करती है। यह आहार सूर्योदय से पहले लिया जाता है। इसके बाद पूरे दिन वह बिना कुछ खाएं-पिएं रखती हैं।