समाज का निर्माण सम्बंधों के ताने-बाने से ही होता है और उन सम्बंधों में अंनत: सम्बंधों की बारम्बारता होनी आवश्यक होती है तब मैं की जगह हम की भावना पैदा होती है और व्यक्ति समाज का निर्माण कर पाता है।
स्त्री-पुरुष मिल कर विवाह सम्बन्धों के जरिये संतान उत्पन्न करते हैं और परिवार की उत्पत्ति हो जाती है। यह परिवार अन्य परिवारों से मित्रता के सम्बन्ध, विवाह सम्बंध और अन्य आवश्यकता को पूरी करने के लिए लगातार सम्बन्धों का निर्माण करता हुआ एक समाज का निर्माण करता है। एक समाज अन्य समाजों से अपने सम्बन्ध बनाकर अपनी आवश्यकता की पूर्ति करता है और इस प्रकार सम्बंधों का जाल बन जाता है और बडे समाज की रचना हो जाती है।
इन रिश्तों को संजोएं रखने के लिए सम्बन्धों की बारम्बारता होनी आवश्यक होती है। नहीं तो समाज़ में हम की ही भावना खत्म हो जाती है और सहयोग तथा समन्वय का अभाव हो जाता है, रिशते नाते टूटकर परिवार और समाज को तोड़ देते हैं।
विश्व समाज की आर्थिक स्थिति का मूल आधार कृषि कार्य होता है और इन कृषि कार्यों से उत्पन्न कृषि उत्पादों का उपभोग एक परिवार और एक समाज नहीं कर पाता है। अन्य परिवार व समाजों को वस्तु विनिमय व मुद्रा विनिमय के माध्यम से देकर अपनी अन्य आवश्यकता को पूरी कर अपने व्यापारिक और व्यावसायिक सम्बंध स्थापित करता है। सम्बन्धों को संजोये रखने की यह कला परिवार से प्रारंभ होती हुईं विश्व समाज तक पहुंच जाती है।
द्वितीय समूहों से सम्बंध बनाते हुए भाई और बहन अलग-अलग परिवारों का निर्माण कर लेते हैं और रिश्तों को संजोये रखने के लिए बहन भाई के घर रक्षा बंधन के लिए जाती है तो भाई बहन के परिवारों से सम्बंध बनाते हुए यम द्वितीया के अवसर पर बहन के घर जाते हैं और उस परिवार से सम्बंधों की बारम्बारता बनाए रखते हैं ताकि दोनों परिवारों में प्रेम सहयोग व समन्वय बना रहे ओर एक दूसरे की सामाजिक व आर्थिक स्थिति को बनाए रखने में मदद करते रहे।
परिवार के मुखिया की पत्नी अलग कुल की होती है, वह पुत्र पुत्री को जन्म देकर पुत्री का विवाह कर अन्य कुल में भेज देती है और पुत्र का विवाह कर अन्य कुल की कन्या ले आती है। यहा तीन कुलों का मिलन एक साथ हो जाता है। जब संतानों की संख्या अधिक होती है तो अन्य कईं कुलों से सम्बंध बनकर एक विस्तृत समाज़ का निर्माण हो जाता है और उन रिश्तों में प्रेम भाईचारा बनाए रखने के लिए भाई की भूमिका बढ जाती है।
भाई को बहन अपने परिवार में आने का निमंत्रण देती है तो भाई मन में घबराने सा लग जाता है और सोचने लग जाता है कि बहन के परिवार में कोई समस्या तो नहीं है। वह बहन के घर डरा डरा जाता है, उस यमराज की तरह जिसे उसकी बहन यमुना ने अपने घर पर आने का निमंत्रण दिया था।
यमराज मृत्यु का देवता माना जाता है और उसे कोई भी घर पर नहीं बुलाना चाहता है क्योकि वह कर्म के अनुसार दंड देता है। भाई भी जब बहन की स्थिति खराब देखता है तो वह भी बहन के परिवार के लिए दंड देने वाले की भूमिका ही निभाता है, उसकी खुशियों के लिए।
संत जन कहतें है कि हे मानव, धार्मिक मान्यताओं में रिश्तों को संजोएं रखने की यह कला ही भाई दूज कहलाने लगी और भाई वर्ष में एक बार बहन के परिवार में जाकर अपने सम्बधों को मजबूत बनाए रखता है, हर सार्थक प्रयास कर उनकी प्रगति के लिए मददगार बनता है।
इसलिए हे मानव, अपने रिश्तों को अपनी भूमिका के अनुसार निभा तथा समाज के ताने-बाने को सदा गूंथकर सम्बन्धों को संजोएं रखने में समाज को एकता के सूत्र में बांधकर रखेगी और सामाजिक ढांचे को को हर क्षेत्र में समृद्ध बनाने में मदद करेंगी।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर