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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने इस वर्ष पशुधन और कुक्कुट की रिकॉर्ड 15 नई देसी नस्लों के पंजीकरण को मंजूरी दी है

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नई दिल्ली: केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधामोहन सिंह कृषि भवन, नई दिल्ली में ब्रीड रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्रों के वितरण समारोह में उपस्थित हैं

•     पशु नस्लों का पंजीकरण देश की जैव विविधता से संबंधित दस्तावेजीकरण में एक महत्वपूर्ण कदम।

•     गोवंश और भैंसों की मूल नस्लों के संरक्षण के लिए 20 गोकुल ग्राम स्थापित।

केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने कृषि भवन, नई दिल्ली में ब्रीड रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्रों के वितरण समारोह को संबोधित किया और कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने इस वर्ष पशुधन और कुक्कुट की रिकॉर्ड 15 देसी नस्लों को पंजीकृत किया है और अब वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2018 तक पंजीकृत नई नस्लों की कुल संख्या 40 हो गई है। इस अवसर पर केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री परषोत्तम रुपाला, श्रीमती कृष्णा राज और श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत मौजूद थे।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2010 से अब तक 55 नई पंजीकृत नस्लों में से 40 नई नस्लों को केवल चार वर्षों (2014-18) के दौरान पंजीकृत किया गया, जबकि वर्ष 2010-13 के दौरान सिर्फ 15 नई नस्लों का पंजीकरण हुआ था। उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि हर साल नई पंजीकृत नस्लों की संख्या बढ़ रही है।

उन्होंने बताया कि हाल ही में पंजीकृत 15 नस्लों में गोवंश की दो नस्लें (लद्दाख-जम्मू-कश्मीर से लद्दाखी, महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र से कोंकण कपिला), भैंस की तीन नस्लें (असम से लुइत, तमिलनाडु से बरगुर, छत्तीसगढ़ से छत्तीसगढ़ी), बकरी की छह नस्लें (गुजरात से काहमी, उत्तर प्रदेश से रोहेलखण्डी, असम से असम हिल, कर्नाटक से बिदरी और नंदीदुर्ग, जम्मू-कश्मीर से भकरवाली) और एक भेड़ (गुजरात से पंचली), एक सुअर (उत्तर प्रदेश से घूररा),  एक गधा (गुजरात से हलारी) और एक कुक्कुट (उत्तराखंड से उत्तरा कुक्कुट) शामिल हैं।

श्री सिंह ने बताया कि ये देसी नस्लें गर्मी सहिष्णुता, रोग प्रतिरोध क्षमता और कम चारे पर भी उत्पादन देने के लिए प्रसिद्ध हैं। पशु नस्लों की पहचान और पंजीकरण देश की जैव विविधता से संबंधित दस्तावेजीकरण में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे पशु नस्लों को उचित मूल्य प्रदान करने, उनके सुधार के लिए सरकार के विभिन्न विकास कार्यक्रमों को शुरू करने एवं देश की जैव विविधता को संरक्षित करने में मदद मिलेगी। भारत में विश्व भर के कुल गोवंश का लगभग 15%, भैंस का 57%, बकरी का 17%, भेड़ का 7% और कुक्कुट का 4.5% है। अभी भी दूरदराज के क्षेत्रों में अधिक शुद्ध रूप में अनेक नस्लों की संभावना है जिनका आने वाले समय में मूल्यांकन करने की आवश्यक्ता है।

उन्होंने कहा कि नई नस्लों की पहचान के साथ-साथ वर्तमान नस्लों का सुधार, संवर्धन और संरक्षण भी महत्वपूर्ण है। इसके मद्देनजर देसी नस्लों के सुधार और संरक्षण के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत स्वदेशी नस्लों के सुधार और संरक्षण के लिए 2000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि आवंटित की गई है। गोवंश और भैंसों की मूल नस्लों के संरक्षण के लिए 2 राष्ट्रीय कामधेनु प्रजनन केंद्र और 20 गोकुल ग्राम स्थापित किए गए हैं। इसके साथ ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित 20 भ्रूण स्थानांतरण और आईवीएफ प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं, जो 3000 उच्च जेनेटिक गुणों वाले सांड तैयार करेंगी। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय बोवाइन जीनोमिक सेंटर कम अवधि में स्वदेशी नस्लों के दूध उत्पादन हेतु आनुवांशिक सुधार करने के लिए सरकार की एक नई पहल है।

अपने सम्बोधन के आखिर में कृषि मंत्री ने पशुधन नस्ल पंजीकरण के सभी हितधारकों को बधाई देते हुए इस अमूल्य पशु संसाधनों का उपयोग और संरक्षण करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केंद्रीय और राज्य पशुपालन विभाग तथा किसान सहित अन्य पशु हितधारकों को आपस में मिलकर कार्य करने का आह्वान किया।

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