नई दिल्ली: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों पर कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने वाणिज्यिक निर्यातकों को ‘ढुलाई पूर्व एवं उपरांत रुपया निर्यात ऋण के लिए ब्याज समकरण योजना (आईईएस)’में शामिल करने संबंधी वाणिज्य विभाग के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी है। इसके तहत वाणिज्यिक निर्यातकों को इस योजना में चिन्हित 416 टैरिफ लाइनों के दायरे में आने वाले उत्पादों के निर्यात के लिए इस तरह के ऋण पर 3 प्रतिशत की ब्याज समकरण दर की अनुमति दी गई है। इन उत्पाद का वास्ता मुख्यतः एमएसएमई/श्रम बहुल क्षेत्रों जैसे कि कृषि, वस्त्र, चमड़ा, हस्तशिल्प, मशीनरी इत्यादि से है।
इस प्रस्ताव से योजना की शेष अवधि में निर्यातकों को ब्याज समकरण पर लगभग 600 करोड़ रुपये का लाभ होगा।
इस योजना में वाणिज्यिक निर्यातकों को शामिल करने से इन निर्यातकों के और भी ज्यादा प्रतिस्पर्धी हो जाने की आशा है, जिससे वे एमएसएमई द्वारा उत्पादित किए जाने वाले और भी ज्यादा उत्पादों का निर्यात करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। इससे भारत से किए जाने वाले निर्यात में वृद्धि होगी। वाणिज्यिक निर्यातकों द्वारा किए जाने वाले अतिरिक्त निर्यात से सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) द्वारा किए जाने वाले उत्पादन में वृद्धि होगी, जिससे रोजगार सृजन में बढ़ोतरी होगी। एमएसएमई के आमतौर पर रोजगार गहन क्षेत्रों में कार्यरत होने से ही यह संभव हो पाएगा।
वर्तमान योजना 01 अप्रैल, 2015 से ही 5 वर्षों के लिए अमल में लाई जा रही है। इस योजना में 4 अंकों वाली चिन्हित 416 टैरिफ लाइनों का निर्यात करने वाले समस्त विनिर्माता निर्यातकों के लिए ढुलाई पूर्व एवं ढुलाई उपरांत रुपया ऋणों पर 3 प्रतिशत की ब्याज समकरण दर और एमएसएमई द्वारा उत्पादन एवं निर्यात किए जाने वाले सभी वाणिज्यिक उत्पादों पर 5 प्रतिशत की ब्याज समकरण दर का प्रावधान किया गया है। वाणिज्यिक निर्यातकों को अब तक इस योजना के दायरे में नहीं लाया गया था।
निर्यातक समुदाय वर्तमान योजना में वाणिज्यिक निर्यातकों को भी शामिल किए जाने की मांग निरंतर करते आ रहे थे। वाणिज्यिक निर्यातक विदेशी बाजारों का पता लगाने, निर्यात ऑर्डर प्राप्त करने, अंतर्राष्ट्रीय निर्यात बाजारों में उत्पादों की वर्तमान प्राथमिकताओं, रूझान एवं मांग के बारे में एमएसएमई निर्माताओं को आवश्यक जानकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वाणिज्यिक निर्यातक एमएसएमई निर्माताओं के निर्यात में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि एमएसएमई निर्माता दरअसल वाणिज्यिक निर्यातकों के जरिए ही बड़ी मात्रा में उत्पादों का निर्यात करते हैं। ऋणों की ऊंची लागत अथवा महंगे ऋण का असर उनकी प्रतिस्पर्धी क्षमता पर भी पड़ता है, क्योंकि वे अपनी निर्यात लागत में ऊंची ब्याज लागत को भी शामिल करते हैं।