(1) मानव जाति की एकता में सारे जगत की खुशहाली निहित है :-
संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2012 में प्रतिवर्ष 20 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय खुशी दिवस मनाने की घोषणा की। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व के सभी व्यक्तियों तथा बच्चों के जीवन में खुशहाली, एकता, शान्ति तथा समृद्धि लाना है। हमारा मानना है कि मानव जाति की एकता में ही सारे जगत की प्रसन्नता निहित है। इसके लिए सारी धरती पर यह विचार फैलाने का समय अब आ गया है कि मानव जाति एक है, धर्म एक है तथा ईश्वर एक है। हमारा मानना है कि धार्मिक विद्वेष, शक्ति प्रदर्शन के लिए शस्त्रों की होड़ तथा साम्राज्य विस्तार की नीति से आपसी बैर-भाव पैदा होते हैं जबकि मानव जाति की एकता में सारे जगत की खुशहाली निहित है। हम विगत 60 वर्षों से बच्चों की शिक्षा के माध्यम से एक न्यायप्रिय विश्व व्यवस्था के लिए प्रयासरत हैं। हमारा लक्ष्य शिक्षा के माध्यम से एक युद्धरहित संसार विकसित करके विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों तथा आगे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित करना है।
(2) चिन्ता चिता के समान होती है :-
मनुष्य का जीवन सदैव से अनेक चिन्ताओं से ग्रसित रहा है। चिता तो मृत व्यक्ति को जलाती है, लेकिन चिंता की अग्नि जीवित व्यक्ति को ही जलाकर खाक कर देती है। इसलिए कहा जाता है कि चिन्ता चिता के समान होती है। चिन्तायें कई प्रकार की होती हैं जो कि जीवन का सुख-चैन समाप्त करने में लगी रहती हैं। जैसे- बच्चे, स्वास्थ्य, शिक्षा, कैरियर, भविष्य, पद, व्यवसाय, मुकदमा, शादी-ब्याह, मान-सम्मान, कर्जा, बुढा़पा आदि से जुड़ी चिंतायें। चिंताओं से ग्रसित व्यक्ति के लक्षण तनाव, कुंठा, क्रोध, अवसाद, रक्तचाप, हृदय रोग आदि के रूप में दिखाई देते हैं। चिंताओं से बुरी तरह ग्रसित व्यक्ति की अंतिम मंजिल आत्महत्या, हत्या या अकाल मृत्यु के रूप में प्रायः दिखाई देता है। ये दुःखदायी स्थितियाँ हमारी शारीरिक, भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास में एक बड़ी बाधा बनती हैं।
(3) एक शुद्ध, दयालु एवं ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित हृदय धारण करना :-
आत्मा के पिता परमात्मा की सदैव यह चिन्ता रहती है कि मेरे को दुःख हो जाये किन्तु मेरी संतानों को कोई दःुख न हो। परमात्मा अपनी संतानों के दुःखों को दूर करने के लिए स्वयं धरती पर राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, महावीर, नानक, झूले लाल, बहाउल्लाह आदि अवतारों के माध्यम से अवतरित होता हैं। ये अवतार संसार से जाने के पूर्व गीता, रामायण, वेद, कुरान, बाइबिल, गुरू ग्रन्थ साहिब, त्रिपटक, किताबे अकदस, किताबे अजावेस्ता आदि जैसी पवित्र पुस्तकें हमें देकर जाते हैं। इन पुस्तकों का ज्ञान हमें अपनी सभी प्रकार की चिन्ताओं को प्रभु को सौंपकर चिंतामुक्त होने का विश्वास जगाता है। सभी चिन्ताओं को प्रभु को सौंपने के बाद हमारी केवल एक चिंता होनी चाहिए कि मैं सौगंध खाता हूँ, हे मेरे परमात्मा! कि तूने मुझे इसलिए उत्पन्न किया है कि मैं तुझे जाँनू और तेरी पूजा करूँ। तुझे जानने का अर्थ है कि तेरी शिक्षाओं को जाँनू और तेरी पूजा करने का अर्थ है कि तेरी शिक्षाओं पर चलूँ। एक शुद्ध, दयालु एवं ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित हृदय धारण करके पवित्र ग्रन्थों की गहराई में जाना परमात्मा रूपी चिकित्सक से अचूक इलाज का यह सबसे सरल तरीका है।
(4) मनुष्य को केवल एक ही चिन्ता करनी चाहिए :-
मैंने एक बार अपनी चिन्ताओं की लिस्ट बनाने का विचार किया तथा इन चिन्ताओं की लिस्ट बनाने पर जब मैंने उनकी गिनती की तो वे 215 तक पहुँच गयी थी। इसके थोड़ी देर के बाद ही मैंने महसूस किया कि इसमें अभी कुछ चिन्तायें लिखनी छूट गयी हैं। तब घबराहट में मेरे अंदर विचार आया कि जब चिन्तायें इतनी ज्यादा हैं तो उनकी लिस्ट बनाने से क्या फायदा? इसलिए प्रिय मित्रों, मनुष्य की केवल एक ही चिन्ता होनी चाहिए कि वह अपने प्रत्येक कार्य के द्वारा परमात्मा की इच्छा का पालन कर रहा है या नहीं? इसके बाद मनुष्य को अपनी सारी चिन्ताओं को परमात्मा को सौंप देना चाहिए। हमारा मानना है कि अब भाव रहित शब्दों द्वारा चिन्ह पूजा के दिन लद गये। अब हमारे प्रत्येक कार्य-व्यवसाय ही प्रभु प्रार्थना का सबसे सशक्त माध्यम है।
(5) आज की समस्या मानव हृदयों के बीच की दूरियाँ हैं :-
आज की सबसे बड़ी समस्या पति-पत्नी के बीच दूरियाँ, परिवारजनों के बीच की दूरियाँ, जातियों के बीच की दूरियाँ, धर्मां के बीच की दूरियाँ तथा राष्ट्रों के बीच की दूरियाँ हैं। हम अपनी समस्याओं के हल के लिए दुनियाँ भर में तो पागलों की तरह दौड़ते फिरते हैं लेकिन इन समस्याओं का हल हम पवित्र ग्रन्थों की शिक्षाओं में खोजने का जरा सा भी प्रयास नहीं करते हैं। इस तरह अपनी मर्जी पर चलते हुए हम अपने स्वयं के लिए तथा समाज के लिए समस्याओं की संख्या में वृद्धि करते जाते हैं। जबकि हमें प्रभु निर्मित समाज को रहने योग्य बनाने के लिए अब हृदयों की एकता के लिए पूरी तरह से लग जाना हैं। यही व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक सभी समस्याओं का एकमात्र हल है और यह सही है कि पारिवारिक एकता ही विश्व एकता की आधारशिला है।
(6) जीवन को खुशहाल बनाने हेतु महापुरूषों के कुछ विचार :-
महात्मा गाँधी – खुशी तब मिलेगी जब आप जो सोचते हैं, जो कहते हैं और जो करते हैं, इन सभी में सामंजस्य हों। दलाई लामा – प्रसन्नता कोई पहले से निर्मित वस्तु नहीं है। वो आपके कर्मां से आती है। बेंजामिन फ्रैंकलिन – पैसे ने कभी किसी को खुशी नहीं दी है, और न देगा,उसके स्वभाव में ऐसा कुछ नहीं है जिससे खुशी उत्पन्न हो। ये जितना ज्यादा जिसके पास होता है वो उतना ही इसे चाहता है। डेल कार्नेगी – याद रखिये खुशी इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आप कौन हैं या आपके पास क्या है? ये पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करती है कि आप क्या सोचते हैं। आस्कर वाइल्ड – कुछ लोग जहाँ जाते हैं वहां खुशियाँ लाते हैं, कुछ लोग जब जाते हैं तब खुशियाँ लाते हैं। अरस्तु- प्रसन्नता हम पर ही निर्भर करती है। मार्कस औरेलियास – आपके जीवन की प्रसन्नता आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। चाणक्य – जब आप किसी काम की शुरूआत करें, तो असफलता से मत डरें और उस काम को ना छोड़ें जो लोग ईमानदारी से काम करते हैं वो सबसे प्रसन्न होते हैं। जान बारीमोर – खुशियाँ कई बार उन दरवाजों से भी आ जाती है, जिन्हें बंद करना आप भूल चुके है। दलाई लामा – खुशी कभी भी अपने आप नहीं मिलती, ये आपके किये हुए कार्यों से ही आती है। अगर आप चाहते है दूसरे आपसे खुश रहे, तो सहानुभूति रखिये। अगर आप खुद खुश रहना चाहते है, तो खुद से सहानुभूति रखिये। हमारे जीवन का अंतिम उद्देश्य खुश रहना ही है। अब्राहिम लिंकन – अधिकतर लोग उतने ही खुश होते है, जितना वे स्वयं चाहते हैं।
(7) एक छोटी सी प्रेरणादायी कहानी- खुशी हमारे मन में छिपी है :-
एक बार की बात है कि एक शहर में बहुत अमीर सेठ रहता था। अत्यधिक धनी होने पर भी वह हमेशा दुखी ही रहता था। एक दिन ज्यादा परेशान होकर वह एक ऋषि के पास गया और अपनी सारी समस्या ऋषि को बताई। उन्हांने सेठ की बात ध्यान से सुनी और सेठ से कहा की कल तुम इसी वक्त फिर से मेरे पास आना मैं कल ही तुम्हें तुम्हारी सारी समस्याओं का हल बता दूँगा। सेठ खुशी-खुशी घर गया और अगले दिन जब फिर से ऋषि के पास आया तो उसने देखा कि ऋषि आश्रम के बाहर सड़क पर कुछ ढूँढने में व्यस्त थे। सेठ ने गुरुजी से पूछा कि महर्षि आप क्या ढूँढ रहे हैं , गुरुजी बोले की मेरी एक अंगूठी गिर गयी है मैं वही ढूँढ रहा हूँ पर काफी देर हो गयी है लेकिन अंगूठी मिल ही नहीं रही है। यह सुनकर वह सेठ भी अंगूठी ढूँढने में लग गया, जब काफी देर हो गयी तो सेठ ने फिर गुरुजी से पूछा कि आपकी अंगूठी कहा गिरी थी? ऋषि ने जवाब दिया कि अंगूठी मेरे आश्रम के अन्दर गिरी थी पर वहाँ काफी अंधेरा है इसीलिए मैं यहाँ सड़क पर ढूँढ रहा हूँ। सेठ ने चौंकते हुए पूछा की जब आपकी अंगूठी आश्रम के अन्दर गिरी है तो यहाँ बाहर सड़क पर क्यों ढूँढ रहे हैं? ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा की यही तुम्हारे कल के प्रश्न का उत्तर है, खुशी तो मन में छुपी है लेकिन तुम उसे धन में खोजने की कोशिश कर रहे हो। इसीलिए तुम दुखी हो, यह सुनकर सेठ ऋषि के पैरों में गिर गया। तो मित्रों, यही बात हम लोगों पर भी लागू होती है जीवन भर पैसा इकट्ठा करने के बाद भी इंसान खुश नहीं रहता क्योंकि हम पैसा कमाने में इतना अधिक व्यस्त हो जाते हैं कि हम अपनी खुशी आदि सब कुछ भूल जाते हैं।
(8) सहयोग करो, सहयोग करो, ओ प्रभु की संतानों :-
एक बार पचास लोगों का ग्रुप किसी सेमीनार में हिस्सा ले रहा था। सेमीनार शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि स्पीकर ने अचानक ही सबको रोकते हुए सभी प्रतिभागियों को गुब्बारे देते हुए बोला , ”आप सभी को गुब्बारे पर इस मार्कर से अपना नाम लिखना है।” सभी ने ऐसा ही किया। अब गुब्बारों को एक दूसरे कमरे में रख दिया गया। स्पीकर ने अब सभी को एक साथ कमरे में जाकर पांच मिनट के अंदर अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने के लिए कहा। सारे प्रतिभागी तेजी से रूम में घुसे और पागलों की तरह अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने लगे। पर इस अफरा-तफरी में किसी को भी अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिल पा रहा था। पांच मिनट बाद सभी को बाहर बुला लिया गया। स्पीकर बोला, ”अरे! क्या हुआ, आप सभी खाली हाथ क्यों हैं? क्या किसी को अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिला?” नहीं! हमने बहुत ढूंढा पर हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया।” एक प्रतिभागी कुछ मायूस होते हुए बोला। “कोई बात नहीं, आप लोग एक बार फिर कमरे में जाइये, पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति का नाम पुकारे जिसका नाम उस पर लिखा हुआ है।“ स्पीकर ने निर्देश दिया।
(9) सहयोग से होगा सर्वोदय सुनो ओ प्रभु की संतानों :-
एक बार फिर सभी प्रतिभागी कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे और कमरे में किसी तरह की अफरा-तफरी नहीं मची हुई थी। सभी ने एक दूसरे को उनके नाम के गुब्बारे दिए और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये। स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा, ”बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है। हर कोई अपने लिए ही जी रहा है, उसे इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो बस पागलों की तरह अपनी ही खुशियां ढूंढ रहा है, पर बहुत ढूंढने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता, दोस्तों हमारी खुशी दूसरों की खुशी में छिपी हुई है। जब तुम औरों को उनकी खुशियां देना सीख जाओगे तो अपने आप ही तुम्हें तुम्हारी खुशियां मिल जाएँगी और यही मानव-जीवन का उद्देश्य है।” हमारा विश्वास है कि मानव जाति की एकता में सभी की खुशहाली, शान्ति, एकता तथा समृद्धि निहित है।
डॉ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ