लखनऊः उच्च सदन के माननीय सदस्यों से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा कर सकते हैं कि देश में जहाॅ-जहाॅ उच्च सदन नहीं है, वहाॅ भी हो इसलिए हमें अपने कार्यप्रणाली से उदाहरण पेश करना चाहिए। बहुत प्राचीन काल से परस्पर विचार-विमर्श की परम्परा थी। लोक जीवन के आधार पर पूर्व और पश्चिम का चिंतन करना चाहिए। पश्चिम में व्यक्तिवाद की अधिकता है परन्तु भारतीय जीवन में सामूहिक जीवन जीने को महत्वपूर्ण माना गया है। साथ-साथ रहने पर तानाशाही नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्र में संसदीय परिपाटी मौजूद रही है। प्रश्न और उत्तर का दौर चलता है।
ये विचार उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष श्री हृदय नारायण दीक्षित ने संवैधानिक एवं संसदीय अध्ययन संस्थान, उत्तर प्रदेश विधानसभा लखनऊ द्वारा जनहित में ‘‘विधान परिषद की सार्थकता‘‘ विषय पर विधानसभा स्थित तिलक हाल में आयोजित विचार गोष्ठी में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि शोरगुल से युक्त वातावरण में जनता द्वारा सीधे निर्वाचित विधानसभा में अस्थाई बहुमत द्वारा लिये गये निर्णयों की तुलना में विधान परिषद का गठन इस प्रकार होता है कि वह अपेक्षाकृत शान्त वातावरण में विवेकपूर्ण तथा संतुलित निर्णय लेने में सक्षम होता है और इस प्रकार संवैधानिक सरकार की कार्य करने में बहुत उपयोगी भूमिका अदा करता है।
विधान परिषद के सभापति श्री रमेश यादव ने कहा कि हम जिस सदन की सार्थकता पर चर्चा कर रहे है निश्चय ही इसका अतीत और इतिहास बहुत ही गौरवशाली है। इसके कई माननीय सदस्यों ने स्वतंत्रता संग्राम ही नहीं अपितु उसके पश्चात स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण हेतु गठित संविधान सभा में भी सदस्य के रूप में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश विधान परिषद के इतिहास का देश के स्वाधीनता संग्राम से अटूट रूप से संबध रहा है। एक ओर इसने स्वतंत्रता की यज्ञ-ज्योति से प्रेरणा और स्फूर्ति प्राप्त की तो दूसरी ओर इसमें मूल्यवान आहूतियां देकर उस ज्योति को अधिक प्रखरता से प्रज्जवलित करके उसे पुष्ट और तुष्ट किया है।
सभापति ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधान परिषद ने राष्ट्रीय समस्याओं के परिपेक्ष्य में उनके निराकरण में जो महती भूमिका निभाई है वह गौरवमयी, अनुकरणीय और स्तुत्य है। इसके सदस्यों में विद्वतजनों के समायोजन का ऐसा तत्व रहा है जिसने इसके विकास को जहां एक ओर बढ़ाया वहीं दूसरी ओर इसके कार्यकलापों को विद्या, विवेक और ज्ञान से पूरित किया।
प्रमुख सचिव विधान परिषद डा0 राजेश सिंह ने संगोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन के विभिन्न पहलू ऐसे होते हैं जिन पर सदन में गंभीरता, दूरदृष्टि, स्पष्ट तथा निष्पक्ष भाव से विचार करने की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश विधान परिषद ने अपना योगदान सिर्फ सदन तक ही सीमित नहीं रखा है अपितु मिनी सदन अर्थात संसदीय समितियों के माध्यम से भी उत्तर प्रदेश विधान परिषद में अपनी सार्थकता सिद्ध की है।
इस संगोष्ठी में कई विधान परिषद सदस्यों ने अपने विचार व्यक्त किये संगोष्ठी का समापन करते हुए सभापति श्री रमेश यादव ने संगोष्ठी में आये हुए सभी विधान परिषद सदस्यों एवं अतिथियों का अभार प्रकट किया।