अंतर्राष्ट्रीय मृदा दिवस (5 दिसंबर) के अवसर पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह रांची स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानव जीवन में मिट्टी के महत्व के प्रति नीति निर्धारकों का ध्यानाकर्षण करने एवं सामाजिक जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से वर्ष 2015 को अंतर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष के रूप में घोषित है। इस उपलक्ष में दिनांक 5 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मृदा दिवस मनाया जा रहा है।देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.4 प्रतिशत यानी 7.97 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र झारखण्ड में है। यह देश का पूर्वी पठारी एवं पहाड़ी भाग है। जलवायु के अनुसार यह क्षेत्र कृषि मौसमी अंचल-7 के अंतर्गत चौथे, पांचवे और छठे उप-अंचल में आता है। इस क्षेत्र की भूमि की संरचना ढलानयुक्त तथा लहरदार है तथा यहां की ऊंची-नीची असमान भूमि को उपरावार, मध्यम एवं निचली श्रेणियों में बांटा गया है। निचली भूमि में मुख्यतया धान की रोपाई की जाती है एवं सब्जियों की खेती द्वितीयक फसल के रूप में की जाती है। मध्यम ऊंचाई की भूमि को सीढ़ीदार रूप से समतल कर इसमें खरीफ ऋतु में धान की खेती की जाती है जबकि उपरावार भूमि पूरे वर्ष परती छोड़ दी जाती है।
यहां मुख्य रूप से धान, मक्का, अरहर, आलू, खरबूजा, कुलथी, चना, मटर तथा सभी प्रकार की सब्जियों की खेती की जाती है। किन्तु इस क्षेत्र की मिट्टी अम्लीय होने के कारण इन फसलों की औसत उपज भारत की औसत उपज से कम रह जाती है।
झारखण्ड की 49 प्रतिशत भूमि अत्यधिक अम्लीय है जिसका पी.एच. मान 4.5 से 5.5 के मध्य है। इस क्षेत्र की मिट्टी बलुई दोमट है जिससे इसकी जलधारण क्षमता कम है तथा यह सूखने पर अत्यधिक कठोर होकर सतह पर पपड़ी का निर्माण करती है जिसमें पौधों का अंकुरण मुश्किल होता है। इसके परिणामस्वरूप किसान एक फसल के बाद दूसरी फसल नहीं बो पाते और भूमि परती ही छूट जाती है।
इस क्षेत्र में फसलों की सिंचाई करना भी चुर्नातीपूर्ण कार्य है, क्योंकि यहां कृषि वर्षा पर निर्भर है। हालांकि इस क्षेत्र में वर्ष में औसतन 1350 मिमी. वर्षा होती है परंतु ढालू भूमि तथा जल एवं भूमि संरक्षण उपायों के अभाव में जल, सतही अपवाह द्वारा बह जाता है। साथ ही मिट्टी की ऊपरी परत के साथ पोषक तत्व भी बह जाते हैं। वर्तमान समय में तकनीकी, सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों के कारण भू-जल एवं तालाबों के पानी का सिंचाई में प्रभावी ढंग से सदुपयोग करने की आवश्यकता है।
इस क्षेत्र की भूमि में जैविक कार्बन की मात्रा बहुत कम है। उपलब्ध नाइट्रोजन, पोटेशियम की मात्रा जहां मध्यम से निम्न है वहीं फॉस्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, बोरॉन, मॉलिब्डेनम की भी मात्रा काफी निम्न है परंतु आयरन एवं मैंग्नीज की मात्रा अत्यधिक है जो अम्लीयता बढ़ाते हैं तथा खेती के लिए उपयुक्त नहीं हैं। अत: मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना समय की मांग है।
झारखण्ड के किसानों के बीच सॉयल हेल्थ कार्ड के शुभारम्भ से मिट्टी की नियमित जांच द्वारा किसानों को फसल के अनुसार उचित मात्रा में उचित उर्वरक एवं खाद्य के प्रयोग का ज्ञान दिया जा सकेगा, जिसका इस्तेमाल करके वे अपनी भूमि से अधिकाधिक उपज प्राप्त कर सकेंगे। इसके साथ-साथ इस क्षेत्र की भूमि का सुधार भी किया जा सकेगा।
इस कार्यक्रम में झारखण्ड के रांची, खूंटी, लोहरदग्गा, हजारीबाग, रामगढ़, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला, लातेहार एवं गुमला जिलों के लगभग 5,500 किसान भाग लेंगे। साथ ही कृषि एवं गन्ना विकास विभाग, झारखंड सरकार, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थानों के प्रतिनिधि भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित होंगे।