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प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने देश में जीडीपी के आकलन की पद्धति की सुदृढ़ता पर विस्तृत विश्लेषण जारी किया

देश-विदेश

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) ने आज “भारत में जीडीपी आकलन – परिप्रेक्ष्य और तथ्य” शीर्षक से विस्तृत नोट जारी किया। इस नोट को http://eacpm.gov.in/reports-papers/eac-reports-papers/पर पड़ा जा सकता है।

यह नोट जनवरी 2015 में भारत में जीडीपी के आकलन की बेहतर पद्धति को अपनाने के औचित्य को स्पष्ट करता है। 2011-12 को आधार वर्ष के रूप में उपयोग करने वाली नई पद्धति में दो प्रमुख बदलाव शामिल हैं – क) एमसीए 21 डेटाबेस को शामिल करना और ख) राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (एसएनए) 2008 की सिफारिशों को शामिल करना। यह परिवर्तन एसएनए 2008 के मुताबिक अपनी-अपनी पद्धतियों में बदलाव लाने और अपने जीडीपी आंकड़ों को संशोधित करने वाले अन्य देशों की तर्ज पर किया गया था। ओईसीडी देशों के बीच वास्तविक जीडीपी अनुमानों में औसतन 0.7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।

जैसा कि ईएसी-पीएम की दिनांक 12 जून, 2019 की प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेख किया गया है, यह नोट हाल ही में डॉ. अरविंद सुब्रमण्यन द्वारा  “भारत की जीडीपी का गलत आकलन  : संभावना, आकार, व्यवस्था और निहितार्थ ” शीर्षक से प्रकाशित शोध पत्र का बिन्दुवार खंडन भी प्रस्तुत करता है। इस नोट में प्रमुख रूप से बिबेक देबरॉय, रथिन रॉय, सुरजीत भल्ला, चरन सिंह और अरविंद विरमानी आदि ने योगदान दिया है। इन विशेषज्ञों ने डॉ. सुब्रमण्यन के आकलन की पद्धति, दलीलों और निष्कर्षों को अकादमिक योग्यताओं तथा भारतीय वास्तविकताओं की समझ के आधार पर खारिज किया है। यह नोट इस बात के विस्तृत प्रमाण प्रस्तुत करता है जो इस ओर इशारा करते हैं कि डॉ. सुब्रमण्यन ने वर्ष 2011-12 के बाद भारत की जीडीपी को वास्तविक से अधिक आकलन से जुड़ी अपनी परिकल्पना को सही साबित करने के लिए कुछ विशेष संकेतकों का चयन किया है और अपेक्षाकृत अपुष्ट और कमजोर विश्लेषण प्रस्तुत किया है। उदाहरण के लिए नोट में डॉ. सुब्रमण्यन के शोध पत्र की विसंगतियों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा गया है कि इसमें पक्षपात करते हुए कर के आंकड़ों को इस दलील के आधार पर नज़रअंदाज कर दिया गया है कि वर्ष 2011-12 के बाद की अवधि के दौरान “प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में व्यापक बदलाव” देखे गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि डॉ. सुब्रमण्यन का विश्लेषण 31 मार्च, 2017 को ही समाप्त हो गया है, जबकि एकमात्र प्रमुख कर बदलाव (जीएसटी) 01 जुलाई, 2017 से अमल में लाया गया है। कुल मिलाकर इस नोट में तथ्यों और दलीलों सहित आठ स्पष्ट बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है जो डॉ. सुब्रमण्यन के शोध पत्र का पूरी तरह खंडन करते हैं।

इस नोट का समापन इस बिंदु के साथ हुआ है कि भारत में जीडीपी आकलन की पद्धति पूरी तरह से सटीक नहीं है और सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय आर्थिक आंकड़ों की सटीकता को बेहतर बनाने के विविध पहलुओं पर काम कर रहा है। हालांकि, इसमें बेहतरी  की दिशा एवं गति सराहनीय है और फिलहाल भारत की जीडीपी आकलन पद्धति एक जवाबदेह, पारदर्शी और सुव्यवस्थित अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की वैश्विक हैसियत के अनुरूप है। कुछ भी हो, जीडीपी के आंकड़ों को वास्तविकता से अधिक बताने से संबंधित डॉ. सुब्रमण्यन के प्रयासों में निहित कमजोरी इस बात की पुष्टि करती है कि जीडीपी आकलन की प्रक्रिया फर्जी आलोचना का सामना करने में सक्षम है। आने वाले समय में भारतीय राष्ट्रीय आय के लेखांकन में बेहतरी के लिए बदलाव होना तय है और यह इस दिशा में एक ऐसा महत्वपूर्ण कदम है जिसकी आलोचना विशेषज्ञ और विद्वान निश्चित तौर पर करेंगे। लेकिन केवल व्यवस्था की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली नकारात्मकता के जरिए सनसनी फैलाने भर से ही देश के हितों की पूर्ति नहीं होती है ।

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