(1) व्यक्ति के जीवन में दोस्तों की अहमियत को समझते हुए और दोस्तों के प्रति आभार और सम्मान
व्यक्त करने के उद्देश्य से सन 2011 से संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस दिन को विश्व बन्धुत्व तथा एकरूपता देने और पहले से अधिक हर्षोल्लास से मनाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 30 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय फ्रेंडशिप डे घोषित कर दिया है। विश्व के अधिकतर देशों में अंतर्राष्ट्रीय फ्रेंडशिप डे 30 जुलाई को मनाया जाता है। हमारा मानना है कि हमारी मित्रता का आधार एक युद्धरहित दुनिया के गठन का होना चाहिए। मित्रता का सबसे सर्वोच्च तथा परम लक्ष्य मानव जाति का भविष्य सुरक्षित बनाना है। आइये, पूरे विश्व के प्रति मित्र भाव विकसित करके वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा को साकार करें।
(2) भारत में तो प्राचीन सभ्यता से ही दोस्ती की कई मिसालें देखने को मिलती हैं। राम जी ने दोस्ती के वास्ते ही सुग्रीव की मदद की थी तथा अमर्यादित हो चले समाज को मर्यादित बनाया। भगवान कृष्ण और अर्जुन तथा कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की मिसाल तो जमाना आदि काल से देता आ रहा है। श्रीकृष्ण ने आपत्ति में पड़े अर्जुन की हर समय सहायता की तथा अर्जुन ने भी कृष्ण की इच्छा तथा आज्ञा को जानकर प्रभु का कार्य पूरे मनोयोग से किया और महाभारत का युद्ध करके धरती पर न्याय का साम्राज्य स्थापित किया। पश्चिम की तुलना में भारत में दोस्ती व्यापक पैमाने पर फैली हुई है। दोस्त से हम अपने दिल की सारी बातें कह सकते है। एकता, शान्ति, विश्वास और आपसी समझदारी के इस रिश्ते को दोस्ती कहते हैं। दोस्ती का रिश्ता जात-पांत, लिंग भेद तथा देशकाल की सीमाओं को नहीं जानता।
(3) त्वमेय माता च पिता त्वमेय, त्वमेय विद्या द्रविणं त्वमेय, त्वमेय सर्वे मम देव देव। तुम्ही हो माता पिता तुम्हीं हो, तुम्हीं हो बन्धु सखा तुम्हीं हो। तुम्हीं हो साथी तुम्ही सहारे, कोई न अपना सिवा तुम्हारे, तुम्ही है नैया तुम्हीं खिवइया तुम्हीं हो बन्धु…….। जो खिल सके न वह फूल हम है, तुम्हारे चरणों के धूल हम है, दया की दृष्टि सदा रखना। लोगों की सोच में प्यार का मतलब सिर्फ एक लड़के और लड़की के बीच के प्यार से रह गया हैं, लोग भूलते जा रहे हैं कि मनुष्य को पहला निश्चल, निःस्वार्थ और सच्चा प्यार सिर्फ और सिर्फ अपने माता-पिता से मिला हैं। विश्व एकता की आधारशिला पारिवारिक एकता है। दोस्ती करो ऐसी के दोस्त को देकर दुनिया भर की खुशियाँ उसके सारे गम चुरा लो। और दोस्ती निभाओ ऐसी के वो ऊपर वाला भी नीचे आकर बोले मुझे भी अपना दोस्त बना लो। परमात्मा सबसे बड़ा मित्र है। परमात्मा से मित्रता निभाने के मायने है उसकी प्रत्येक रचना अर्थात सारी सृष्टि से प्यार करना।
(4) सच्चा मित्र जीवन का वह साथी है जो हर बुराई से हमें बचाता है :- मित्र के बिना जीवन अधूरा होता है। मित्र जीवन के रोगों की औषधि होती है, इसलिए मित्रता का बहुत महत्व है। हर प्राणी घर से बाहर मित्र की तलाश करता है। मित्र जीवन का वह साथी है जो हर बुराई से हमें बचाता है। हमें भलाई की ओर बढ़ाने के लिए साधन जुटाता है। पतन से बचाकर उत्थान के पथ पर लाता है, वह मित्र है। जीवन का सहारा, दुःख का साथी बनाते समय बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए। मित्रता के सच्चे भाव को समझना चाहिए। सच्चा मित्र हर सुख-दुःख में साथ देता है। स्वार्थी मित्र संकट के समय साथ छोड़ देते हैं। अतः मित्रता करने में सावधानी बरतनी चाहिए। तुलसीदास जी ने कहा है- जो मित्र दुःख होई न दुखारी, तिनहि विलोकत पातक भारी।। दोस्ती आदमी को भगवान का दिया हुआ एक विशेष वरदान है। आप एक दोस्त के साथ दुःख और सुख को साझा कर सकते हो। अच्छे दोस्त हमेशा एक सही तरह मार्गदर्शन देते है अच्छा दोस्त हमेशा निष्पक्ष और ईमानदारी से दुःख और सुख में अपने दोस्तों के साथ खड़ा रहता हैं। इसलिए हमें हमारे एक दोस्त को भेजने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहिए।
(5) सी0एम0एस0 द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने वाले 23 अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक कार्यक्रमों में देश-विदेश से पधारे प्रतिभागी छात्रों के साथ मित्रता करने के लिए सी0एम0एस0 के छात्र अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की तैयारी करते हैं। विदेशों से तथा भारत के विभिन्न प्रदेशों से आये छात्रों के साथ मित्रता का विचार छात्रों में एक नयी उमंग भर देता है। इन अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में प्रतिभाग करने हेतु विश्व के अनेक देशों से आने वाले सभी प्रतिभागियों को सी0एम0एस0 के आदर्श वाक्य ‘जय जगत’ एवं भारत की संस्कृति और सभ्यता के साथ ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा विश्व बन्धुत्व की विचारधारा से भी परिचित कराया जाता है। इस प्रकार इन प्रतियोगिताओं के माध्यम से यह एक ऐसा अद्भुत मंच बन जाता है जिसमें विश्व के अनेक देशों की संस्कृति और सभ्यता के साथ ही भारत की संस्कृति एवं सभ्यता का समागम भी होता है जो छात्रों को विश्व बन्धुत्व का अवसर प्रदान करता है। वास्तव में इस प्रकार के कार्यक्रम छात्रों के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालते हैं और इस विचार को दृढ़ करते है कि मानवता एक है, ईश्वर एक है, विश्व एक है और यह पृथ्वी तथा प्रकृति सभी का पोषण समान रूप से करती है। ऐसे विचार भविष्य में ‘विश्व एकता’ ‘विश्व शांति’ तथा विश्व बन्धुत्व के उद्देश्य में सहायक होते हैं।
(6) चिल्ड्रेन्स इण्टरनेशनल समर विलेज (सी.आई.एस.वी.) कैम्प :- जाति, रंग, नस्ल, राष्ट्रीयता और भाषाओं के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त कर पूरे विश्व में ‘जय जगत’ तथा विश्व बन्धुत्व की स्थापना करने के उद्देश्य से सी0एम0एस0 द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बाल शिविर का आयोजन प्रत्येक वर्ष किया जाता है। इस अंतर्राष्ट्रीय समर विलेज कैम्प के माध्यम से नन्हें-मुन्हें 11 से 12 वर्ष आयु के बच्चों को एक स्थान पर 4 सप्ताह के लिए साथ-साथ इकट्ठा रखा जाता है। प्रत्येक डेलीगेशन में 2 लड़के, 2 लड़कियाँ और एक लीडर होता है। इससे विभिन्न संस्कृति, भाषा, सभ्यता, रीति-रिवाज में पले-बढ़े बच्चों के कोमल हृदय में आपसी भाईचारा, विश्व शांति तथा विश्व बन्धुत्व की भावना का समावेश होता है ताकि विश्वव्यापी दृष्टिकोण से परिपूर्ण ये बच्चे बड़े होकर मानव निर्मित सीमाओं से ऊपर उठकर एक विश्व की परिकल्पना को साकार करने में निश्चित ही सार्थक भूमिका निभाये। इंग्लैण्ड की चिन्ड्रेन्स इन्टरनेशनल समर विलेज संस्था (सी0आई0एस0वी0) पूरे विश्व के अलग-अलग देशों में इन बाल शिविरों का आयोजन करती हैं। जिसमें सिटी मोन्टेसरी स्कूल के बच्चे विभिन्न देशों में आयोजित इस अन्तर्राष्ट्रीय बाल शिविरों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। सिटी मोन्टेसरी स्कूल द्वारा आयोजित इस शिविर में भारत के बच्चों के अतिरिक्त विभिन्न देशों के 10-12 देशों के बच्चे भाग लेते हैं।
(7) विष्व के 3 बड़े नेताओं ने विष्व में एकता, शांति तथा बन्धुत्व की स्थापना के लिए समय-समय पर प्रयास किया जिसके तहत :- (1) प्रथम विष्व युद्ध के समय 1919 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वुडरो विल्सन ने विष्व के नेताओं की एक बैठक आयोजित की, जिसके फलस्वरूप ‘लीग ऑफ नेषन्स’ की स्थापना हुई और सन् 1919 से 1939 तक विश्व में कोई अन्य युद्ध नहीं हुआ। (2) द्वितीय विष्व युद्ध के समय अमेरिका के ही तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट ने 1945 में विष्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई जिसकी वजह से 24 अक्टूबर, 1945 को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यू.एन.ओ.) की स्थापना हुई। प्रारम्भ में केवल 51 देषों ने ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये थे। आज 193 देष इसके पूर्ण सदस्य हैं व 2 देष संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.ओ.) के अवलोकन देष (ऑबजर्बर) हैं। फ्रैंकलिन रूजवेल्ट की इस पहल के कारण पिछले 74 वर्षो से संसार में कोई और विश्व युद्ध नहीं हुआ।
(8) फ्रांस के प्रधानमंत्री श्री राबर्ट शूमेन ने यूरोपीय देषों के नेताओं की एक बैठक बुलाने की पहल की। इस पहली बैठक में 76 यूरोपीय संसद सदस्यों ने प्रतिभाग किया जिसके परिणामस्वरूप यूरोपीय यूनियन व 28 यूरोपीय देषों की एक ‘यूरोपीय संसद’ गठित की गई। इस यूरोपीय संसद की वजह से आज पूरे यूरोप में स्थायी एकता व शांति स्थापित है। आज यूरोपीय यूनियन में 28 यूरोपीय देष पूर्ण सदस्य राज्यों की तरह से हैं। यूरोपीय यूनियन के 18 देषों ने अपनी राष्ट्रीय मुद्रा को समाप्त कर ‘यूरो’ मुद्रा को अपनी राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में अपनाया है। इस बैठक को आयोजित करने की पहल करना यूरोप में स्थायी शांति व सभी देषों में एकता स्थापित करने के लिए श्री राबर्ट शूमेन का एक महत्वपूर्ण कदम था। यदि इन तीनों विष्व के राजनैतिक नेताओं ने इन बैठकों को आयोजित न की होती तो सोचिए आज विष्व की क्या दषा होती?
(9) हमने इतिहास में देखा है कि केवल तीन अवसरों पर (1) लीग ऑफ नेषन्स के गठन में (2) संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन में व (3) यूरोपियन यूनियन के गठन में विष्व के देषों ने मिलकर एकता अपनायी है। और प्रत्येक बार वे इसलिए सफल रहे क्योंकि ‘एक व्यक्ति’, जो अपने आप पर विष्वास रखता था, जिसके हृदय में पवित्र इच्छा थी, ने आगे बढ़कर सभी विष्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई। हमारा मानना है कि विष्व के नेताओं की बैठक बुलाना आज के युग की सबसे बड़ी आवष्यकता है, जिसका कि अब समय आ गया है। इसकी पहल भारत के शीर्ष नेतृत्व तथा प्रत्येक भारतीय को करनी है। मेरे व मेरे साथ सी.एम.एस. के लगभग 57,000 छात्रों की शुभकामनाएँ व बधाइयाँ आपके साथ हैं। हमारा मानना है कि न केवल भारत के बल्कि विष्व भर के बच्चे अपने सुन्दर एवं सुरक्षित भविष्य के लिए भारत की तरफ बड़ी आषाओं के साथ देख रहे हैं।
डा0 जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ