भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों जब भी चर्चा होगी, वह मीरा बाई के नाम के बगैर अधूरी ही रहेगी। मीराबाई ने पूरा जीवन भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था। उनकी श्रीकृष्ण को लेकर असीम भक्ति लेकर कई बार सवाल भी उठे लेकिन उनका विश्वास अपने अराध्य पर बना रहा। मीराबाई के जीवन कई मुश्किलें भी आईं लेकिन उनका इरादा कभी नहीं डिगा।
शायद, यही कारण भी है कि आज मीराबाई की गिनती भगवान श्री कृष्ण के सबसे बड़े भक्तों में होती है। मीराबाई ने अपने जीवन काल में कई ऐसे भजन रचे और गाये जो आज भी काफी प्रचलित हैं। उनके कृष्ण भक्ति के बारे कई ऐसी बातें और किवदंतिया प्रचलित हैं जो आम लोगों को हैरान करती हैं। जन्माष्टमी के मौके पर आईए जानते हैं मीरा बाई और उनकी कृष्ण भक्ति से जुड़ी कहानी…
Janmashtami 2019: राजपूत परिवार में हुआ था मीराबाई का जन्म
मीराबाई का जन्म राजस्थान में वीर कुमार और रतन सिंह के यहां 1498 में हुआ था। मीराबाई जब केवल 8 साल की थीं, उसी समय उनकी मां का देहांत हो गया। ऐसे में उनका लालन-पालन और शिक्षा आदि दादा ने किया। बचपन से ही मीराबाई के मन में श्रीकृष्ण के प्रति विशेष लगाव था। वे हमेशा भगवान कृष्ण की एक मू्र्ति अपने पास रखती थीं।
मीरबाई जब थोड़ी बड़ी हुईं तो उनका विवाह चितौड़ के शासक भोज राज से 1516 हो गया। दोनों के कोई संतान नहीं थे। इसी बीच दिल्ली सल्तनत के शासकों के साथ एक युद्ध में 1518 में भोज राज घायल हो गए। बाद में इसी कारण 1521 में उनकी मृत्यु भी हो गयी।
पति के मृत्यु के कुछ साल बाद उनके ससुर और प्रसिद्ध योद्धा राणा सांगा भी बाबर के साथ एक लड़ाई में मारे गये। इससे मीराबाई की मुश्किलें और बढ़ गई लेकिन कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति नहीं छूटी। वह पहले से और ज्यादा भक्ति में डूब गईं और संसार से विरक्त होती चली गईं। साथ ही साध-संतों की संगत में समय बिताने लगी। वह कई बार कृष्ण भक्तों के बीच चली जातीं और भगवान की मूर्ति के सामने नाचने और भजन गाने लगतीं।
Janmashtami 2019: मीराबाई को जब हुई जहर देने की कोशिश
पति और ससुर की मृत्यु के बाद इसी परिवार के विक्रमादित्य चितौड़ के अगले शासक बने लेकिन उन्हें मीराबाई का इस तरह आम लोगों के बीच नृत्य और गायन करना अच्छा नहीं लगता था। कहते हैं कि इसी से नाराज होकर परिवार वालों ने मीराबाई को जहर देने का भी प्रयास किया लेकिन श्रीकृष्ण के चमत्कार की वजह से वह अमृत बन गया।
Janmashtami 2019: मीराबाई की कैसे हुई मृत्यु
मीराबाई की मृत्यु को लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता और इसलिए इसे लेकर अलग-अलग मत हैं। कई जानकार मीरबाई की मृत्यु के साल को 1546 तो कुछ इसे 1548 भी बताते हैं। मृत्यु के स्थान को लेकर भी उलझन है। अधिकतर जानकार मीराबाई के मृत्यु के स्थान को द्वारका बताते हैं। ऐसा कहा जाता है कि बाद के सालों में वे द्वारका चली गई थीं और यहीं पूजा करते-करते श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं। वहीं, कुछ मतों के अनुसार द्वारका के बाद वे उत्तर भारत में भ्रमण के लिए चली गई थी। News Source Lokmat News