नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने विधि और न्याय पर संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों के अनुरूप देश के विभिन्न हिस्सों में उच्चतम न्यायालय की अधिक पीठें बनाये जाने का आह्वान करते हुए कहा कि कानूनी विवादों को निपटाने के लिए कई बार लोग लंबी दूरी तय करते है और बड़ी राशि खर्च करते हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों को उच्च न्यायालयों की विशेष पीठों द्वारा समयबद्ध तरीके से जल्द ही निपटाया जाना चाहिए। श्री नायडू ने ऐसे मामलों को छह महीने या एक वर्ष के भीतर निपटाने के लिए अलग-अलग पीठों की स्थापना करने का आह्वान किया।
श्री नायडू ने राज्य के तीन अंगों, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को एक साथ काम करने और राष्ट्र के सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करने के लिए तालमेल बनाने के लिए प्रेरित करने का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा कि राज्य के ये अंग अपने कर्तव्यों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं, जब वे एक-दूसरे के क्षेत्र में दखल नहीं देते।
आज नई दिल्ली में पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी), श्री विनोद राय द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘रिथिंकिंग गुड गवर्नेंस’ का विमोचन करने के बाद उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्थानीय निकायों की शक्तियों और जिम्मेदारियों के विकेंद्रीकरण को और अधिक कुशलता से लागू किया जाना चाहिए।
श्री नायडू ने कहा कि यह सुनिश्चित करना सभी की जिम्मेदारी है कि लोकतांत्रिक सुशासन का फायदा सबको मिले। भारत के दूरगामी और पथ-प्रदर्शक सुधारों को आम लोगों के फायदों के अनुरूप होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कई स्थानों पर कई विधायी निकाय अच्छी तरह से काम कर रहे है, लेकिन उनमें से कई में सुधार की काफी गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि संविधान में संसद को पर्याप्त शक्तियां प्रदान की है, लेकिन इनका प्रभावी इस्तेमाल तभी हो सकता है, जब सांसद और विधायक इसका सही तरीके से इस्तेमाल करे।
यह देखते हुए कि संसदीय लोकतंत्र में एक प्रभावी विपक्ष द्वारा निभाई गई भूमिका को कभी कम नहीं किया जा सकता है, श्री नायडू ने कहा कि यह विपक्ष पर निर्भर करता है कि वह सरकार को ध्यान में रखे और आलोचनाओं को सार्थकता प्रदान करे। उन्होंने कहा कि ‘सदन की कार्यवाही को बाधित करना’ आगे का रास्ता नहीं हो सकता है।’
यह कहते हुए कि आज के प्रबुद्ध नागरिक, विशेषकर युवा सांसदों के कामकाज को बहुत बारीकी से देख रहे है और सदन के भीतर और बाहर उनके कार्यों, उद्देश्यों और दृष्टिकोणों को लेकर सवाल उठा रहे है। श्री नायडू ने सांसदों को हमेशा आम आदमी की आकांक्षाओं का सम्मान करने के लिए कहा।
उन्होंने कहा, “हमें ऐसे जनप्रतिनिधियों की आवश्यकता है जो अच्छे जानकार और सुविचारित हों और अपने दृष्टिकोण को भलीभांति पेश करने में सक्षम हो।
उपराष्ट्रपति ने राजनीतिक दलों को अपने विधायकों के लिए आचार संहिता अपनाने और नीति निर्धारण में योगदान देने को कहा। उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि राजनीतिक दल क्षमता और आचरण के आधार पर अपने उम्मीदवारों का चयन करें। उन्होंने जनप्रतिनिधियों से जातिगत और धार्मिक भेदभाव के संकीर्ण विचारों से ऊपर उठने का आह्वान किया।
उन्होंने शासन की नीतियों और उसके परिणामों का लगातार मूल्यांकन करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि नीति निर्माताओं को अपने विचारों में लचीला और खुलापन रखना चाहिए।
श्री नायडू ने देश की विभिन्न अदालतों में भारी संख्या में लंबित पड़े मामलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि न्याय प्रक्रिया में देरी को खत्म करने के लिए सुधारों की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि कई दीवानी और फौजदारी मामले वर्षों से लंबित हैं, ऐसे में दिल्ली में उच्चतम न्यायालय की एक संविधान पीठ और दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई जैसे चार क्षेत्रों में भी उच्चतम न्यायालय की पीठ बनाये जाने की आवश्यकता है।
न्यायपालिका के कामकाज में सुधार के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किए गए सुझावों का सर्मथन करते हुए श्री नायडू ने कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि करना और बैकलॉग को समाप्त करने के लिए कार्यकाल की नियुक्तियां व्यावहारिक समाधान है।
इस अवसर पर पुस्तक के लेखक श्री विनोद राय, दक्षिण एशियाई अध्ययन संस्थान, सिंगापुर के निदेशक, प्रो. सी. राजा मोहन, नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय के निदेशक श्री शक्ति सिन्हा, और रूपा प्रकाशन के प्रबंध निदेशक श्री कपीश मेहरा भी उपस्थित थे।